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Opinion : सड़क हादसों से जुड़े हर पहलू का रखना होगा ध्यान

देश में एक साल में पांच लाख से ज्यादा सड़क हादसों में करीब पौने दो लाख लोग अकाल मौत के शिकार हो जाएं तो इससे बड़ी चिंता की बात कोई नहीं हो सकती। केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी जब यह कहते हैं कि लोगों में कानून का डर नहीं है तो सीधे तौर पर […]

जयपुरDec 06, 2024 / 10:47 pm

Hari Om Panjwani

road accident

देश में एक साल में पांच लाख से ज्यादा सड़क हादसों में करीब पौने दो लाख लोग अकाल मौत के शिकार हो जाएं तो इससे बड़ी चिंता की बात कोई नहीं हो सकती। केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी जब यह कहते हैं कि लोगों में कानून का डर नहीं है तो सीधे तौर पर उनका संकेत लापरवाह वाहन चालकों की तरफ भी है। साथ ही यह भी कि सड़क निर्माण की गुणवत्ता भी कहीं न कहीं प्रभावित होती है। तभी तो गडकरी ने गलत काम पर ठेकेदारों को बुलडोजर के नीचे होने की चेतावनी तक दे दी। हादसों के कारण गिनाते हुए मंत्री ने कहा कि पांच लाख में से ज्यादातर मौतें वाहन चालकों की लापरवाही के कारण हुईं। इनमें तीस हजार से ज्यादा दोपहिया चालकों की मौत हेलमेट न लगाने से हुई।
इसमें कोई संशय नहीं कि कोई भी अपराध या कोताही सभ्य नागरिक दायित्वों में कमी की तरफ इंगित करती है। लेकिन महज कानून बनाकर ही सरकारें अपने दायित्व को पूरा हुआ नहीं मान सकती। हर बार हादसों की रोकथाम के लिए सड़क सुरक्षा माह व सप्ताह जैसे आयोजन होते हैं लेकिन सड़क हादसों के आंकड़े कम होने के बजाए पहले से ज्यादा होते जाते हैं। कारण साफ है कि यातायात नियमों की पालना व गुणवत्तायुक्त सड़कों का निर्माण दोनों ही दिशाओं में जितना काम होना चाहिए था उतना नहीं हो पा रहा। व्यवस्था दो तरह से सुधारी जा सकती है।
पहली जागरूकता और नागरिकों में समझबूझ विकसित करके तथा दूसरी उनमें यह डर दिखाकर कि नियमों का पालन नहीं किया तो उन्हें इसका अंजाम भुगतना पड़ेगा। दोनों ही व्यवस्थाओं को जनता को अपने हित का मानकर चलना चाहिए। संदेश उन ठेकेदारों को भी देना होगा जो लालच में आकर सड़कों में लोगों के जीवन से खिलवाड़ करती खामियां छोड़ देते हैं। सही मायने में कानून का डर पैदा करना भी तंत्र की ही जिम्मेदारी है। निश्चित तौर पर व्यवस्था में कमियां हैं। कानून की पालना करवाने वाले अंगों का लचीला रुख और कई मामलों में भ्रष्टाचार का रवैया भी इसके लिए कम जिम्मेदार नहीं है। रही बात आधारभूत संरचनाओं और कई अन्य पहलुओं की। कई मामलों में हमने विदेशी तकनीक का अनुसरण किया है, तो फिर सड़क निर्माण और परिवहन व्यवस्था सुधार में ऐसा क्यों नहीं कर सकते? नवीनतम तकनीक से बनाए गए दिल्ली-मुम्बई एक्सप्रेस वे तक में तकनीकी खामियां छोड़ दी जाएं तो इसे क्या कहेंगे? जाहिर तौर पर यातायात नियमों को लेकर जनसाधारण को जागरूक करने के साथ-साथ सिस्टम में घुसे भ्रष्ट तंत्र पर भी नकेल कसनी होगी जो जानलेवा हादसों के लिए जिम्मेदार है।

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