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Opinion : शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने की कोशिश या नई चुनौती?

केंन्द्र सरकार की ओर से स्कूल शिक्षा में डेढ़ दशक पूर्व लागू नो-डिटेंशन पॉलिसी को खत्म करने पर शिक्षा के नीति निर्धारकों की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा हो गया है। अब पांचवीं और आठवीं के विद्याथियों को साल के अंत में होने वाली परीक्षा में फेल होने पर अगली कक्षा में प्रमोट नहीं किया जाएगा। […]

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जयपुर

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Anil Kailay

Dec 24, 2024

केंन्द्र सरकार की ओर से स्कूल शिक्षा में डेढ़ दशक पूर्व लागू नो-डिटेंशन पॉलिसी को खत्म करने पर शिक्षा के नीति निर्धारकों की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा हो गया है। अब पांचवीं और आठवीं के विद्याथियों को साल के अंत में होने वाली परीक्षा में फेल होने पर अगली कक्षा में प्रमोट नहीं किया जाएगा। उन्हें दो महीने बाद दोबारा परीक्षा देने का मौका मिलेगा। फिर भी पास नहीं होने पर उन्हें उसी कक्षा में रहना होगा। हालांंकि इस बदलाव के बावजूद किसी विद्यार्थी को प्राथमिक शिक्षा पूरी करने से पहले स्कूल से नहीं निकाला जाएगा। कक्षा एक से आठ तक के छात्रों को परीक्षाओं में फेल नहीं करने की नो-डिटेंशन पॉलिसी वर्ष 2009 में लागू की गई थी। इस नीति का मकसद बच्चों का शिक्षा के प्रति रुझान बनाए रखना था। क्योंकि डर यह भी रहा था कि कहीं फेल होने पर ड्रॉपआउट यानी बीच में ही पढ़ाई छोडऩे वाले बच्चों की दर ज्यादा न हो जाए।
जिस प्रावधान को शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के उद्देश्य से किया गया, उसे ही समाप्त करना यह दर्शाता है कि नीति निर्धारकों ने इस फैसले के दीर्घकालिक प्रभावों का गहराई से विश्लेषण नहीं किया। शिक्षा नीति का उद्देश्य छात्रों का समग्र विकास होना चाहिए, न कि केवल पास या फेल पर ध्यान केंद्रित करना। सरकार के इस निर्णय के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह के असर देखने को मिल सकते हैं। फेल होने की आशंका से छात्र पढ़ाई में अधिक गंभीरता दिखा सकते हैं। यह कदम शिक्षकों को भी छात्रों के प्रदर्शन में सुधार लाने के लिए प्रोत्साहित करेगा। दूसरी ओर ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों के छात्रों के लिए यह नीति चुनौतीपूर्ण साबित हो सकती है।
शिक्षा के संसाधनों की कमी और शिक्षकों की अनुपलब्धता इन छात्रों को पीछे छोड़ सकती है। छोटे बच्चों पर फेल होने का डर मानसिक तनाव बढ़ा सकता है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या इस फैसले से पहले छात्रों, शिक्षकों और शिक्षा विशेषज्ञों से परामर्श लिया गया? शिक्षा जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र में लिए गए निर्णयों में जमीनी वास्तविकताओं को शामिल करने की कमी नीति निर्माण की प्रक्रिया को सवालों के घेरे में लाती है। केवल प्रमोशन रोकने से समस्याएं हल नहीं होंगी। शिक्षा नीति का उद्देश्य न केवल शिक्षण में सुधार करना होना चाहिए बल्कि उन्हें एक सकारात्मक वातावरण प्रदान करना भी होना चाहिए। केवल वार्षिक परीक्षा के आधार पर छात्रों को पास-फेल करना शिक्षा का सही मापदंड नहीं है। समग्र और सतत मूल्यांकन के मॉडल को अपनाने की जरूरत है। यह निर्णय तभी सफल होगा जब शिक्षा व्यवस्था की मौजूदा चुनौतियों का समाधान भी निकाला जाए।