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Opinion : कानून की आड़ में न हो निर्दोषों का उत्पीडऩ

दहेज उत्पीडऩ और घरेलू हिंसा से जुड़े प्रकरणों में सुप्रीम कोर्ट ने पीडि़ता को परेशान करने को लेकर आरोपी के परिजनों को बेवजह घसीटने पर वाजिब चिंता जाहिर की है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही एक मामले की सुनवाई के दौरान यह साफ कहा है कि ऐसे मामलों में आरोपी के परिजनों को सिर्फ इस […]

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दहेज उत्पीडऩ और घरेलू हिंसा से जुड़े प्रकरणों में सुप्रीम कोर्ट ने पीडि़ता को परेशान करने को लेकर आरोपी के परिजनों को बेवजह घसीटने पर वाजिब चिंता जाहिर की है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही एक मामले की सुनवाई के दौरान यह साफ कहा है कि ऐसे मामलों में आरोपी के परिजनों को सिर्फ इस आधार पर ही आपराधिक मामलों में नहीं फंसाया जाना चाहिए कि वे पीडि़ता का साथ देने के बजाय उस पर होने वाले अत्याचारों को देखते रहे। अदालत ने यह भी कहा है कि ऐसे मामलों में अपराध में स्पष्ट रूप से संलिप्तता और उकसावे के संकेत जरूरी हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि महिला उत्पीडऩ और उसमें भागीदार बनने वालों को सजा दी जानी चाहिए। लेकिन, ऐसी घटनाएं भी सामने आती रही हैं, जिसमें दहेज को लेकर उत्पीडऩ और हत्या तक के मामलों में आरोपी के ऐसे रिश्तेदारों पर भी आपराधिक मामले दर्ज हो जाते हैं, जिनका संबंधित अपराध से दूर-दूर का वास्ता नहीं होता। इनमें वे नजदीकी रिश्तेदार भी होते हैं जो न तो आरोपी पक्ष के साथ रहते है और न ही किसी तरह के उकसावे की बात सामने आती। यह भी एक तथ्य है कि कई बार यह अनुमान लगाना मुश्किल हो जाता है कि महिला उत्पीडऩ के मामलों में कौन दोषी है और कौन बिना वजह ही फंसाया जा रहा है।
निर्दोष व्यक्ति पुलिस व अदालतों की कार्यवाही का सामना करने के बाद बरी हो भी जाता है तो भी उसके लिए उत्पीडऩ को लेकर लगे कलंक को धोना आसान नहीं होता। धारा 498 ए (अब बीएनएस की धारा 85 और 86) पर अक्सर सवाल उठते रहे हैं। एक वर्ग लगातार यह आरोप लगाता रहता है कि इसका इस्तेमाल कई महिलाएं पति और ससुराल वालों को आपराधिक मामलों में फंसाने के लिए करती हैं। सुप्रीम कोर्ट भी कई बार कह चुका है कि खासतौर से दहेज उत्पीडऩ के मामलों में सावधानी बरतने की जरूरत है। यह इसलिए भी जरूरी है ताकि कोई कानून का दुरुपयोग नहीं कर सके। सुप्रीम कोर्ट ने ताजा फैसले में भी यही कहा है कि परिवार के सदस्य कई मामलों मे पीडि़त के साथ हिंसा की अनदेखी कर रहे हों तो इसका मतलब यह नहीं निकाला जाना चाहिए कि वे भी घरेलू हिंसा के अपराधी हैं। समस्या यह है कि कोई महिला थाने जाकर यह कह दे कि उसके साथ पति व ससुराल के लोग क्रूरता कर रहे हैं, तो उन सभी के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो जाता है। इससे कई बार निर्दोष लोग भी कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटते नजर आते हैं। इसमें शक नहीं है कि महिलाओं को उत्पीडऩ से बचाना चाहिए, लेकिन इस प्रक्रिया में निर्दोषों का उत्पीडऩ नहीं होना चाहिए।