
उच्चतम न्यायालय के दो महत्त्वपूर्ण निर्णय व्यक्ति की निजी स्वतंत्रता और आपराधिक मामलों में गिरफ्तारी से संबंधित हैं। पहला निर्णय (सिद्धार्थ विरुद्ध उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य) अगस्त 2021 का है जिसका पालन करने के लिए उच्चतम न्यायालय ने पुन: निर्देश दिए हंै। कोर्ट ने निर्देशित किया है कि जब पुलिस किसी मामले में आरोप-पत्र न्यायालय में दाखिल करती है तो यह जरूरी नहीं है कि उसी समय आरोपी को गिरफ्तार कर या अन्यथा आवश्यक रूप से मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया जाए।
दूसरा निर्णय (पंकज बंसल विरुद्ध भारत संघ एवं अन्य) अक्टूबर 2023 का है जो धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के आरोपी को गिरफ्तार करने के आधार पर उसे लिखित में सूचित करने से जुड़ा है। उच्चतम न्यायालय ने सिद्धार्थ प्रकरण में यह स्पष्ट किया कि यदि आरोपी पुलिस को विवेचना में पूरा सहयोग करता है, उसके फरार हो जाने की कोई संभावना नहीं होती और पुलिस द्वारा उसे गिरफ्तार करने की आवश्यकता नहीं समझी जाती तो कोर्ट बिना आरोपी के आरोप-पत्र लेने से मना नहीं कर सकता। दरअसल, कई मामलों में पुलिस को जमानत देने के अधिकार हैं। कई अजमानतीय मामलों में भी आरोपी की गिरफ्तारी करना कानूनन अनिवार्य नहीं होता। उच्चतम न्यायालय ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 170 की व्याख्या करते हुए कहा कि कुछ मामलों में यदि विवेचक आरोपी की गिरफ्तारी आवश्यक नहीं समझता तो मजिस्ट्रेट या न्यायालय आरोप-पत्र लेने से मना नहीं कर सकते।
उच्चतम न्यायालय ने सत्येंद्र कुमार अंटील विरुद्ध सीबीआइ प्रकरण की सुनवाई करते हुए उपरोक्तानुसार पुन: निर्देशों का पालन करने के लिए राज्यों एवं न्यायालयों से पालन प्रतिवेदन चाहे हैं। यदि इन निर्देशों का पालन दृढ़तापूर्वक किया जाता है तो थाना स्तर पर पुलिस अधिकारियों को काफी राहत मिलने की संभावना है। इसी प्रकार मनी-लॉन्ड्रिंग के एक प्रकरण (पंकज बंसल) में निर्णय देते हुए उच्चतम न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि आरोपी को गिरफ्तारी के आधारों की लिखित में सूचना देना जरूरी है। गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के एक प्रकरण में निर्णय देते हुए हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने पुन: इस बात को दोहराया कि यूएपीए एवं पीएमएलए में गिरफ्तारी के आधारों की सूचना देने का प्रावधान एक होने से पंकज बंसल मामले में दिए गए निर्देश यूएपीए के प्रकरणों पर भी लागू होंगे।
उपरोक्त विशेष अधिनियमो के अतिरिक्त दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 50(1) में भी यह प्रावधान है कि आरोपी को गिरफ्तारी के आधारों की सूचना दी जाए। न्यायालय यह निर्धारित कर चुका है कि यह एक अनिवार्य प्रावधान है एवं इसके पालन के बिना गिरफ्तारी या हिरासत अवैध है। पुलिस द्वारा प्रत्येक गिरफ्तार आरोपी के लिए एक पृथक गिरफ्तारी मेमो तैयार किया जाता है। गिरफ्तारी मेमो में यह अंकित होता है कि 'आरोपी को गिरफ्तारी के आधार बताने के बाद उसे हिरासत में लिया गया'। इसमें अपराध की धाराएं एवं तारीख, गिरफ्तारी का समय व स्थान आदि का भी उल्लेख होता है। गिरफ्तारी मेमो में आरोपी के हस्ताक्षर अवश्य लिए जाते हैं परंतु इसकी एक प्रति आरोपी को तत्काल देने का कोई कानूनी प्रावधान नहीं है।
दंड प्रक्रिया संहिता में गिरफ्तारी का आधार बताने का प्रावधान विशेष अधिनियमों में एक समान है और जमानत लेने के लिए या रिमांड का विरोध करने के लिए गिरफ्तारी के आधार सही तरीके से आरोपी को ज्ञात होना आवश्यक है। इसलिए यदि गिरफ्तारी के आधार लिखित में आरोपी को दिए जाएं तो बेहतर होगा। इसके लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 50 में आंशिक संशोधन करना होगा जो संवैधानिक प्रावधानों को देखते हुए आवश्यक है।
— आर के विज
Published on:
29 May 2024 02:13 pm
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