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पूर्व अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआइ) के आम चुनाव में सबसे आगे निकल जाने के बाद से ही भारत से पाकिस्तान के भावी रिश्तों को लेकर अटकलें तेज हो गई हैं। ऐसे में अपने लिए बहुमत का जुगाड़ करने से लेकर शपथग्रहण समारोह की तैयारियों तक के बारे में पीटीआइ की तरफ से दिखाया जा रहा अतिउत्साह कहीं इमरान खान की राजनीतिक परिपक्वता की परीक्षा साबित न हो जाए।
प्रधानमंत्री पद के शपथग्रहण समारोह में नरेंद्र मोदी सहित दक्षेस देशों के शासनाध्यक्षों को आमंत्रित करने की खबर उड़ाने के बाद पीटीआइ ने यह खबर फैलाई कि किसी को नहीं बुलाया जा रहा है। फिर खबर उड़ी कि बीते जमाने के दिग्गज क्रिकेटर सुनील गावस्कर, कपिल देव व नवजोत सिद्धू के साथ-साथ फिल्म अभिनेता आमिर खान को आमंत्रित किया जाएगा। सिद्धू ने तो इमरान की तारीफ करते हुए वहां जाने की घोषणा भी कर दी। उसके बाद पीटीआइ प्रवक्ता का गोलमोल बयान आया कि इमरान नहीं चाहते कि इस समारोह में विदेशी हस्तियां शामिल हों।
बहुमत का जादुई आंकड़ा हासिल किए बगैर भावी प्रधानमंत्री की तरह राष्ट्र को संबोधित करके इमरान ने पहले ही दुनिया को हैरान कर दिया है। अब उनकी पार्टी रोज नई बचकानी हरकतें कर रही है। कोई परिपक्व राजनेता विदेशी शासनाध्यक्षों को आमंत्रित करने की बात तब सार्वजनिक करना चाहेगा जब आमंत्रण स्वीकार करना लगभग सुनिश्चित हो जाए। ऐसे समय जब दुनिया पाकिस्तान चुनाव में सेना की धांधली के सबूत खोज रही हो, कोई शासनाध्यक्ष प्रधानमंत्री की शपथ का साक्षी क्यों होना चाहेगा? चुनाव जीतने के लिए लोकप्रिय घोषणाएं करना और बात है और सरकार बनाकर लोकप्रियता बनाए रखना दूसरी बात। सेना और कट्टरपंथियों की मदद से चुनाव जीतनेवाले इमरान की बदलती इच्छाओं के पीछे कहीं इन दोनों का अदृश्य हस्तक्षेप तो नहीं?
इसमें कोई शक नहीं कि भारत व पाकिस्तान में क्रिकेट महज एक खेल नहीं है। अक्सर क्रिकेट का उन्माद राजनीति पर भारी पड़ता रहा है। इसी उन्माद को भुनाने की राजनीतिक कोशिशों के कारण दोनों देशों के संबंध बदतर ही हुए। एक-दूसरे देश के खिलाडिय़ों का समर्थन आज भले ही 'देशद्रोह' मान लिया जाता हो, दो दशक पहले तक भारतीय युवा खिलाडिय़ों के घरों में पाकिस्तानी खिलाडिय़ों की तस्वीरें भी आम हुआ करती थीं। दरअसल हमारी साझी विरासत अक्सर राजनीति को बौना बनाने का मौका खोज लेती है। एक पारिवारिक समारोह में शामिल होने पाकिस्तान गई बाड़मेर की रेशमा के मामले को ही लें, जिसका शव भारत लाने के लिए दोनों तरफ की इंसानियत ने अपना रूप दिखाया और राजनीति पीछे रह गई। अपरिपक्व और अलोकतांत्रिक राजनीति के भरोसे संबंध नहीं सुधारे जा सकते। इसका एक ही तरीका है, दोनों देशों के लोगों का मेल-मिलाप व संवाद बढ़ाया जाए। राजनीति यही नहीं होने देना चाहती। क्रिकेट व फिल्म सितारों को आमंत्रित करने की खबर उड़ाकर फिर वह अपनी कोठरी में ठिठक गई लगती है।

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