5 दिसंबर 2025,

शुक्रवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

पत्रिका में प्रकाशित अग्रलेख- गुणवान ‘रतन’

बहुत से सफल और चर्चित व्यक्ति दुनिया छोड़ जाते हैं। लोग उन्हीं को ज्यादा याद रखते हैं, जिनमें मानवीय गुण ज्यादा हों।

2 min read
Google source verification

भुवनेश जैन
बहुत से सफल और चर्चित व्यक्ति दुनिया छोड़ जाते हैं। लोग उन्हीं को ज्यादा याद रखते हैं, जिनमें मानवीय गुण ज्यादा हों। व्यक्तिगत सफलताएं जल्द ही भुला दी जाती हैं। टाटा समूह को कामयाबी के शिखर पर ले जाने वाले रतन टाटा को भी उनकी उद्यमशीलता से ज्यादा सादगी, संवेदनशीलता व साहसिकता के लिए स्मरण किया जाएगा।

जब 1961 में चौबीस वर्षीय रतन टाटा ने विद्यार्थी जीवन के बाद टाटा समूह में काम शुरू किया तो उन्होंने पारिवारिक प्रतिष्ठान होने के बावजूद मैनेजमेंट ट्रेनी के रूप में छोटे कर्मचारियों के साथ काम करना पसंद किया। ऐसा करके ना सिर्फ उन्होंने कर्मचारियों को नजदीक से समझा, बल्कि निर्णयों में उनकी भागीदारी भी बढ़ाई। बाद के वर्षों में भी जब भी समूह के सामने कोई बड़ी समस्या आती तो वे कर्मचारियों के बीच मशविरा करने पहुंच जाते और फिर निर्णय लेते।

सादगी तो उन्हें बचपन से पसंद थी। जब उन्हें महंगी गाड़ियां स्कूल छोड़ने जाती थीं, तब वे विरोध करते थे। सार्वजनिक समारोह में उन्हें अक्सर छोटी कार से बिना ताम-झाम पहुंचते देख लोग चकित रह जाते थे।

धन अक्सर अहंकार अपने साथ लाता है पर रतन टाटा अपने व्यवहार से इस बात को गलत साबित करते रहे। एक तरफ वे अपनी उद्यमशीलता के बूते पर टाटा समूह को ऊंचाइयों पर ले जा रहे थे, वहीं साथ-साथ उनमें संवेदनशीलता बढ़ती जा रही थी।

सफलता की ऊंचाइयों पर पहुंच कर भी उन्होंने न्यूयार्क के कार्नल विश्वविद्यालय और हॉर्वर्ड बिजनेस स्कूल को हमेशा याद रखा और इन संस्थानों की इतनी मदद की, जितनी उनके पूरे इतिहास में किसी दानदाता ने नहीं की। भारत में भी शिक्षा, चिकित्सा, ग्रामीण विकास जैसे क्षेत्रों में वे खुले हाथ योगदान देते रहे।

उनकी संवेदनशीलता का ही एक उदाहरण है कि जब उन्होंने एक परिवार को बारिश में भीगते देखा तो संकल्प किया कि वे ऐसी सस्ती कार बनाएंगे, जिसको साधारण नागरिक भी खरीद सके। ‘टाटा नैनो’ कार उनके इसी विचार की उपज थी, जो ‘लखटकिया गाड़ी’ के नाम से लोकप्रिय हुई।

लगभग 100 देशों में फैले टाटा समूह के 30 लाख करोड़ के साम्राज्य को उन्होंने चेयरमैन के रूप में 21 वर्षों तक संभाला। लेकिन जैसे ही वे 75 वर्ष के हुए, उन्होंने स्वेच्छा से यह पद त्याग दिया। इस पद पर नियुक्ति को लेकर कई विवाद भी हुए और आखिर चार साल बाद उन्हें ही यह पद संभालना पड़ा।

हालांकि उन्होंने केवल चार माह कार्यवाहक चेयरमैन के रूप में यह दायित्व संभाला। टाटा समूह में उन्होंने कई बार साहसिक फैसले बिना हिचके लिए। साहसिकता उनके व्यक्तित्व में कूट-कूट कर भरी हुई थी। तभी तो 69 साल की उम्र में उन्होंने एफ-16 फाल्कन जेट उड़ाकर पूरी दुनिया को हतप्रभ कर दिया।

उद्यमशीलता के साथ मानवीय गुणों का संयोग दुर्लभ ही मिलता है। इन्हीं गुणों के कारण ऐसे लोग जनता के प्रिय हो जाते हैं। रतन टाटा का देश के विकास में योगदान को तो भुलाया नहीं जा सकता, अपनी सादगी, सरलता और संवेदनशीलता के कारण भी वे युवा उद्यमियों के प्रेरणा-स्रोत बने रहेंगे। शत-शत नमन!

यह भी पढ़ें: भ्रष्टाचार का जल-भराव