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Patrika opinion : दिव्यांगों को हर स्तर पर दें प्रोत्साहन

Patrika opinion : पैरालंपिक में भारत के खिलाडिय़ों का 19 पदक (5 स्वर्ण, 8 रजत, 6 कांस्य) जीतना किसी चमत्कार से कम नहीं है। भारत 1968 से इन खेलों में शिरकत कर रहा है। 2021 से पहले तक किसी आयोजन में उसकी गिनती 4 पदक से आगे नहीं बढ़ी थी।

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Patrika opinion : दिव्यांगों को हर स्तर पर दें प्रोत्साहन

Patrika opinion : दिव्यांगों को हर स्तर पर दें प्रोत्साहन

Patrika opinion : टोक्यो ओलंपिक के बाद पैरालंपिक (Tokyo Paralympics) में भारतीय खिलाडिय़ों (Indian paralympic medallist) के ऐतिहासिक प्रदर्शन ने देश की खेल संस्कृति के लिए संभावनाओं के नए दरवाजे खोल दिए हैं। पैरालंपिक में भारत के खिलाडिय़ों का 19 पदक (5 स्वर्ण, 8 रजत, 6 कांस्य) जीतना किसी चमत्कार से कम नहीं है। भारत 1968 से इन खेलों में शिरकत कर रहा है। 2021 से पहले तक किसी आयोजन में उसकी गिनती 4 पदक से आगे नहीं बढ़ी थी। इस बार हमारे होनहार खिलाड़ी पिछली सर्वोच्च पदक संख्या से चार गुना से भी आगे निकल गए। उन्होंने साबित कर दिया कि जिनके हौसले बुलंद होते हैं, वे सफलता के नए अध्याय रचते हैं। इन खिलाडिय़ों की उपलब्धियां इस लिहाज से भी उल्लेखनीय हैं कि भारत में दिव्यांगों की एक बड़ी आबादी आज भी मूलभूत संसाधनों और सुविधाओं से दूर है। सरकारी स्तर पर भी उन्हें उपेक्षाएं झेलनी पड़ती हैं।

यह विडम्बना नहीं तो और क्या है कि पैरालंपिक में अवनि लेखरा, देवेंद्र झाझडिय़ा और सुंदर गुर्जर के पदक जीतने के बाद खुलासा होता है कि राजस्थान सरकार ने काफी समय से अपने इन तीनों कर्मचारियों को वेतन का भुगतान नहीं किया था। पैरालंपिक में तीनों के नाम चमके तो सरकारी महकमे की नींद टूटी। आनन-फानन में वेतन जारी किया गया। कल्पना की जा सकती है कि जब विशेष दिव्यांगों को ऐसी दिक्कतों से जूझना पड़ता है, तो आम दिव्यांगों की क्या दशा होगी। दिव्यांगों के साथ सम्मानजनक और समानता का व्यवहार करने के नारे तो खूब लगाए जाते हैं, जमीनी हकीकत कुछ और है।

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विभिन्न कानूनों व योजनाओं के जरिए इस वर्ग को अवसर सुलभ कराने की कोशिशें जरूर की गईं, लेकिन ढांचागत, संस्थागत व व्यवहार संबंधी बाधाएं दूर करने में हम काफी पीछे हैं। दस साल पहले की जनगणना के मुताबिक देश में 2.68 करोड़ दिव्यांगों में से 20 फीसदी चलने-फिरने में अक्षम हैं, जबकि 19 फीसदी देख नहीं सकते। केंद्र सरकार ने 2015 में सुगम भारत अभियान शुरू किया था। इसका मकसद सार्वजनिक स्थलों, परिवहन और आइटी सेवाओं को दिव्यांगों के अनुकूल बनाना था। इस अभियान की सुस्ती का सच एक संसदीय समिति की रिपोर्ट में उजागर हो चुका है। इसके मुताबिक छह साल में सिर्फ 29.7 प्रतिशत भवन ही दिव्यांगों के लिए सुगम बनाए जा सके हैं।

पैरालंपिक में भारतीय खिलाडिय़ों के शानदार प्रदर्शन की पृष्ठभूमि में देश के दिव्यांगों के लिए ठोस योजनाओं और नीतियों की जरूरत है। मूलभूत सुविधाओं व संसाधनों के साथ उनकी खेल संबंधी जरूरतों को भी पूरा किया जाएगा, तो भावी खेल आयोजनों में कई और होनहार देश का नाम रोशन करेंगे।