28 दिसंबर 2025,

रविवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

Patrika Opinion : ओपेक पर अंकुश ही देगा स्थायी समाधान

उत्पादन बढ़ाने और कच्चे तेल की कीमतें घटाने से ओपेक के इनकार के बाद भारत, अमरीका समेत कुछ देशों को अपने रणनीतिक तेल भंडारों से तेल निकालने का फैसला करना पड़ा। कहा जा रहा है कि यह तेल बाजार में आने से पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों से राहत मिलेगी। यह राहत किस कीमत पर मिलेगी, इस पर भी गौर करने की जरूरत है।

2 min read
Google source verification
OPEC

OPEC

तेल के उत्पादन और कच्चे तेल की कीमतों पर ओपेक (तेल निर्यातक देशों का समूह) की मनमानी पूरी दुनिया के लिए चिंता का कारण बनी हुई है। मांग के अनुपात में तेल की आपूर्ति नहीं होने से दुनियाभर में पेट्रोल-डीजल और गैस की कीमतें आसमान पर हैं। उत्पादन बढ़ाने और कच्चे तेल की कीमतें घटाने से ओपेक के इनकार के बाद भारत, अमरीका समेत कुछ देशों को अपने रणनीतिक तेल भंडारों से तेल निकालने का फैसला करना पड़ा। कहा जा रहा है कि यह तेल बाजार में आने से पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों से राहत मिलेगी। यह राहत किस कीमत पर मिलेगी, इस पर भी गौर करने की जरूरत है। रणनीतिक भंडार आपातकाल के लिए होते हैं, मसलन युद्ध या कोई ऐसी विकट स्थिति जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल की आपूर्ति संभव नहीं हो।

इजरायल के खिलाफ मिस्र और सीरिया के युद्ध के दौरान 1973 में दुनिया ने अपूर्व तेल संकट झेला था। इसके बाद ऐसे संकट से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आइईए) की स्थापना की गई और रणनीतिक तेल भंडारों की शुरुआत हुई। भारत समेत कई देश इस एजेंसी के सदस्य हैं। सभी के लिए कम से कम 90 दिन का तेल भंडार रखना अनिवार्य है। तेल पर मौजूदा खींचतान के बीच भारत को अपने 3.7 करोड़ बैरल के भंडार से 50 लाख बैरल तेल निकालने का फैसला करना पड़ा है। अमरीका के पास 60 करोड़ बैरल का सबसे बड़ा भंडार है। वह 5 करोड़ बैरल निकालेगा। ब्रिटेन, जापान, चीन और दक्षिण कोरिया भी यह कदम उठाने वाले हैं। इससे तेल की कीमतों में फौरी तौर पर थोड़ी राहत भले मिल जाए, समस्या का स्थायी हल दूर की कौड़ी है। स्थायी हल तभी निकलेगा, जब ओपेक की मनमानी पर अंकुश लगाया जाएगा।

ओपेक की आक्रामक नीतियों से निपटने के लिए भारत ने 2018 में अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा मंच की बैठक में तेल खरीदने वाले देशों का समूह बनाने का विचार रखा था, ताकि तेल बेचने वाले देशों से वाजिब शर्तों पर मोलभाव किया जा सके। इस विचार पर आगे बढ़ा जाता तो तेल बाजार पर ओपेक देशों का दबदबा घटाने में मदद मिल सकती थी। सऊदी अरब जैसा बड़ा तेल उत्पादक भारत और जापान से 'एशियाई प्रीमियम' वसूलता है। यानी दूसरे देशों के मुकाबले इन्हें तेल की ज्यादा कीमत चुकानी पड़ती है। इस शोषण के खिलाफ एशियाई देश भी एकजुट नहीं हो पाए हैं। पिछले एक साल में अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें 50 फीसदी से ज्यादा बढ़ चुकी हैं। भावी उत्पादन की रूपरेखा तैयार करने के लिए ओपेक देशों की 2 दिसंबर को बैठक होने वाली है। ओपेक पर समुचित दबाव बनाने का यह एक अवसर हो सकता है।