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Patrika Opinion: मणिपुर हिंसा का समाधान आपसी संवाद से ही संभव

पिछले महीने केन्द्र की पहल पर कुकी, जो-हमार, मैतई और नगा समुदाय के करीब बीस विधायकों ने जातीय संघर्ष का शांतिपूर्ण समाधान ढूंढने के लिए दिल्ली में गृह मंत्रालय के अफसरों के साथ बातचीत की थी। शांति की अपील की गई, लेकिन उसका कोई असर नजर नहीं आ रहा है। बैठक के तीन हफ्ते बाद ही फिर से हिंसा शुरू हो गई।

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जयपुर

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Anil Kailay

Nov 12, 2024

मणिपुर में हिंसा की ताजा घटना ने पिछले कुछ समय से शांत नजर आ रहे पूर्वोत्तर के इस राज्य को एक बार फिर जातीय हिंसा की ओर मोड़ दिया है। यह घटना इसलिए भी चिंताजनक है क्योंकि राज्य में शांति बहाली के केन्द्र सरकार के प्रयासों के बीच यह हिंसक घटना हुई है। यह भी कहा जा सकता है कि संदिग्ध कुकी उग्रवादियों की इस हरकत ने केन्द्र के शांति प्रयासों पर पानी फेर दिया है। मणिपुर में पिछले डेढ़ साल से हिंसा का दौर जारी है। बहुसंख्यक मैतई और अल्पसंख्यक कुकी समुदायों के बीच अधिकारों की इस लड़ाई में अब तक 250 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। दो हजार से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। वहीं साठ हजार से ज्यादा लोग अपना घर-बार छोडक़र राहत शिविरों में रह रहे हैं।

चिंताजनक तथ्य यह भी है कि अब तक पांच सौ से अधिक लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं लेकिन समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है। इसीलिए यह भी लगता है कि राज्य सरकार और केन्द्र सरकार दोनों पक्षों का विश्वास जीतने में कामयाब नहीं हो पा रही हैं। कुकी समुदाय, मैतई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने के विरोध में है। उनका मानना है कि मैतई को जनजाति का दर्जा मिलने से आरक्षण में उनकी हिस्सेदारी कम हो जाएगी। साठ सदस्यीय विधानसभा में भी चालीस सीटें बहुसंख्यक मैतई आबादी वाली इम्फाल घाटी और मणिपुर के मैदानी इलाकों की हैं। कुकी समुदाय पहाड़ी इलाकों में रहता है। दोनों समुदायों के लोग एक-दूसरे के इलाके में जाने का जोखिम नहीं उठा सकते। असल में मणिपुर हिंसा को एक राज्य की समस्या के रूप में देखने के बजाय एक राष्ट्रीय मुद्दे के रूप में समझने की जरूरत है। मणिपुर में शांति और स्थिरता बहाल करना देश की एकता और अखंडता के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। पिछले महीने केन्द्र की पहल पर कुकी, जो-हमार, मैतई और नगा समुदाय के करीब बीस विधायकों ने जातीय संघर्ष का शांतिपूर्ण समाधान ढूंढने के लिए दिल्ली में गृह मंत्रालय के अफसरों के साथ बातचीत की थी। शांति की अपील की गई, लेकिन उसका कोई असर नजर नहीं आ रहा है। बैठक के तीन हफ्ते बाद ही फिर से हिंसा शुरू हो गई।

हिंसा का सबसे बड़ा असर आम जनता पर पड़ा है। घरों, सार्वजनिक संपत्तियों को काफी नुकसान हुआ है। बच्चों की शिक्षा बाधित हो गई है और व्यावसायिक गतिविधियां ठप पड़ी हुई हैं। मणिपुर में शांति स्थापित करने के लिए सभी पक्षों के बीच संवाद सबसे अहम है। केन्द्र और राज्य की सरकार को स्थानीय नेताओं, सामाजिक संगठनों और समुदायों के प्रमुख लोगों को साथ लेकर शांति बहाली की पहल करनी चाहिए।