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Patrika Opinion: आंदोलनों का समाधान सतत संवाद से ही संभव

आंदोलन के बाद राज्य सरकार ने अस्पतालों में सुरक्षा के लिए दीर्घकालिक नीतियों पर विचार, सुरक्षा मानकों में सुधार और डॉक्टरों के लिए विशेष हेल्पलाइन की शुरुआत करने के साथ आपातकालीन स्थितियों से निपटने के लिए नए नियम बनाने का आश्वासन दिया है।

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जयपुर

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Anil Kailay

Oct 22, 2024

कोलकाता के आर.जी. कर अस्पताल की जूनियर महिला डॉक्टर से रेप व हत्या के बाद से जारी गतिरोध खत्म होने को सुखद संकेत ही कहा जाना चाहिए। करीब तीन माह पहले हुई इस वारदात ने न केवल कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े किए बल्कि कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा को लेकर भी कड़े बंदोबस्त की आवश्यकता महसूस की जाने लगी थी। इस घटना की शिकार हुई जूनियर महिला डॉक्टर को न्याय दिलाने के लिए आंदोलनरत डॉक्टरों से सरकारी स्तर पर संवाद का दौर बना रहना भी आंदोलन समाप्ति से जुड़ा अहम पहलू रहा, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता। समझौते की राह भी कुछ ऐसी ही रही, जिसमें आंदोलनरत डॉक्टर और सरकार दोनों ही अपना पक्ष रखने में कामयाब हुए।

आर.जी. कर अस्पताल में हुई इस घटना की गूंज देश भर में उठी थी। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आरोपी को न केवल सख्त से सख्त सजा दिलाने का ऐलान किया बल्कि मामले की जांच सीबीआइ से कराने की घोषणा के रूप में सकारात्मक पहल भी की। संतोष की बात यह भी है कि पश्चिम बंगाल सरकार ने भी आंदोलन को दबाने के प्रयास करने के बजाय डॉक्टरों की चिंताओं से खुद को जोड़े रखा। डॉक्टरों के इस लम्बे आंदोलन को शांतिपूर्ण ढंग से समाप्त कराकर सीएम ममता बनर्जी ने निश्चित रूप से विपक्षी दलों के मंसूबों पर भी पानी फेरा है। विपक्षी दल इस मामले को राज्य की सरकार के खिलाफ एक बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश में थे। इतना भी तय था कि आंदोलन और लंबा खिंचता, तो राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं के बाधित होने से जनता के बीच असंतोष बढ़ सकता था। आंदोलनकारी डॉक्टर दस सूत्री मांगों में से अधिकांश मांगें तो मनवाने में कामयाब हो गए लेकिन राज्य के स्वास्थ्य सचिव को बदलने की सबसे बड़ी मांग को सरकार ने खारिज कर दिया। आंदोलन के बाद राज्य सरकार ने अस्पतालों में सुरक्षा के लिए दीर्घकालिक नीतियों पर विचार, सुरक्षा मानकों में सुधार और डॉक्टरों के लिए विशेष हेल्पलाइन की शुरुआत करने के साथ आपातकालीन स्थितियों से निपटने के लिए नए नियम बनाने का आश्वासन दिया है।

आंदोलनरत डॉक्टरों से किए गए वादे पूरे होते हैं या अधूरे रहते हैं, यह तो समय ही बताएगा। यह जरूर कहा जा सकता है कि किसी भी आंदोलन का समाधान बातचीत से ही संभव है। चिकित्सा जैसी आपातकालीन सेवाओं को तो आंदोलनों से दूर ही रखा जाना चाहिए। यह तब ही संभव हो सकता है जब सरकारी नुमाइंदे व चिकित्सक दोनों ही परेशान मरीजों और उनके परिजनों की जगह खुद को रख कर देखें।