
विलुप्त हो रहे फुटपाथ, कैसे मिले पैदल को अधिकार
डॉ. विवेक एस. अग्रवाल
संचार और शहरी
स्वास्थ्य विशेषज्ञ
केन्द्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान के अध्ययन के अनुसार पैदल चलने वाले ९० प्रतिशत लोग चलते वक्त स्वयं को असुरक्षित महसूस करते हैं। कई बार जारी किए गए दिशा-निर्देशों और कानूनी प्रावधानों के बावजूद पैदल चलने वाली आबादी के लिए उपयुक्त मार्ग विकसित नहीं हुआ है। फुटपाथ या तो हैं ही नहीं और यदि हैं भी तो इनकी चौड़ाई बढऩे की जगह निरंतर कम होती जा रही है। फुटपाथ के अभाव में पदयात्री के पास मुख्य सड़क पर चलने के अतिरिक्त कोई विकल्प ही नहीं रहता। ऐसे में वह हादसे का शिकार भी हो जाता है। शहरीकरण की दौड़ में सबसे अधिक ध्यान कहीं दिया जाता है, तो वह है सड़कों को चौड़ा करने के काम पर। सड़कों के दोनों ओर विलुप्त होते फुटपाथ बहुसंख्यक आबादी को पल-पल असुरक्षा की ओर धकेल रहे हैं।
सरकारी आंकड़ों को ही सही मानें तो सड़क हादसों में मृत्यु की दर लगभग १९ प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से बढ़ रही है। करीब साढ़े चार सौ व्यक्ति प्रतिदिन या यों कहें कि औसतन २० व्यक्ति प्रति घंटे सड़क हादसों का शिकार हो जाते हैं। दुर्भाग्य से सड़कों के विकास के साथ-साथ पैदल चलने वालों की हादसों में मौत का आंकड़ा भी बढ़ता जा रहा है। औसतन ६०-७० जने प्रतिदिन पैदल चलते हुए हादसों का शिकार बन मौत के मुंह में चले जाते हैं। गौर करने वाली बात यह है कि लगभग 30 फीसदी कामकाजी आबादी और ६० फीसदी छात्र-छात्राओं की आबादी पैदल ही चलती है।
Updated on:
19 Sept 2022 09:33 pm
Published on:
19 Sept 2022 06:03 pm
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