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- प्रभात झा
वर्ष 2014 में मई माह में देश में एक नई बयार बही। संकेत साफ था कि सत्ता समाज की सेवा के लिए आई है न कि सत्ता की सेवा के लिए। सत्ता को वर्तमान सरकार ने सेवा का माध्यम माना न कि सत्ता में पुन: आने का न्योता। समाज को भी विचार करना होगा कि देश में सत्ता, सेवा के लिए है या सत्ता से सत्ता में आने के लिए। आज जो दल सत्ता में है, वह इस विश्वास से काम कर रहा है कि वह समाज की सेवा करेगा तो समाज अपना कत्र्तव्य अवश्य करेगा। जरूरत सतर्क रहने की है, कहीं उसके मन में समाज की सेवा का अहंकार न आ जाए।
सत्ता का समाज पर भरोसा बनाए रखना लोकतंत्र को कभी बीमार नहीं होने देता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के नागरिकों की सामाजिक खुशहाली और राष्ट्रीय गौरव को पूर्णता देने की दिशा में जो कदम उठाए हैं, वे भले ही कठोर हों, पर लंबे अंतराल में आम नागरिकों के हित में होंगे। विरोधियों की चीत्कार से न घबराते हुए समाज चीत्कार न करे, इसकी चिंता अधिक की गई। वर्तमान सत्ताधारियों की सोच देश की समस्याओं के मूलत: समाधान की है न कि तात्कालिक समाधान की। यही कारण है कि सरकार निर्भीकता से फैसले ले रही है और सत्ताधारी दल जनसहयोग और समाज सहयोग से विस्तार कर रहा है।
समाज में ‘अपराजेय’ का स्थान जो सत्ता या समाधान बना लेते हैं वे स्थायी हो जाते हैं, और प्रधानमंत्री इसी दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं। उन्होंने कठोर निर्णय लेते समय कभी 2019 की चिंता नहीं की। उन्होंने चिंता की तो सिर्फ भारत के नागरिकों की। वर्तमान सत्ता के विरोधी चाहे जो आरोप लगाएं और लगवाएं, पर आजादी के बाद यह पहली सरकार है जो जनता की परीक्षा में निरंतर उत्तीर्ण हो रही है। विरोधियों की सोच के केंद्र में सत्ता है, पर वर्तमान सरकार के निर्णयों के केंद्र में समाज, उसकी सेवा और राष्ट्र की साख है। विपक्षियों को समझना चाहिए कि जागरूक जनता को अब न सत्ताधारी गुमराह कर सकते हैं और न विपक्ष। समाज जानता है कि आने वाले कल में उसका और राष्ट्र का भविष्य किन हाथों में सुरक्षित रहेगा।
भारत के दो घोष वाक्य हैं - ‘सत्यमेव जयते’ और ‘सत्यम शिवम सुंदरम’। इन वाक्यों की प्रकृति मन में रखते हुए यदि वर्तमान सरकार कार्य करती रही तो समाज निरंतर अवसर प्रदान करता रहेगा। राष्ट्र सदैव विनम्रता से हर उस व्यक्ति, समाज, संस्था और नेतृत्व का ऋणी रहता है, जो उसकी रक्षा के लिए कत्र्तव्य पथ पर अडिग रहता है।
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