प्रजनन स्थल से सर्दियों के प्रवास स्थल के बीच के ये हवाई मार्ग ‘फ्लाईवेज’ कहलाते हैं। इस मार्ग पर भारत, सेंट्रल एशियन फ्लाईवे पर पड़ता है। 250 से ज्यादा प्रजातियों के पक्षियों के लिए यह सबसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है। ये या तो इस मार्ग से होकर यात्रा करते हैं या फिर भारत के जलाशय ही उनका गंतव्य होते हैं। देखा गया है कि खास तौर पर लंबी दूरी की यात्रा वाले पक्षी जो सेंट्रल एशियाई फ्लाईवे का इस्तेमाल करते हैं, बहुत अधिक ऊंचाई पर उड़ान भरते हैं। बत्तखों व कुछ कलहंसों के उडऩे की गति 70-80 किलोमीटर प्रति घंटा होती है और वे करीब 6 से 12 घंटे प्रतिदिन यात्रा करते हैं। इनमें से कुछ तो एक दिन में 800 किमी. से ज्यादा लंबी दूरी तय करते हैं। वैज्ञानिकों के अध्ययन में पाया गया है कि प्रवासी पक्षी प्रजनन के लिए हर साल न केवल एक ही स्थान पर लौटते हैं बल्कि घोंसला बनाने की जगह भी नहीं बदलते। कुछ तो फुटबॉल मैदान जैसी छोटी जगह पर लौटते हैं और साल-दर-साल उनके पहुंचने का दिन भी एक ही रहता है।
प्रवासी पक्षी पारिस्थितिकी तंत्र में कई आवश्यक एवं अपरिहार्य भूमिकाएं निभाते हैं। ऐसे पक्षी अपने बच्चों के पालन-पोषण के दौरान पेस्ट कंट्रोल एजेंट की भी भूमिका निभाते हैं, क्योंकि इस प्रक्रिया में वे पर्यावरण एवं फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीड़ों व अन्य जीवों का भक्षण भी करते हैं। टिड्डियों के हमले के विरुद्ध भी वे सबसे कारगर रक्षक साबित होते हैं। पक्षियों की बीट से बनी खाद भी नाइट्रोजन से भरपूर होती है और जैविक खाद का काम करती है। अंडों के छिलके कैल्सियम व अन्य खनिज तत्वों का योगदान देते हैं। प्रवासी पक्षी बीजों के प्रसार में भी योगदान देते हैं। इससे यात्रा मार्ग पर जैव विविधता बनी रहती है। बत्तखें एक से दूसरे जलाशयों में मछली के अंडे ले जाने की वाहक बनती हैं।
जाहिर है कि प्रवासी पक्षियों का प्रसार क्षेत्र में पर्यावरण की स्थिति का विश्लेषण करने में सहायक है। जैसा कि स्पष्ट है प्रवासी पक्षियों में से अधिकांश अपने जीवन चक्र में जलीय पारिस्थितिकी तंत्र पर निर्भर हैं। अंतर्देशीय व तटीय आद्र्र भूमि, नदी, झील व तालाब उनके भोजन, पेयजल या आवास के लिए अत्यावश्यक हैं। साथ ही लंबी दूरी की यात्रा के दौरान ये उनके विश्राम स्थल भी हैं। सेंट्रल एशियाई फ्लाईवे मार्ग पर कुछ प्रमुख जलीय तंत्र हैं द्गसलीम अली पक्षी अभयारण्य-गोवा, कुमारकॉम पक्षी अभयारण्य-केरल, वेदानथंगल पक्षी अभयारण्य-तमिलनाडु, पुलिकट झील- तमिलनाडु-आंध्र सीमा, ओडिशा का चिल्का लगून व राजस्थान का केवलादेव घना पक्षी विहार।
दुर्भाग्यवश, भारत के सभी जलाशय संकटग्रस्त हैं, खास तौर पर विषाक्त प्रदूषकों के कारण। जलाशयों में भारी प्रदूषण और भारी मात्रा में कीटनाशकों की मौजूदगी के चलते अंडे सेने की प्रक्रिया पर दुष्प्रभाव पड़ता है व पक्षियों के बच्चों की मृत्यु हो जाती है। पक्षियों को लंबे समय तक ऐसी मछलियों व कीड़ों के आहार पर निर्भर रहना पड़ता है, जिनमें भारी धातु व विषैले पदार्थ पाए जाते हैं। प्रवास लंबी व थकाऊ यात्रा है। ग्लोबल वार्मिंग कोई भ्रम नहीं है। वर्षा कभी कम तो कभी ज्यादा है, आर्द्र भूमि सूख रही हैं। विश्व स्तर पर कुछ बदलाव आए हैं। पक्षियों के प्रजनन क्षेत्र बदले हैं। हमें हमारी आर्द्र भूमि का संरक्षण करना होगा ताकि मेहमानों के लिए खाना उपलब्ध रहे। वे सेहतमंद होकर अपने प्रजनन क्षेत्र की ओर वापसी की उड़ान भरेंगे तभी स्वस्थ संतान को जन्म देंगे। पंखों वाले अंतरराष्ट्रीय मेहमानों के आने में 5 महीने का समय है। आइए, उनका स्वागत वैसे ही करें, जैसे जी-20 प्रतिनिधमंडल का किया जा रहा है। अगर हम शहर को खूबसूरत बना सकते हैं तो निश्चित रूप से अपने तालाबों, झीलों, नदियों और गांवों के जलाशयों को भी साफ कर सकते हैं ताकि पंखों वाले जी-20 प्रतिनिधिमंडल का स्वागत किया जा सके!