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Patrika Opinion: युद्ध से नहीं, बातचीत से ही संभव विवादों का समाधान

इजरायल पूरी ताकत लगाने के बावजूद अपने मिशन में कामयाब नहीं हो पाया है। न तो वह हमास को खत्म कर पाया है और न ही बंधक बनाए गए अपने लोगों को छुड़ा पाया है।

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Nitin Kumar

Nov 20, 2023

Patrika Opinion: युद्ध से नहीं, बातचीत से ही संभव विवादों का समाधान

Patrika Opinion: युद्ध से नहीं, बातचीत से ही संभव विवादों का समाधान

इजरायल-हमास के बीच जारी युद्ध किस करवट बैठेगा, इसकी कोई भविष्यवाणी नहीं कर सकता। डेढ़ माह से चल रहे इस युद्ध का सार अभी तक यही निकला है कि इजरायल पूरी ताकत लगाने के बावजूद अपने मिशन में कामयाब नहीं हो पाया है। न तो वह हमास को खत्म कर पाया है और न ही बंधक बनाए गए अपने लोगों को छुड़ा पाया है। पैंतालीस दिन से चल रहे इस युद्ध का एक और निचोड़ सामने आ रहा है। वह यह कि करीब चौदह हजार लोगों की मौत हो चुकी है और इससे दोगुने घायल हुए हैं। खास बात यह है कि मरने वालों में अधिकतर महिलाएं और बच्चे हैं।

इस युद्ध से जुड़े अनेक सवाल अहम हैं, लेकिन इनका जवाब देने वाला कोई नहीं है। दो देशों के बीच युद्ध में निर्णायक अथवा मध्यस्थ की भूमिका निभाने वाला संयुक्त राष्ट्र भी युद्ध समाप्त करने की अपील से अधिक कुछ नहीं कर पा रहा। पहले भी ऐसे मौकों पर वह कुछ नहीं कर पाया था। इसलिए उसकी प्रासंगिकता पर भी सवाल उठते रहते हैं। अहम सवाल यह भी है कि क्या युद्ध के बिना बंधकों को नहीं छुड़ाया जा सकता? गाजा पट्टी में मानवीय सहायता की अपील करने वाला अमरीका, इजरायल को हथियार और गोला-बारूद मुहैया करवा रहा है। वही गोला-बारूद गाजा पट्टी के निहत्थे लोगों पर दागा जा रहा है। ऐसे में युद्ध को समाप्त करने की कोई भी पहल सार्थक साबित हो तो कैसे? उधर, रूस और यूक्रेन युद्ध भी 600 से अधिक दिन से चल रहा है। इस युद्ध में दस हजार से अधिक मौतें हो चुकी हैं। इस युद्ध में एक तरफ रूस है तो दूसरी तरफ यूक्रेन है, जिसके पीछे अमरीका खड़ा है। नि:संदेह हमास ने इजरायल पर जिस तरह की बर्बरता की, उसकी जितनी निंदा की जाए उतनी ही कम है। सवाल यह है कि गाजा पट्टी पर इजरायली हमलों में निर्दोष लोग जिस तरह से मारे जा रहे हैं, क्या बदले की कार्रवाई की आड़ में वह भी हमास जैसी बर्बरता नहीं है? शरणार्थी शिविरों, स्कूलों और अस्पतालों पर बमबारी को तो किसी भी तरह से न्यायसंगत नहीं माना जा सकता। यह भी बर्बरता ही है, जिसका समर्थन नहीं किया जा सकता। इजरायल पर हमले के लिए हमास दोषी है, तो उसे सबक सिखाया जा सकता है। लेकिन, जवाबी कार्रवाई के नाम पर निहत्थे लोगों को निशाना बनाने का तो कोई समर्थन कैसे कर सकता है?

असल में समस्याओं को उलझाए रखने से अचानक विस्फोटक हालात पैदा हो जाते हैं। इजरायल और फिलिस्तीन के बीच चल रहे विवाद के साथ भी यही हुआ है। विवाद चाहे जितने जटिल हों, उनको बातचीत के जरिए ही सुलझाया जा सकता है। बंदूक की गोली से किसी भी समस्या का स्थायी समाधान नहीं होता। यह बात दोनों पक्षों को समझनी होगी।