कुछ समय पूर्व, भारत की प्राचीन आत्मा का एक और प्रतीक भी अपने उचित स्थान पर लौट आया। नए संसद भवन के उद्घाटन अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सेंगोल की स्थापना की- एक पवित्र राजदंड, जिसे वर्ष 1947 में तमिल आधीनमों ने प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को सत्ता के धर्मसम्मत हस्तांतरण के प्रतीक रूप में भेंट किया था। हालांकि, दशकों तक यह सेंगोल को भुला दिया गया। न केवल उसे गलत नाम से जाना गया, बल्कि एक सामान्य छड़ी मानकर उपेक्षित कर दिया गया। सेंगोल का पुनस्र्थापन केवल स्मृति का कार्य नहीं था, बल्कि यह एक सशक्त घोषणा थी कि अब भारत अपने आपको उधार ली गई दृष्टि से नहीं देखेगा।
इन सभी क्षणों ने मिलकर एक गहरे सांस्कृतिक पुनर्जागरण का संकेत दिया। एक ऐसा सभ्यतागत जागरण, जो ग्यारह वर्षों में आकार लेता गया। वर्ष 2014 में आरंभ से ही यह स्पष्ट हो गया था कि मोदी सरकार के अधीन संस्कृति केवल एक सजावटी तत्व नहीं रहेगी, बल्कि राष्ट्र की आधारशिला बनेगी। वर्ष 2015 में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की शुरुआत ने पूरी दुनिया में करोड़ों लोगों को एक ऐसे प्राचीन भारतीय अभ्यास से जोड़ा, जो शरीर, मन और आत्मा को एक सूत्र में पिरोता है। परंपरागत ज्ञान प्रणालियों के पुनरुत्थान को संस्थागत बल मिला, जब आयुष मंत्रालय की स्थापना हुई, जिसने आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी को राष्ट्रीय और वैश्विक मंचों तक पहुंचाया। साथ ही, सरकार ने संस्कृत, तमिल, पाली और प्राकृत जैसी शास्त्रीय भाषाओं के संरक्षण के लिए मिशन आरंभ किए।
प्राचीन पांडुलिपियों के डिजिटलीकरण तथा लुप्तप्राय लोक-कलाओं और शिल्पों के संरक्षण को बढ़ावा दिया। भारत के स्मारकों ने भी एक नई ऊर्जा के साथ सांस लेना शुरू किया। वर्ष 2018 में जब स्टैच्यू ऑफ यूनिटी का अनावरण हुआ। लंबी अवधि तक इतिहास की छाया में रहे सरदार वल्लभभाई पटेल को राष्ट्रीय स्मृति के केंद्र में प्रतिष्ठित किया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा विश्व नेताओं को दिए गए राजकीय उपहार, जैसे पट्टचित्र पेंटिंग्स, लाख के खिलौने या अन्य भारतीय शिल्प, केवल भेंट नहीं थे, बल्कि वो भारत के कारीगरों की कहानियां और कालातीत परंपराएं अपने साथ लेकर जाते थे।
वर्ष 2023 में भारत की जी-20 अध्यक्षता एक और सांस्कृतिक मील का पत्थर बन गई। यह केवल दिल्ली के कूटनीतिक गलियारों तक सीमित नहीं रही, बल्कि पूरे देश में सांस्कृतिक पहचान का उत्सव बन गई। इसके अलावा इस दौर में 600 से अधिक चुराई गई भारतीय मूर्तियां, शिल्पकृतियां और पांडुलिपियां विदेशी संग्रहालयों और निजी संग्रहकर्ताओं से वापस भारत लाई गईं। इन 11 वर्षों में, मोदी युग ने केवल सांस्कृतिक नीति को संचालित नहीं किया, बल्कि एक सांस्कृतिक चेतना को जागृत किया है। जो कार्य पुनस्र्थापन के रूप में शुरू हुआ था, वह अब एक पुनर्जागरण बन गया है। जो कभी उपेक्षित किया गया था, वह अब राष्ट्रीय पहचान का केंद्रीय तत्व बन चुका है।