21 दिसंबर 2025,

रविवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

Patrika Opinion: आपसी सहमति से हल हो नदी जल विवाद

दोनों राज्यों में पानी का मसला जितना भावनात्मक है, उतना ही राजनीतिक भी। दोनों राज्यों के नेता इस मसले को अपने हिसाब से भुनाते भी हैं। राजनीतिक हितों के कारण नेता भी जोखिम लेने से कतराते हैं। कावेरी के अलावा दूसरी नदियों के जल बंटवारे को लेकर भी राज्यों के बीच तकरार है।

2 min read
Google source verification

image

Nitin Kumar

Aug 16, 2023

Patrika Opinion: आपसी सहमति से हल हो नदी जल विवाद

Patrika Opinion: आपसी सहमति से हल हो नदी जल विवाद

कावेरी नदी जल बंटवारे को लेकर एक बार फिर दक्षिण के दो प्रमुख राज्यों के बीच राजनीतिक और कानूनी लड़ाई की तलवारें खिंच गई हैं। इस साल दक्षिण-पश्चिम मानसून के देरी से प्रभावी होने और सामान्य वर्षों की अपेक्षा कम बारिश होने के कारण दोनों राज्यों में पानी के बंटवारे को लेकर तकरार की स्थिति बन गई है। कर्नाटक कावेरी नदी पर बने अपने बांधों में कम पानी होने का हवाला देकर तमिलनाडु के लिए निर्धारित मात्रा में पानी नहीं छोड़ रहा है तो तमिलनाडु अपने हिस्से के पानी की मांग को लेकर अब शीर्ष अदालत पहुंच चुका है। इससे पहले तमिलनाडु ने कावेरी जल प्रबंधन समिति की बैठक में भी अपने हिस्से का पानी न मिलने का मुद्दा उठाया था और समिति से कर्नाटक को उचित निर्देश देने की मांग की थी। कर्नाटक का तर्क है कि सामान्य बारिश की स्थिति में कावेरी पंचाट के अंतिम फैसले के मुताबिक तमिलनाडु के लिए निर्धारित मात्रा में पानी छोड़ा जाता है पर इस साल संकट की स्थिति है और दोनों राज्यों को मिलकर इसका सामना करना चाहिए।

दरअसल, दोनों राज्यों के बीच जल बंटवारे के पुराने मामले के निपटारे के लिए गठित कावेरी पंचाट के अंतिम फैसले में नदी से जुड़े राज्यों के बीच मानसून के दौरान होने वाली बारिश के पानी की मात्रा का आवंटन किया गया था। सामान्य बारिश की स्थिति में दोनों राज्यों के बीच पानी को लेकर अमूमन तकरार नहीं होती। कई बार तमिलनाडु को तय हिस्से से ज्यादा पानी भी मिल जाता है। पर सूखे या कम बारिश वाली स्थिति में तस्वीर काफी अलग हो जाती है। इस स्थिति में पानी के बंटवारे के लिए एक स्वीकार्य हल की तलाश अब भी अधूरी है। खेती और पेयजल के लिए दोनों राज्यों को पानी की समान जरूरत है। कानूनी लड़ाई के मुकाबले आपसी सहमति से इसका हल ज्यादा आसानी से तलाशा जा सकता है। पर नेता और सरकार इसका समाधान नहीं तलाश पा रहे हैं।

दोनों राज्यों में पानी का मसला जितना भावनात्मक है, उतना ही राजनीतिक भी। दोनों राज्यों के नेता इस मसले को अपने हिसाब से भुनाते भी हैं। राजनीतिक हितों के कारण नेता भी जोखिम लेने से कतराते हैं। कावेरी के अलावा दूसरी नदियों के जल बंटवारे को लेकर भी राज्यों के बीच तकरार है। इस तरह के विवादों का समाधान बेहतर जल प्रबंधन और आपसी बातचीत से तलाशा जा सकता है। नदियों में पानी की उपलब्धता मानसून और बारिश पर निर्भर करती है तो हालात के हिसाब से संबंधित पक्षों को समाधान तलाशने का प्रयास करना चाहिए। राजनीतिक वाकयुद्ध के बजाय संबंधित राज्यों के नेताओं को नई पहल कर स्थायी समाधान तलाशना चाहिए। बातचीत बेहतर विकल्प हो सकता है।