अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थ बढ़ा रहे हैं स्वास्थ्य से जुड़ी चुनौतियां
हानिकारक खाद्य पदार्थ प्रचुर मात्रा में और सस्ते उपलब्ध हैं, वहीं संतुलित और स्वस्थ आहार के लिए आवश्यक खाद्य पदार्थ कई लोगों की पहुंच से बाहर हो रहे हैं। यह चिंता का विषय है कि आहार से संबंधित गैर-संचारी रोगों का बढ़ता बोझ देश की स्वास्थ्य प्रणाली पर और अधिक दबाव बना रहा है।
अमृत सिंह निदेशक, कट्स
सिमी टी.बी. वरिष्ठ नीति विश्लेषक, कट्स
इस बार विश्व खाद्य दिवस ऐसे समय में मनाया जा रहा है, जब भारत कुपोषण और हानिकारक भोजन से जुड़े गैर-संचारी रोगों में बढ़ोतरी की दोहरी चुनौती से जूझ रहा है। इस वर्ष का विषय ‘बेहतर जीवन और बेहतर भविष्य के लिए खाद्य का अधिकार’, इस बात की ओर इंगित करता है कि हर व्यक्ति के लिए पौष्टिक आहार तक पहुंच एक मौलिक अधिकार होना चाहिए, जो एक स्वस्थ और बेहतर भविष्य के लिए मार्ग प्रशस्त कर सके। यह विडंबना है कि प्रमुख खाद्य उत्पादक होने के बावजूद भारत की बड़ी आबादी अब भी खाद्य असुरक्षा और कुपोषण से जूझ रही है। 2024 की विश्व खाद्य सुरक्षा और पोषण स्थिति रिपोर्ट (एसओएफआइ) के अनुसार, 55.6 प्रतिशत यानी 78 करोड़ से अधिक भारतीय पौष्टिक आहार का खर्चा उठाने में असमर्थ हैं। भारत में विशेष रूप से बच्चों में मोटापे की दर तेजी से बढ़ रही है।
(एसओएफआइ) रिपोर्ट में दिखाया गया है कि पांच साल से कम उम्र के 2.8 प्रतिशत बच्चे अब मोटापे से ग्रस्त हैं, जो 2012 में 2.2 प्रतिशत था। वयस्कों में यह वृद्धि, 7.3 प्रतिशत है, जो कि मात्र दो साल पहले 4.1 प्रतिशत थी। यह वृद्धि अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों के व्यापक उपभोग के कारण हो सकती है, जिसमें अत्यधिक शक्कर, अत्यधिक नमक और हानिकारक वसा होती है। ये पोषक तत्वों से रहित खाद्य पदार्थ भारतीय आहार में अधिक प्रचलित हो रहे हैं क्योंकि ये सस्ते और आसानी से उपलब्ध हैंैं। रिपोर्ट के अनुसार, भारत, ब्राजील, चीन और दक्षिण अफ्रीका में व्यापार करने वाली दुनिया की शीर्ष 20 खाद्य और पेय कंपनियों के 35,550 उत्पादों की समीक्षा में पाया गया कि उनकी बिक्री का केवल 4 से 12 प्रतिशत ही स्वास्थ्यवर्धक वस्तुओं में आता है।
हानिकारक खाद्य पदार्थ प्रचुर मात्रा में और सस्ते उपलब्ध हैं, वहीं संतुलित और स्वस्थ आहार के लिए आवश्यक खाद्य पदार्थ कई लोगों की पहुंच से बाहर हो रहे हैं। यह चिंता का विषय है कि आहार से संबंधित गैर-संचारी रोगों का बढ़ता बोझ देश की स्वास्थ्य प्रणाली पर और अधिक दबाव बना रहा है। हानिकारक खाद्य पदार्थों की बढ़ती खपत को रोकने के लिए, उपभोक्ताओं को जानकारी आधारित विकल्प चुनने में मदद करने को फ्रंट-ऑफ पैक चेतावनी लेबल (एफओपीडब्ल्यूएल) को एक नियामक उपाय के रूप में लागू किया जाना चाहिए। एफओपीडब्ल्यूएल पैकेज्ड खाद्य पदार्थों में उच्च मात्रा में शक्कर, नमक और संतृप्त वसा जैसे हानिकारक तत्वों के बारे में स्पष्ट व दृश्य संकेत प्रदान करता है। स्वस्थ और पौष्टिक आहार का अधिकार सुनिश्चित करने के लिए केवल लेबलिंग प्रणाली ही पर्याप्त नहीं है। इसके लिए एक व्यापक नीतिगत ढांचा भी होना चाहिए जो खाद्य असुरक्षा और हानिकारक आहार के मूल कारणों का समाधान करे। इसमें अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों के विपणन को विनियमित करना, स्वस्थ विकल्पों को बढ़ावा देना और पौष्टिक खाद्य पदार्थों को अधिक किफायती बनाना शामिल है।
आकर्षक पैकेजिंग, सेलिब्रिटी अनुमोदन और भ्रामक स्वास्थ्य दावों के माध्यम से बच्चों और युवाओं को निशाना बनाते हुए हानिकारक खाद्य पदार्थों को बड़े स्तर पर बेचा जा रहा है, यह बड़ी चुनौती है। स्वस्थ खाद्य पदार्थों तक पहुंच बढ़ाने के सरकारी प्रयास के अलावा सख्त नियम और उन्हें कठोरता से लागू करना आवश्यक है। देश में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना जो पात्र परिवारों को मुफ्त अनाज प्रदान करती है और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, जो ग्रामीण और शहरी आबादी को रियायती अनाज प्रदान करता है, जैसी योजनाएं लागू हैं। ये योजनाएं स्वस्थ आहार विकल्पों को बढ़ावा देने में विफल हंै।
फलों, सब्जियों और अन्य पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों के लिए सब्सिडी और अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों पर उच्च कर लगाने से परिवर्तन हो सकता है। 2017-22 की राष्ट्रीय बहु-क्षेत्रीय कार्य योजना का उद्देश्य कानूनों और अभियानों के माध्यम से गैर-संचारी रोगों के जोखिम कारकों को कम करना था। इसमें हानिकारक आहार तथा खाद्य और पेय पदार्थों की बड़े स्तर पर बिक्री को प्रमुख चुनौती माना गया था। समय की मांग है कि भारतीय आहार पर अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों के प्रभाव को रोकने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं।
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