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आत्म-दर्शन : सप्त ऋषि और योग

सातों ऋषियों को सात दिशाओं में विश्व के अलग-अलग हिस्सों में भेजा गया, ताकि ये अपना ज्ञान आम आदमी तक पहुंचा सकें।

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आत्म-दर्शन : सप्त ऋषि और योग

आत्म-दर्शन : सप्त ऋषि और योग

सद्गुरु जग्गी वासुदेव (ईशा फाउंडेशन के संस्थापक)

योग परंपरा में शिव को भगवान नहीं, बल्कि आदि-योगी और आदि-गुरु के रूप में माना जाता है। शिव ने अपनी यौगिक विद्या पहले सात साधकों को दी। इस प्रक्रिया के पूरे होने पर यही सात लोग ब्रह्म-ज्ञानी बन गए और हम आज उनको 'सप्त ऋषि' के नाम से जानते हैं। उन्होंने शिव से परम प्रकृति में खिलने की तकनीक और ज्ञान प्राप्त किया। शिव ने इन सातों लोगों को योग के अलग-अलग पहलुओं की गहराई से जानकारी दी, जो आगे चलकर योग के सात मुख्य पहलू बन गए। इन सातों ऋषियों को सात दिशाओं में विश्व के अलग-अलग हिस्सों में भेजा गया, ताकि ये अपना ज्ञान आम आदमी तक पहुंचा सकें। उनमें से एक ने दक्षिण दिशा में भारतीय उपमहाद्वीप की यात्रा की। उनका नाम था-अगस्त्य मुनि। उनका जीवनकाल असाधारण था।

अगस्त्य मुनि ने आध्यात्मिक प्रक्रिया को किसी शिक्षा या परंपरा की तरह से नहीं, बल्कि जीवन जीने के तरीके की तरह एक व्यावहारिक जीवन का हिस्सा बना दिया। लोगों के रहन-सहन, जिस तरह वे बैठते हैं, खाते हैं, वे जो भी करते हैं, उसमें अगस्त्य के कामों की झलक दिखती है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि उन्होंने घर-घर में योग की प्रतिष्ठा की।