भारत में कोरोना टीकाकरण की शुरुआत 16 जनवरी से हुई, 15-16 मार्च से कोरोना के मरीजों की संख्या बढऩे लगी और उसके साथ ही टीकाकरण की मांग भी। ऐसा प्रतीत होता है कि कोरोना टीकाकरण में बढ़ोतरी सरकारी या गैर सरकारी जागरूकता अभियानों से ज्यादा भय की वजह से हुई।
डॉ. नीतू पुरोहित
कोरोना के टीकाकरण केंद्रों पर लम्बी कतार इस बात की पुष्टि करती है कि जागरूकता से कहीं अधिक सक्षम भय है। वह भय जो कि अनुभव किया गया हो, अपने निकट परिवेश में देखा या सुना गया हो। आज हम सब कोरोना का भयानक चेहरा देख रहे हैं, जो स्वास्थ्य प्रणाली की असमर्थता के चलते और भी वीभत्स हो गया है। पिछले साल इन्हीं महीनों में हमें कोरोना के इलाज के बारे में खास जानकारी नहीं थी। इस बार इलाज की कुछ जानकारी तो है, किन्तु इतने अधिक मरीज हैं कि उन सबके लिए दवाई, इंजेक्शन और ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं हो पा रही है। इससे लोगों में एक भय व्याप्त हो गया है और टीकाकरण को आशा से देखा जा रहा है। जैसे-जैसे कोरोना के मरीज बढ़े हैं, उसी के अनुरूप टीकाकरण की मांग भी बढ़ी है। भारत में कोरोना टीकाकरण की शुरुआत 16 जनवरी से हुई, 15-16 मार्च से कोरोना के मरीजों की संख्या बढऩे लगी और उसके साथ ही टीकाकरण की मांग भी। ऐसा प्रतीत होता है कि कोरोना टीकाकरण में बढ़ोतरी सरकारी या गैर सरकारी जागरूकता अभियानों से ज्यादा भय की वजह से हुई।
कोरोना की दूसरी लहर ने युवा लोगों को अधिक संक्रमित किया है। इसलिए टीकाकरण सेवाओं का 18 वर्ष तक के लोगों तक विस्तार स्वागत-योग्य कदम है। ऐसी आशा की जा सकती है कि केंद्र व राज्य सरकारें टीकों की कमी, टीके का नि:शुल्क या भुगतान से जुड़े मसलों का समाधान कर लेंगी। विशेषज्ञों के अनुसार कोरोना मरीजों की बढ़ती संख्या लॉकडाउन व अपेक्षित सुरक्षित व्यवहार से जुलाई तक नियंत्रित हो सकती है। अक्टूबर माह में कोरोना की तीसरी लहर आने की आशंका है। इससे लगता है कि कोरोना अभी लम्बा चलेगा और टीकाकरण ही कारगर उपाय है । प्रश्न यह है कि क्या मरीजों की स्थिति में सुधार होने पर भी लोग बुद्धिमत्तापूर्ण व्यवहार करेंगे और अपनी बारी आने पर टीका लगवाएंगे? ऐसा क्या किया जा सकता है कि लोगों का टीकाकरण के प्रति उत्साह कम न हो? इसके लिए हमें टीकाकरण के प्रति विश्वास बनाए रखने और सही जानकारी के प्रचार पर जोर देना होगा।
यदि किसी काम को भय से किया जाता है, तो वह भय खत्म हो जाने के साथ ही उससे दूरी बना ली जाती है। इसलिये यह आवश्यक है कि टीककरण के प्रति जागरूकता बनी रहे और लोगों को सही जानकारी दी जाए। वे सभी विभाग और संस्थाएं जिनको जागरूकता का जिम्मा सौंपा गया है, वे टीकाकरण से सम्बंधित व्याप्त भ्रांतियों को दूर करें। इस प्रकार के प्रयास लोगों को टीकाकरण की आवश्यकता को समझने में सहायता करेंगे। इसका असर यह होगा कि टीका लगाने के निर्णय का आधार भेड़चाल या भय न होकर एक सुलझी-समझी हुई सोच होगी। टीकाकरण मरीजों की संख्या के घटने या बढऩे पर निर्भर नहीं होगा।
(लेखिका आइआइएचएमआर यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर हैं)