
फोटो: पत्रिका
पत्रिका समूह के संस्थापक कर्पूर चन्द्र जी कुलिश ने पहली मुलाकात में मुझे जो प्रेरणादायी शब्द कहे वे ही एक तरह से मेरा लक्ष्य बन गए। मेरे वालिद उस्ताद फैयाजुद्दीन खान डागर शास्त्रीय संगीत ध्रुवपद के डागर घराने के ख्यातनाम कलाकार थे। कुलिश जी ध्रुवपद गायकी को प्रोत्साहन देने में जुटे थे। मेरे वालिद की कुलिश जी से पत्रिका के मुख्यालय और जयपुर में घोड़ा निकास रोड स्थित बाबा बहराम खां डागर की चौखट पर मुलाकातें होती रहती थी। उसी दौर में राजस्थान पत्रिका के वरिष्ठ कला समीक्षक श्रीगोपाल पुरोहित के जरिए मेरी कुलिश जी से पहली मुलाकात हुई।
उन्हें जब यह जानकारी मिली कि मैं डागर घराने की बीसवीं पीढ़ी का कलाकार हूं तो उन्होंने मेरी पीठ थपथपाई। मुझे नसीहत भी दी कि ध्रुवपद गायकी ध्रुवतारे के समान अटल साधना है। यह इतनी आसान नहीं है। उनका यह कहना ही मेरे लिए ध्रुवपद गायकी को और ऊंचाइयों पर ले जाने का लक्ष्य बन गया। वालिद साहब बताया करते थे कि अपने अखबार के माध्यम से कुलिश जी किस तरह से ध्रुवपद गायकी को सबके सामने लाने का काम कर रहे हैं। उनका मानना था कि युवा पीढ़ी को शास्त्रीय संगीत की तमाम विधाओं के माध्यम से भारतीय संस्कृति का पाठ पढ़ाया जा सकता है।
उन्होंने अपने आलेखों और पत्रिका में प्रकाशित कला संस्कृति के स्तंभों में दूसरी लोककलाओं और गीत-संगीत के साथ-साथ ध्रुवपद गायकी और डागर घराने की इस क्षेत्र में की गई तपस्या को भी तरजीह दी। बाबा बहराम खां डागर की जिस चौखट पर कुलिश जी कईमर्तबा आए वहीं से देश-दुनिया में डागर घराने के जरिए ध्रुवपद गायकी की पताका फहराने का काम हुआ है। जब भी ध्रुवपद समारोह होता कुलिश जी इस आयोजन से खुद को जुड़ा हुआ ही महसूस करते।
वर्ष 1989 में मेरे सिर से वालिद साहब का साया उठा तो इस समारोह की जिम्मेेदारी मुझ पर ही आ गई थी। कुलिश जी से आयोजन के सिलसिले में जब भी मुलाकात होती उनका सिर पर रखा गया हाथ भरोसा देने वाला होता था। ऐसा ही भरोसा पत्रिका की खबरों के प्रति भी रहता था। खबरों की प्रमाणिकता के साथ-साथ भाषा की शुद्धता के प्रति वे सदैव सजग रहते थे। मुझे एक वाकया याद आता है जब मैं केसरगढ़ स्थित पत्रिका मुख्यालय में ध्रुवपद समारोह की स्मारिका भेंट करने गया था। उनकी नजर स्मारिका में प्रकाशित गणेश जी से जुड़े एक श्लोक पर पड़ी। मुझे प्यार से समझाया और बोले, प्यारे वासिफ, ध्यान से देखो इस श्लोक में गणेश जी के लिए ‘लम्बोधर’ संबोधन छपा है जबकि यह ‘लम्बोदर’ होना चाहिए। भाषा की शुद्धता के प्रति उनकी यह सजगता मुझे भीतर तक छू गई।
इसके बाद हर बार स्मारिका में हमने इसका खास ध्यान रखा। जब रवीन्द्र मंच पर ध्रुवपद समारोह शुरू हुआ तो मुझे याद है वे खुद गाड़ी चलाकर कार्यक्रम स्थल पहुंचे थे। एक दौर में कलाकारों के आग्रह पर पत्रिका में प्रकाशित होने वाले कला व कला संस्थाओं के विज्ञापनों में पत्रिका का सहयोग भी कुलिश जी की पहल पर ही शुरू हुआ था। कला व कलाकारों को प्रोत्साहन के उनके प्रयास सदैव याद किए जाते रहेंगे।
Published on:
20 Nov 2025 11:46 am
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