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Patrika Opinion : बंद हो उपभोक्ताओं के हितों की अनदेखी

- सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उपभोक्ताओं का हित सुनिश्चित होना ही चाहिए। अब केंद्र सरकार को गंभीरता से सोचना चाहिए कि ऐसी नौबत क्यों आई कि सुप्रीम कोर्ट को ऐसी टिप्पणी करनी पड़ी और अब क्या किया जा सकता है?

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Patrika Opinion : बंद हो उपभोक्ताओं के हितों की अनदेखी

Patrika Opinion : बंद हो उपभोक्ताओं के हितों की अनदेखी

देश की सर्वोच्च अदालत ने शुक्रवार को केंद्र और राज्यों के उपभोक्ता संरक्षण आयोगों व ट्रिब्यूनलों में खाली पदों पर तीखी नाराजगी जताते हुए टिप्पणी की है कि यदि ये रिक्तियां नहीं भरी जा सकतीं, तो सरकार को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ही रद्द कर देना चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा है कि हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि देश में कोई व्यवस्था बनी हुई है, तो उसका पूरा लाभ नागरिकों को मिले। यह व्यवस्था पटरी से उतरनी नहीं चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी गैर-वाजिब नहीं है, क्योंकि आयोगों व ट्रिब्यूनलों में बड़ी संख्या में पद लंबे समय से खाली हैं। विदेशों की तुलना में हमारे यहां पहले ही उपभोक्ता अधिकारों के प्रति जागरूकता अपेक्षित रूप से काफी कम है। ऐसी हालत में पद खाली रहेंगे, तो उपभोक्ताओं की सुनवाई कब होगी और कब उसका फैसला आएगा? खाली पदों के कारण सुनवाई में विलंब और इसके बाद फैसले में देरी से उपभोक्ता हतोत्साहित होते हैं। इससे उपभोक्ताओं के हितों को नुकसान होता है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उपभोक्ताओं का हित सुनिश्चित होना ही चाहिए। अब केंद्र सरकार को गंभीरता से सोचना चाहिए कि ऐसी नौबत क्यों आई कि सुप्रीम कोर्ट को ऐसी टिप्पणी करनी पड़ी और अब क्या किया जा सकता है? आयोगों व ट्रिब्यूनलों में खाली पद आज के नहीं हैं। यह लंबे समय की अनदेखी का परिणाम है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी अस्वाभाविक नहीं है। अब यही किया जा सकता है जो सुप्रीम कोर्ट ने कहा है, यानी खाली पदों को भरने की प्रक्रिया शीघ्र शुरू की जाए। पूरी व्यवस्था को एक झटके में ठीक करना, तो सरकार के लिए संभव नहीं है, लेकिन उसे इस दिशा में बढऩा शुरू करना होगा। उपभोक्ताओं के हितों व अधिकारों की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। इससे तो उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की भावना ही खत्म हो रही है।

अधिनियम बनाया है, तो उसका पालन सुनिश्चित होना ही चाहिए, ताकि संबद्ध तबके तक उसका लाभ पहुंच सके। सरकार को सुप्रीम कोर्ट की इस राय के बारे में भी गंभीरतापूर्वक सोचना चाहिए कि उपभोक्ता संरक्षण आयोगों व ट्रिब्यूनलों में भर्ती की प्रक्रिया को न्यायिक प्रक्रिया के समकक्ष या बिलकुल उसके जैसा बना दिया जाए। न्यायिक प्रक्रिया से आयोगों के न्यायाधीश व सदस्य चुने जाएंगे, तो स्वाभाविक तौर पर हर स्तर पर गंभीरता बढ़ेगी। यह गुणवत्ता बढ़ाने वाली भी होगी और त्रुटिरहित न्याय प्रदान करने में सहायक भी होगी। यह आम जन में विश्वास बढ़ाने वाली भी होगी और उपभोक्ताओं की जागरूकता वृद्धि में भी कारगर होगी।