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संपादकीय: तकनीक की पहल अच्छी, लेकिन सख्ती कब?

तत्काल टिकट बुकिंग वर्षों से रेलवे के लिए सिरदर्द बनी हुई है। सुबह तय समय पर जैसे ही बुकिंग खुलती है, कुछ ही सेकंड में सीटें 'फुल' हो जाती हैं।

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रेलवे टिकटिंग प्रणाली को दलालों और अवैध रैकेट से मुक्त कराने के लिए बीते कुछ वर्षों में लगातार नए-नए प्रयोग किए जा रहे हैं। कभी ओटीपी आधारित लॉगिन, कभी कैप्चा की जटिल परतें, कभी तत्काल टिकट बुकिंग के समय पर कृत्रिम 'टाइम बैरियर', तो अब आधार सत्यापन की अनिवार्यता। तकनीक के सहारे व्यवस्था को दुरुस्त करने की यह कोशिशें कागज पर भले ही प्रभावशाली दिखती हों, लेकिन जमीनी हकीकत आज भी आम यात्री के लिए पीड़ादायक है। सवाल यह है कि क्या तकनीक ही हर समस्या का समाधान है या फिर सख्ती और जवाबदेही के बिना ये सारे उपाय अधूरे ही रहेंगे?


तत्काल टिकट बुकिंग वर्षों से रेलवे के लिए सिरदर्द बनी हुई है। सुबह तय समय पर जैसे ही बुकिंग खुलती है, कुछ ही सेकंड में सीटें 'फुल' हो जाती हैं। वहीं, दलालों के पास टिकट चमत्कारिक रूप से उपलब्ध रहते हैं- वह भी अतिरिक्त कीमत पर। यह स्थिति केवल तकनीकी खामियों की ओर नहीं, बल्कि व्यवस्था के भीतर मौजूद गहरी सांठगांठ की ओर भी इशारा करती है।अब रेलवे ने आधार सत्यापन को एक नए समाधान के रूप में पेश किया है। जिन यात्रियों का आधार सत्यापित होगा, वही रेलवे की आधिकारिक वेबसाइट और ऐप्स के माध्यम से सुबह 8 बजे से रात 12 बजे तक टिकट बुक कर सकेंगे। नीयत भले ही सही हो कि फर्जी आइडी और बॉट्स के जरिए टिकट हथियाने पर रोक लगे, लेकिन सवाल यह है कि क्या इससे दलालों का नेटवर्क वास्तव में टूटेगा? या फिर वे इस नई व्यवस्था के भीतर भी कोई नया रास्ता खोज लेंगे? तकनीक के सहारे बेहतर विकल्प खड़े किए जा सकते हैं, इसमें कोई दो राय नहीं। लेकिन अनुभव बताता है कि तकनीक अक्सर ईमानदार उपभोक्ता के लिए मुश्किलें बढ़ाती है, जबकि संगठित अपराध नए रास्ते तलाश ही लेता है। हर नई पहल के बाद भी तत्काल टिकट आम आदमी के लिए 'तत्काल' नहीं रह जाता। एक और गंभीर चिंता आधार के बार-बार उपयोग को लेकर है। टिकट बुकिंग जैसी रोजमर्रा की सेवा में आधार को अनिवार्य करना क्या उपभोक्ताओं को साइबर अपराधियों के निशाने पर नहीं लाएगा?


असल जरूरत तकनीक से ज्यादा सख्ती की है। नीति स्तर पर सरकार और रेलवे को कुछ स्पष्ट कदम उठाने होंगे। अवैध टिकटिंग रैकेट की गहन जांच के लिए स्वतंत्र और तकनीकी रूप से सक्षम टास्क फोर्स बनाई जाए। दोषी पाए जाने वाले रेलवे कर्मचारियों पर केवल निलंबन नहीं, बल्कि सेवा से बर्खास्तगी और आपराधिक मुकदमे की कार्रवाई हो। टिकटिंग प्रणाली का नियमित थर्ड-पार्टी ऑडिट अनिवार्य हो, ताकि पता चल सके कि किस स्तर पर सिस्टम का दुरुपयोग हो रहा है। साथ ही, आम उपभोक्ता के लिए शिकायत निवारण तंत्र को सरल, तेज और प्रभावी बनाया जाए। ऐसे कदम उठाकर ही तत्काल टिकट व्यवस्था को पुख्ता बनाया जा सकता है।