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ट्रंप की ‘ब्रिक्स’ को धमकी, भारत को रहना होगा अलर्ट

द्रोण यादव‘अमरीका बनाम अमरीका’ के लेखक व अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकारअमरीका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप 20 जनवरी, 2025 को शपथ लेने की तैयारी में हैं और औपचारिक रूप से पद पर आसीन होने से पहले ही अपने बयानों और योजनाओं से दुनिया में चिंता का माहौल पैदा कर रहे हैं। ट्रंप ने अपने चुनाव […]

जयपुरDec 06, 2024 / 10:54 pm

Sanjeev Mathur


द्रोण यादव
‘अमरीका बनाम अमरीका’ के लेखक व अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार
अमरीका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप 20 जनवरी, 2025 को शपथ लेने की तैयारी में हैं और औपचारिक रूप से पद पर आसीन होने से पहले ही अपने बयानों और योजनाओं से दुनिया में चिंता का माहौल पैदा कर रहे हैं। ट्रंप ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान ‘अमरीका फस्र्ट’ के नारे के चलते टैरिफ बढ़ाने पर खासा जोर दिया था और ट्रंप की इस बात को अमरीकी जनता से समर्थन भी प्राप्त हुआ। उनकी योजनाओं का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर की प्रभुता को बनाए रखना भी शामिल है, जिसको वे ‘अमरीका फस्र्ट’ की नीति से जोड़ते हैं।
कनाडा, चीन व मैक्सिको जैसे देशों को ‘टैरिफ’ बढ़ाने की धमकी देने के बाद ट्रंप ने अब ‘ब्रिक्स राष्ट्रों’ को भी डॉलर के अतिरिक्त किसी और मुद्रा के उपयोग के खिलाफ चेताया और कहा कि यदि ‘ब्रिक्स राष्ट्र’ डॉलर के अलावा किसी अन्य वैकल्पिक-मुद्रा का प्रयोग करने लगेंगे तो न केवल उन्हें अमरीका द्वारा 100त्न टैरिफ का सामना करना पड़ेगा, बल्कि अमरीकी व्यापार के मार्ग भी उनके लिए बंद हो सकते हैं। जितनी सरलता से ट्रंप ने 100त्न टैरिफ की बात कहकर ब्रिक्स राष्ट्रों को धमकाया है, उतना ही कठिन है ऐसा होने पर इसके परिणामों का आंकलन करना, क्योंकि यह फैसला स्वयं अमरीका के लिए भी हानिकारक साबित हो सकता है। ट्रंप यदि ऐसे टैरिफ लगाते हैं तो न केवल अमरीका में आयात होने वाली वस्तुएं अमरीकी नागरिकों के लिए महंगी होंगी बल्कि अमरीका में उत्पादन-लागत अधिक होने के कारण ऐसी नौकरियां ला पाना भी मुश्किल ही होगा। एक ओर जहां अमरीका जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था है जिसके डॉलर के उपयोग से विश्व का 90त्न व्यापार किया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर ब्रिक्स-राष्ट्रों का समूह है जो मिलकर विश्व की लगभग आधी आबादी व 35त्न अर्थव्यवस्था बनता दिख रहा है जोकि जी-7 देशों की 30त्न अर्थव्यवस्था से ज़्यादा होगा।
ब्रिक्स में इसके मूल राष्ट्र ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका के साथ अब इजिप्ट, इथियोपिया, ईरान व सऊदी अरब भी शामिल हैं और तुर्की, अजरबैजान व मलेशिया इसका हिस्सा बनने की अर्जी लगा चुके हैं और अन्य राष्ट्र भी रुचि प्रकट कर रहे हैं। आज से करीब 80 वर्ष पहले विश्व-व्यापार ने ब्रिटेन के पाउंड का साथ छोड़ अमरीकन डॉलर का हाथ थामा था और अमरीका-ब्रिटेन के अच्छे रिश्तों के चलते यह बदलाव सरलता से हो भी गया। आज की परिस्थितियों में ट्रंप ने इस बयान को ब्रिक्स के बढ़ते परिवार को रोकने के प्रयास के रूप में भी देखा जा सकता है क्योंकि ब्रिक्स में चीन, रूस और ईरान जैसे राष्ट्रों से अमरीका ज्यादा आरामदायक स्थिति में नहीं है। हालांकि ब्रिक्स-राष्ट्रों व अन्य राष्ट्रों द्वारा डॉलर का विकल्प तलाशने की रुचि रखने का कारण भी कुछ हद तक स्वयं अमरीका ही है। विश्व की आर्थिक आधारभूत संरचना पर अपना प्रभुत्व कायम रखने के लिए अमरीका ने पहले भी ऐसे प्रयास किए हैं।
‘स्विफ्ट नेटवर्क’ नामक अंतरराष्ट्रीय आर्थिक लेन-देन की एक सुरक्षित और प्रचलित व्यवस्था के उपयोग से रूस और ईरान को प्रतिबंधित कर देना इसका एक ताजा उदाहरण है। ऐसे में ब्रिक्स का हिस्सा होने के नाते सभी सदस्यों के सरल आर्थिक लेन-देन और व्यापार के लिए किसी अन्य मुद्रा के उपयोग का प्रस्ताव रखना स्वाभाविक है। इस प्रतिबंध का सामना करने के लिए रूस और भारत के बीच होने वाले व्यापार में रुपए के इस्तेमाल के लिए सहमति दी थी। 2022 के एक शोध के मुताबिक वैश्विक व्यापार में डॉलर का करीब 88त्न उपयोग हो रहा है जिसके मुकाबले भारत का रुपया 1.6त्न पर ही है, जिस दिन रुपए का इस्तेमाल गैर-डॉलर व गैर-यूरो मुद्रा के 4त्न उपयोग के समकक्ष आ जाएगा तो अंतरराष्ट्रीय मुद्रा की श्रेणी में शुमार होगा।
पिछले कुछ वर्षों में डॉलर के गिरते उपयोग के साथ अन्य मुद्राओं का उपयोग बढ़ा है जिसमें ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, दक्षिण कोरिया और सिंगापुर जैसे देशों की मुद्रा शामिल है। हालांकि इस विवाद में भारत ने अपना रुख साफ करते हुए कहा है कि डॉलर को किसी और मुद्रा से प्रतिस्थापित करने का उसका कोई विचार नहीं है, लेकिन भारत के लिए इतना ही पर्याप्त नहीं होगा। चूंकि चीन अमरीका से मुकाबले के लिए हमेशा आतुर होता है, तो वह इस मुद्दे को इस्तेमाल कर अमरीका को पछाडऩा चाहेगा, वहीं दूसरी ओर भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका जैसे देश अमरीका के साथ अपने संबंध अच्छे रखना चाहते हैं। अत: भारत को कूटनीतिक रास्तों को अपनाते हुए न केवल अमरीका को डॉलर के प्रति अपना रुख साफ कर, रुपए से व्यापार बढ़ाना होगा, बल्कि इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि अन्य मुद्रा के प्रयोग का लाभ यदि केवल चीन को हुआ तो ब्रिक्स में अस्थिरता पैदा हो सकती है, जिसका लाभ भी चीन को होगा।

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