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प्रसंगवश: नेत्रदान पर भ्रांतियां क्यों भारी, महादान परिजनों की जागरुकता से संभव

नेत्रदान पखवाड़े के दौरान सिर्फ दो आंखें ही मिली महादान, वेटिंग लिस्ट 200 की

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Opinion

प्रति वर्ष सरकार द्वारा लोगों और समाज को जागरूक करने के लिए नेत्रदान पखवाड़ा मनाया जाता है। इस सरकारी आयोजन के द्वारा नेत्रदान करने के लिए प्रेरित किया जाता है। इसका असर भी नजर आ रहा है। कुछ ही सही, पर लोग समझने लगे हैं आंखों का महत्व। वे लोग नेत्र (कॉर्निया) दान के लिए आगे आ रहे हैं। छत्तीसगढ़ में पिछले 10 वर्षों में नेत्रदान करने वालों की संख्या बढ़ी भी है। बावजूद इसके यह संख्या उस सूची से काफी कम है, जिन्हें यह दुनिया देखने के लिए किसी के महादान की प्रतीक्षा है।

अभी दो दिन पहले नेत्रदान पखवाड़ा (25 अगस्त से 8 सितंबर) समाप्त हुआ। इस दौरान राजधानी रायपुर के आंबेडकर अस्पताल के आई-बैंक को मात्र दो आंखें महादान में मिली हैं, जबकि इसी आई-बैंक की वेटिंग लिस्ट को देखें तो 200 लोग इंतजार कर रहे हैं। प्रदेश में सात आई-बैंक हैं। इन सभी आई-बैंकों में लंबी वेटिंग लिस्ट है। अब सवाल उठता है कि ऐसे क्या कारण हैं कि नेत्रदान को प्रेरित करने के लिए नियमित प्रचार और जागरुकता अभियान चलने के बावजूद लोग महादान नहीं कर रहे हैं? इसमें अगले जन्म संबंधी भ्रांति तो है ही, और कुछ नेत्रदान को लेकर सजगता का अभाव भी है। सजगता का अभाव मतलब यह कि किसी व्यक्ति ने अगर नेत्रदान का संकल्प लिया है तो उसे समय-समय पर अपने परिजनों और मित्रों से इस संबंध में बताते रहना चाहिए। इससे होगा यह कि सभी को पता होगा कि महादान का संकल्प लिया गया है और उस संकल्प को उस व्यक्ति के इस दुनिया से जाने के बाद पूरा करना है। निधन के बाद एक तय अवधि में नेत्रदान करना होता है। परिजनों को इसका विशेष ध्यान रखना होगा। इसके अलावा एक और बात सामने आई है कि जरूरतमंद के परिजनों में भी जागरुकता का अभाव है। वे भी समय की महत्ता का ध्यान नहीं रखते। सूचना के बावजूद वे समय पर मरीज को लेकर अस्पताल नहीं पहुंचते। इससे उस महादानी का संकल्प पूरा नहीं हो पाता है। जब दोनों व्यक्तियों के परिजन सजग रहेंगे, तभी महादान सार्थक हो सकेगा। -अनुपम राजीव राजवैद्य anupam.rajiv@in.patrika.com