एशियाई खेल को लेकर किसी तरह का दबाव नहीं है
किरण ने आईएएनएस से विशेष बातचीत में कहा, “बेशक पहले एशियाई खेल हैं, लेकिन किसी तरह का दबाव नहीं है। दबाव उन पर भी नहीं है, जिन्होंने ओलम्पिक पदक जीता है। कुश्ती में अगर आप बिना दबाव के खेलोगे तो हमेशा अच्छा ही रहेगा और पदक आने की संभावना भी ज्यादा रहती है। दबाव लेकर अगर खेलते हैं आप कमजोर पड़ सकते हैं, आपके दांव कमजोर पड़ सकते हैं। इसलिए बिना दबाव के बेफिक्र होकर खेलने की कोशिश करती हूं।” किरण ने इसी साल आस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में खेले गए राष्ट्रमंडल खेलों में कांस्य पदक जीता था और इन एशियाई खेलों में उनकी कोशिश अपने पदक का रंग को बदलने की है।
मैं जब अटैक करके खेलती हूं तो प्रदर्शन अच्छा होता है
किरण अपनी तैयारियों में किसी तरह की कमी नहीं छोड़ना चाहती हैं। वह अपने खेल को देखती भी हैं और प्रशिक्षकों की राय के अलावा खुद विश्लेषण भी करती हैं। वह अपने खेल को बखूबी जानती हैं और कहती हैं कि उनका मजबूत पक्ष अटैक है। बकौल किरण, “अटैकिंग मेरा मजबूत पक्ष है। अगर मैं अटैक करके खेलती हूं तो सामने वाली पर हावी रहती हूं। मैं अपने मैचों को देखती हूं। उन्हीं को देखकर पता चला कि मेरा मजबूत पक्ष क्या है। मैं जब अटैक करके खेलती हूं तो प्रदर्शन अच्छा होता है और अगर डिफेंसिव हो जाती हूं तो बाउट हारने की आशंका ज्यादा हो जाती है। यह मुझे भी अपना खेल देखकर समझ में आया और मेरे प्रशिक्षकों ने भी मुझे इस बारे में बताया।” उन्होंने कहा, “मैं हालांकि शुरू से अटैक नहीं करती। 30 सेकेंड या एक मिनट तक सामने वाले को परखती हूं और मौका मिलते ही अटैक करने की कोशिश करती हूं। हालांकि हर मैच में हर खिलाड़ी के लिए अलग-अलग रणनीति होती है।”
एशियाई खेलों में अपना खाता खोलेंगी
किरण को पूरी उम्मीद है कि वह एशियाई खेलों में अपना खाता खोलेंगी और राष्ट्रमंडल खेलों में मिले पदक का रंग इन खेलों में बदलेंगी। किरण ने कहा, “उम्मीद तो पूरी है कि इस एशियाई खेलों में पदक का रंग बदलूं। मेरी पूरी कोशिश रहेगी की पदक लेकर ही लौटूं।”किरण ने अपने नाना के साथ हिसार जिले में स्थित अपने ननिहाल में कुश्ती की शुरुआत की थी। लेकिन नाना के देहांत के बाद वह हिसार में ही स्थित अपने माता-पिता के गांव रेवात खेड़ा आ गईं और अपना खेल जारी रखा। किरण 2014 में घुटने की सर्जरी के कारण लंबे समय तक मैट पर उतर नहीं पाईं। वह कहती हैं वह दौर काफी मुश्किल था। कुछ समय तक तो उन्हें ऐसा लगा था कि वह वापसी नहीं कर सकतीं लेकिन फिर आत्मविश्वास हासिल कर उन्होंने शानदार वापसी की।
अगर घुटने की सर्जरी कराती हो तो खेल में वापसी कर सकती हो – डॉक्टर
उन्होंने कहा, “एक डेढ़ साल तो ऐसा लग रहा था कि मैं खेल में वापसी कर ही नहीं सकती थी। उस समय ऐसा लग रहा था कि चोट लगने से पूरी तरह खत्म हो गई हूं, लेकिन धीरे-धीरे वापसी की। आत्मविश्वास बढ़ा तो कुछ प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया और वहां अच्छा किया तो और आत्मविश्वास बढ़ा और लगा कि अब मैं शीर्ष स्तर पर अच्छा कर सकती हूं।”बकौल किरण, “डॉक्टर ने कहा था कि अगर घुटने की सर्जरी कराती हो तो खेल में वापसी कर सकती हो हालांकि बिना सर्जरी के आम जीवन में कोई फर्क नहीं पड़ेगा। क्योंकि खेलने के लिए आपको पूरी तरह से फिट होना बहुत जरूरी है। इसलिए मैंने सर्जरी कराई। इस दौरान परिवार वालों ने काफी साथ दिया और हमेशा खड़े रहे।”
प्रेरणा मिलती है कि हमें भी मेहनत करके आगे जाना है और पदक जीतना है
किरण छत्रसाल स्टेडियम में विष्णु दास के मार्गदर्शन में अभ्यास करती हैं। एशियाई खेलों की महिला कुश्ती टीम में ओलम्पिक कांस्य पदक धारी साक्षी मलिक और राष्ट्रमंडल खेलों की स्वर्ण पदक विजेता विनेश फोगाट हैं। किरण कहती हैं कि इन दोनों से उन्हें काफी प्ररेणा मिलती है। उन्होंने कहा, “दोनों से काफी कुछ सीखने को मिलता है। दोनों मेहनत करके काफी आगे बढ़ रही हैं तो प्रेरणा मिलती है कि हमें भी मेहनत करके आगे जाना है और पदक जीतना है।”