
भारत से जंग के बाद आत्मसमर्पण करते पाकिस्तानी सैनिक। फोटो: X Handle indianhistorypics
15 August 1947 and 1971 War: देश की आजादी और भारत और पाक विभाजन के बाद भी पाकिस्तान में विद्रोह और अशांति रही है। पाकिस्तान में शहबाज शरीफ और बांग्लादेश में मुहम्मद यूनुस सरकार के कार्यकाल में ही हालात खराब नहीं हैं, बरसों पहले भी ऐसे ही हालात रहे हैं, तब परिस्थितियां अलग थीं। भारत-पाकिस्तान के बीच 6 अगस्त 1971(international protests 1971) को जब तनाव (Indo-Pak tensions) अपने चरम पर था और उप महाद्वीप युद्ध की ओर बढ़ रहा था, तब एक और पाकिस्तानी राजनयिक ने अपनी सेवाओं से इस्तीफा दे दिया था। यह उस समय की कूटनीतिक हलचल और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की बिगड़ती स्थिति का स्पष्ट संकेत था। वहीं तब के पूर्वी पाकिस्तान/अब बांग्लादेश(1971 Bangladesh crisis ) में चल रहे सैन्य दमन और मानवाधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ लगातार आवाज उठ रही थी। इसी पृष्ठभूमि में कई पाकिस्तानी राजनयिकों ने अपने पदों से इस्तीफा (Pakistani diplomat resignation) देकर विश्व समुदाय का ध्यान इस संकट की ओर आकर्षित किया। तब लंदन में स्वयं को “बांग्लादेश सरकार का प्रतिनिधि” कहने वाले लगभग 70 समर्थकों ने अमेरिका स्थित लाफायेट पार्क में प्रदर्शन किया था।
उन्होंने अमेरिका के राष्ट्रपति निक्सन से पाकिस्तान के सैन्य शासन को समर्थन बंद करने की मांग की थी। प्रदर्शनकारियों ने पोस्टर और बैनर लेकर प्रदर्शन किया, जिन पर लिखा था, “निक्सन, पाकिस्तानी नरसंहार का समर्थन कर रहे हैं।”
यही नहीं, ब्रिटिश संसद के हाउस ऑफ कॉमन्स में भी तीन युवकों ने “बांग्लादेश के प्रति ब्रिटेन की उदासीनता” के विरोध में नारे लगाए थे। तब वहां मौजूद सुरक्षा कर्मियों ने उन्हें बाहर निकाल दिया था। इसके बाद 6 अगस्त 1971 को जिस अधिकारी के इस्तीफे की खबर सामने आई थी, वह अधिकारी लंदन के पाकिस्तानी उच्चायोग के लेखा व ऑडिट निदेशक मतीन थे। मतीन तीन बच्चों के पिता थे, वह हमेशा की तरह कार्यालय पहुंचे और चुपचाप अपने व्यक्तिगत दस्तावेज समेटने लगे।
इसके बाद उन्होंने इस्तीफा देकर कहा, “अब मैं कभी वापस नहीं जाऊंगा।” इससे पांच दिन पहले ही यहां पाकिस्तानी उच्चायोग के द्वितीय सचिव मोहिउद्दीन अहमद ने लंदन के ट्राफलगर स्क्वायर में एक बांग्लादेश रैली के दौरान अपने पद से इस्तीफा देने की घोषणा की थी। उन्होंने ब्रिटेन में राजनीतिक शरण मांगी थी और उम्मीद जताई थी कि जल्द ही उनकी मांग स्वीकार कर ली जाएगी।
भारतीय सेना की ईस्टर्न कमांड ने बुधवार को अपने आधिकारिक एक्स हैंडल पर “इस दिन उस साल” श्रृंखला के अंतर्गत 6 अगस्त 1971 की एक ऐतिहासिक घटना को याद किया है। हम 15 अगस्त 1947 की आजादी को याद करते हैं तो आजादी के जांबाज जवानों का शौर्य और पराक्रम याद आता है, लेकिन 1971 के समय भी ऐसी ही वीरता दिखाई दी थी।
पोस्ट में 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध से पहले की सैन्य तैयारियों का उल्लेख करते हुए लिखा गया है। यह पोस्ट 1971 में युद्ध से पहले की रणनीतिक गतिविधियों और सैन्य तैयारियों की ओर संकेत करती है, जब भारत पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में पैदा मानवीय संकट और शरणार्थी संकट के कारण निर्णायक कार्रवाई की दिशा में बढ़ रहा था।
ईस्टर्न कमांड उस समय इस पूरे अभियान में प्रमुख भूमिका में थी। भारतीय सेना की ओर से इस प्रकार के ऐतिहासिक तथ्यों शेयर करना न केवल राष्ट्र की सामरिक विरासत को सम्मान देने का कार्य है, बल्कि युवा पीढ़ी को इतिहास से जुड़ने के लिए प्रेरित भी करता है।
इस्तीफा देने वाले इस वरिष्ठ पाकिस्तानी राजनयिक ने अंतरात्मा की आवाज को प्राथमिकता दी और खुले तौर पर पाकिस्तान सरकार की नीतियों की आलोचना की थी। यह घटनाक्रम भारत के लिए कूटनीतिक रूप से महत्वपूर्ण था।
एक ओर जहां पाकिस्तान आंतरिक और अंतरराष्ट्रीय दबावों का सामना कर रहा था, वहीं भारत ने शरणार्थी संकट से निपटने के साथ-साथ सैन्य तैयारियां भी तेज कर दी थीं। दुनिया भर के मीडिया और नीति निर्धारकों की नजर अब इस क्षेत्र पर टिकी हुई थी।
दरअसल पाकिस्तानी अधिकारियों के ये इस्तीफे केवल एक व्यक्तिगत निर्णय नहीं थे, बल्कि यह उस व्यापक असंतोष और नैतिक संघर्ष का प्रतीक थे जो उस समय पाकिस्तान के भीतर और बाहर महसूस किया जा रहा था। ये घटनाएं स्पष्ट रूप से युद्ध की पृष्ठभूमि तैयार कर रही थीं—जो आखिरकार दिसंबर 1971 में भारत-पाक युद्ध के रूप में सामने आईं। तब 6 अगस्त 1971 का दिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई अहम घटनाओं का गवाह बना।
एक ओर पाकिस्तान अपने राजनीतिक और कूटनीतिक समर्थन को बनाए रखने की कोशिश कर रहा था, वहीं दूसरी ओर देश के भीतर और बाहर विरोध की आवाजें तेज हो रही थीं। राजनयिकों के इस्तीफे और अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शन इस बात के संकेत थे कि युद्ध अब निकट है और पाकिस्तान के भीतर दरारें साफ दिखाई देने लगी हैं।
भारत और पाकिस्तान में 1971 की जंग के बाद पाकिस्तान के 93,000 से ज्यादा सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया था। इस युद्ध ने बांग्लादेश को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में जन्म दिया। इसके बाद भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच शिमला समझौता हुआ था।
बहरहाल 15 अगस्त केवल 1947 की आज़ादी की याद नहीं दिलाता, बल्कि 1971 की जंग में भारतीय जवानों की वीरता भी याद दिलाता है। यह दिन उन शहीदों को नमन करने का अवसर है, जिन्होंने देश की रक्षा के लिए प्राण न्यौछावर किए। स्वतंत्रता दिवस हमें आज़ादी की कीमत और सैनिकों के बलिदान का एहसास कराता है। 1947 की क्रांति और 1971 की विजय, दोनों ही भारत की गौरव गाथा के अद्वितीय अध्याय हैं।
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Updated on:
06 Aug 2025 05:05 pm
Published on:
06 Aug 2025 05:04 pm
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