
सलाखों में 50 प्रतिशत बंदी पॉक्सो के, वो भी विचाराधीन, पढ़े खबर क्या है पूरा मामला....
पाली. पाली उप कारागृह कहने को तो छोटी जेल है, लेकिन इस जेल में पच्चास प्रतिशत बंदी ऐसे है, जो पॉक्सो के मामले में बंद है। ये सभी बंदी विचाराधीन है। प्रतिशत के लिहाज से यह आंकड़ा देखा जाए तो प्रदेश में सबसे अधिक है। इस कारण जेल प्रशासन भी हैरान है। इन बंदियों की सुरक्षा के लिए कड़े इंतजाम जेल में किए गए हैं। जेल प्रशासन भी चाहता है कि इन प्रकरणों का निपटारा जल्द से जल्द हो।
यहां महिला बंदियों के लिए जगह नहीं
पाली उप कारागृह के हालात यह है कि यहां महिलाओं को रखना भी जेल प्रशासन मुनासिब नहीं समझता। इसके चलते वर्तमान में एक भी महिला बंदी पाली जेल में नहीं है। कोई बंदी यहां पहुंचती है तो उसे तुरंत जोधपुर सेंट्रल जेल के लिए रवाना कर दिया जाता है। जेल प्रशासन की माने तो पांच बैरक की इस जेल में आधे बंदी पॉक्सो के होने के कारण पूरे दिन बंदी पॉक्सो कानून पर ही चर्चा करते रहे हैं।
बंदियों को अब जागरूक करने का काम
क्या है पॉक्सो कानून
सरकार ने वर्ष 2012 में एक विशेष कानून बनाया था, जो बच्चों को छेडख़ानी, दुष्कर्म व कुकर्म जैसे मामलों से सुरक्षा प्रदान करता है। पॉक्सो शब्द अंग्रेजी से आता है। इसका पूर्णकालिक मतलब होता है ‘प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्राम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट 2012 यानी लैंगिक उत्पीडऩ से बच्चों के संरक्षण का अधिनियम 2012। इस एक्ट के तहत नाबालिग बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराध और छेड़छाड़ के मामलों में कार्रवाई की जाती है। यह एक्ट बच्चों को सेक्सुअल हैरेसमेंट, सेक्सुअल असॉल्ट और पोर्नोग्राफी जैसे गंभीर अपराधों से सुरक्षा प्रदान करता है।
वर्ष 2012 में बनाए गए इस कानून के तहत अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा तय की गई है। इसमें सात साल सजा से लेकर उम्रकैद और अर्थदंड भी लगाया जा सकता है। हाल ही में जोधपुर सेंट्रल जेल में बंद आसाराम को इसी एक्ट के तहत उम्र कैद की सजा सुनाई गई, जो देश भर में चर्चा का विषय रहा।
यह सत्य है
यह सहीं है कि पाली उप कारागृह में पच्चास प्रतिशत के करीब बंदी पॉक्सो एक्ट के हैं। यह अपराध बढ़ रहा है, इन बंदियों पर विशेष नजर रखी जा रही है। प्रदेश में प्रतिशत के लिहाज से यह आंकड़ा पाली के लिए चौकान्ने वाला है।
- विक्रम सिंह, डीआईजी, जोधपुर सेंट्रल जेल।
स्कूल स्तर से ही दी जाए बच्चों को शिक्षा
पॉक्सो जैसे अपराध रोकने के लिए बच्चों को स्कूल स्तर से ही जागरूक करना चाहिए, ताकि उन्हें जानकारी रहे। इसके लिए माता-पिता को भी आगे आना चाहिए। स्कूल में एक पीरियड ऐसा होना चाहिए, जिसमें कानून की जानकारी दी जाए।
- दीपक भार्गव, एसपी, पाली।
Published on:
29 May 2018 02:13 pm
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