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बलुन्दा की छतरियों से झलकता है इतिहास

- हमारी विरासत.... - यह छतरियां किसी राजा के स्वर्गवासी होने पर उनके अन्तिम संस्कार के स्थान पर उनकी यादों को चिरस्थायी करने के लिए बनाई गई हैं।

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Baldada's umbrellas reflects history

बलुन्दा की छतरियों से झलकता है इतिहास

जैतारण। मरुधरा की गोद में बसे बलुन्दा गांव में स्थित छतरियां अपने इतिहास को संजोए बैठी हैं। तालाब के किनारे पर बनी छतरियों की स्थापत्य कला का अदभुत नजारा इस छोटे से गांव में देखने को मिल रहा है। प्राचीनकाल से ही यहां के राजा-महाराजा सृजनशील व कला प्रेमी थे। उन्होंने अपने कार्यकाल में शिल्पकला के अद्वितीय उदाहरण स्थापित किए हैं। यह छतरियां किसी राजा के स्वर्गवासी होने पर उनके अन्तिम संस्कार के स्थान पर उनकी यादों को चिरस्थायी करने के लिए बनाई गई हैं।

बलुन्दा गांव की स्थापना विक्रम संवत 1573 में राव चांदाजी पुत्र राव वीरमदेव मेडता नरेश ने की। बलुन्दा गढ के ऐतिहासिक संग्रहालय में विभिन्न पौराणिक ग्रंथों व साहित्यकार श्रवणकुमार लक्षकार द्वारा रचित पुस्तक बलुन्दा गौरव में इसकी जानकारी मिलती है।
गांव बलुन्दा के शासक रहे राव चांदा, शरणागत के रक्षक ठाकुर रामदास, भक्तराज ठाकुर जगतसिंह, ठाकुर मोहकमसिंह, ठाकुर हरिसिंह, ठाकुर बिजेसिंह, बात के धनी ठाकुर श्यामसिंह, ठाकुर फतेहसिंह, ठाकुर शिवसिंह, ठाकुर बाघसिंह, जीवणसिंह व अन्तिम शासक शेरसिंह ने अपने कार्यकाल में मन्दिरों, बावडियां, तोरणद्वार सहित अनेक स्मारकों का निर्माण करवाया।

पुरातत्वेता बताते हैं इन छतरियों की पहचान सबसे ऊपर बने कंगूरे से होती है। यहां पर करीब 15 छतरियां बनी हुई हैं। भारतीय शैली के साथ मुगल शैली के प्रभाव में बनी यह छतरियां ऐतिहासिक धरोहर हैं। श्ल्पिकला का जादू कहलाने वाली यह छतरियां बड़े-बड़े चबूतरों पर लाल पत्थरों से बनी हैं। इनके उपर बने गुम्बद के अंदर चारों ओर राधा-कृष्ण सहित हिन्दू देवी-देवताओ की सुन्दर मूर्तियां बनी हुई हैं। अन्दर आकर्षक चित्रकारी भी की हुई है। इन छतरियों के नीचे चबूतरे पर तत्कालीन राजाओ के नाम व उन पर आई लागत भी अंकित हैं।

इनमें भक्तराज जगतसिंह व बाघसिंह की छतरियां सबसे विशाल हैं। इसके अलावा श्याम बावड़ी व पांच बड़ी छतरियों का निर्माण ठाकुर जगतसिंह रामदासोत ने करवाया था, लेकिन इनमें से अब तीन ही बची हैं। इन छतरियों पर बनी मूर्तियां खण्डित हो रही हैं। मेहराबों के पत्थर टूट कर गिर रहे हैं। आज यह छतरियां जीर्णशीर्ण दशा में हैं। कबूतरों के घरौन्दे बनी छतरियां बेसहारा पशुओं का आश्रय स्थल बन कर रह गई हैं। इन प्राचीन छतरियों का समय रहते संरक्षण नहीं किया तो यह इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह जाएगी।
शंकरलाल पन्