international nurses day…विश्वभर में 12 मई को अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस मनाया जाएगा। ये दिवस फ्लोरेंस नाइटिंगेल को समर्पित है। नाइटिंगेल ने अपना पूरा जीवन बीमार लोगों की सेवा में गुजार दिया। उसी जज्बे के साथ आज के नर्सिंगकर्मी भी रोगियों की सेवा में जुटे हैं। वे अपने परिवार में सुख-दुख का समय होने पर भी सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। उनके कार्य का समय भले ही तय हो, लेकिन मरीजों को पूर्ण उपचार दिए बिना कभी घर की तरफ नहीं जाते हैं। ऐसे ही नर्सिंगकर्मियों से हम आपको रूबरू करवा रहे हैं।
हर जन्म में बनना चाहती हूं नर्स
बांगड़ मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय के डायलेसिस वार्ड में कार्यरत नर्सिंगकर्मी सिंदू टी बचपन से ही नर्स बनकर सफेद एप्रिन पहनना चाहती थी। यह सपना पूरा हुआ तो सेवा में जुट गई और पिछले 27 साल से मरीजों के लिए हर पल तैयार रहती है। वे कहती है कि मैं हर जन्म में नर्स ही बनना चाहती हूं। इससे बड़ा सेवा का दूसरा माध्यम नहीं हो सकता। बकौल सिंदू टी, Òडायलेसिस वार्ड में पिछले 13 साल से सेवा कर रही हूं। एक बार बेटे को डेंगू होने पर उसकी तबीयत अधिक खराब थी। मेरा उसके पास रहना जरूरी था। उसी समय एक मरीज डायलेसिस के लिए आया तो मुझे लगा, मरीज को मेरी जरूरत बेटे से ज्यादा है। इस पर बेटे को दूसरों के पास छोड़कर पहले डायलेसिस किया।Ó
मां गंभीर थी, लेकिन आइसीयू में थी मेरी जरूरत
बांगड़ चिकित्सालय में ही कार्यरत नर्सिंगकर्मी राजेश त्रिवेदी 1992 से सेवा कर रहे हैं। कोरोना के समय मरीजों के साथ दिन-रात रहते हुए खुद पॉजिटिव हुए। आइसीयू में सात दिन तक भर्ती रहे। इसके बाद ठीक होते ही फिर कोरोना मरीजों की सेवा करने के लिए ड्यूटी की। वे बताते है कि जीवन में कई बार ऐसे हालात बने जब परिवार से ज्यादा मरीजों की सेवा को महत्व दिया। भांजी के मायरा भरने बिलाड़ा जाते समय आइसीयू में एक मरीज की तबीयत खराब होने की सूचना मिली। इस पर बस से उतरकर पहले अस्पताल आया। इसी तरह मां के गंभीर बीमार होने पर आइसीयू में आकर पहले मरीज का उपचार किया। इसके बाद मां को संभालने गया।