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खेत-खलिहान से लेकर जंगल को लील रहा विलायती बबूल

- गोचर में वनस्पति को लील रहा विलायती बबूल- इसके प्रभाव से स्थानीय वनस्पति संकट मे

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खेत-खलिहान से लेकर जंगल को लील रहा विलायती बबूल

खेत-खलिहान से लेकर जंगल को लील रहा विलायती बबूल


बाबरा। हरियाली के नाम पर विलायती बबूल (जूली फ्लोरा) अब नासूर बन रहा है। यह वन, ओरण से लेकर खेत-खलिहानों में फैली देशी व स्थानीय वनस्पति को लीलने लगा है। विलायती बबूल क्षेत्र में 60 फीसदी से अधिक हिस्से में पसरा हुआ है। कोयला बनाने के साथ जलाऊ ईंधन में विलायती बबूलों का उपयोग ही होता आया है, लेकिन समय के साथ विलायती बबूलों का सामाज्य फैल रहा है। यह अन्य वनस्पतियों के लिए हानिकारक साबित हो रहा है। विलायती बबूल के पेड़ की हद के आस-पास अन्य पौधे पनप नहीं पाते। पहले यह अरावली की पहाडिय़ों तक ही सीमित था। वर्षा जल के साथ मैदानी क्षेत्र व खेतों तक इनका जाल पसर गया। जंगल में विलायती बबूल के अत्यधिक मात्रा में पसरने से धोकड़ा, देशी बबूल, केर, डंडाथोर, डांसरिया, गैंगण, बेर, आक, खीप जैसी वनस्पति अब प्राय: समाप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी है।

वनस्पति के लिए घातक
विलायती बबूल वायुमंडल में मौजूद कार्बन डाई ऑक्साइड को बहुत कम मात्रा में सोखता है। इसकी जड़ें भूजल को खतरनाक स्तर से सोखती है। इस पेड़ की शाखाओं सहित अन्य भाग पर पशु-पक्षी निवास नहीं कर सकते। इस पेड़ की लकडिय़ां फर्नीचर बनाने में भी काम नहीं आती। बबूल मवेशियों के लिए भी खास उपयोगी नहीं है। इसका जहरीला कांटा तो शरीर के किसी पर चुभने पर उस जगह पर मवाद व सूजन पैदा कर देता है।

वन क्षेत्र में बढ़ता प्रभाव
वन क्षेत्र में भी जूलीफ्लोरा अत्यधिक मात्रा ज्यादा फैला हुआ है। विलायती बबूल सेन्दड़ा वन क्षेत्र से जुड़े वन नाका बाबरा में 60 फीसदी, वन नाका रास में 55 फीसदी तथा कालू-लाम्बिया वन नाका क्षेत्र में 90 प्रतिशत तक के दायरे में जूलीफ्लोरा पसरा है।

विमान से गिराए थे बीज
क्षेत्र के जानकारों की माने तो बरसों पहले प्रदेश की अरावली पर्वत शृंखला पर हवाई जहाज से जूलीफ्लोरा के बीज गिराए थे। यह वनस्पति बिना पानी के आसानी से पनप जाती है। इसका वैज्ञानिक नाम प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा है। यह मूलरूप से दक्षिण और मध्य अमरीकी तथा कैरीबायाई देशों में पाया जाता है। इसकों वर्ष 1870 में भारत लाया गया था।

वन क्षेत्र में बढ़ता दायरा
&विलायती बबूल का वन क्षेत्र में दायरा पहले से अब बढ़ ही रहा है। इससे दूसरी वनस्पतियों के साथ घास के पनपने पर विपरित असर पड़ रहा है। इसे हटाने के तमाम प्रयास उच्चस्तरीय हैं।
दुर्गासिंह राठौड़, वनपाल, बाबरा

स्थानीय वनस्पतियों का हृास
&जूलीफ्लोरा विदेशी वनस्पति है। इस वनस्पति के सम्पर्क में आने वाली स्थानीय वनस्पतियों का हृास होने के साथ कई वनस्पतियां तो पनप ही नहीं हैं। इसके अत्यधिक फैलाव से व जड़ों से स्त्रावित होने वाले पदार्थ से स्थानीय वनस्पतियों पर प्रतिकूल असर पड़ता है। जूली फ्लोरा सूखे इलाके में अत्यधिक रूप से पनपता है। इसके प्रभाव से भूमि क्षारीय हो जाती है। जिससे भूमि की उर्वरक क्षमता प्रभावित होती है।
- प्रो. पीसी. त्रिवेदी, वनस्पति विशेषज्ञ सेवानिवृत्त, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर