
सुनो सरकार! आउवा में आजादी के दीवाने क्यों है बेगाने?
-राजेन्द्रसिंह देणोक
पाली। जिला मुख्यालय से 55 किलोमीटर दूर गांव आऊवा। इसका जिक्र आते ही गौरव की अनुभूति होती है और याद आता हैं 1857 में आजादी का बिगुल फूंकने वाले ठाकुर खुशालसिंह चांपावत की अगुवाई में दो हजार से अधिक स्वतंत्रता सेनानियों का संघर्ष। ये वही आजादी के दीवाने है जिन्होंने फिरंगी सरकार को घुटनों के बल ला दिया था। 18 सितम्बर 1857 को अंग्रेज अफसर मॉक मेंशन का सिर काट कर गेट पर लटका दिया। इनके फौलादी हौसले के सामने अंग्रेज सेना भाग खड़ी हुई थी। उन्हीं मतवालों का बलिदान अब सरकार शायद भुला रही है। पिछली सरकार ने तीन साल पूर्व यहां भव्य पैनोरमा का निर्माण तो करा दिया। लेकिन प्रदेश में जब से सरकार बदली तभी से इसकी सुध नहीं ली जा रही। यहां तक कि 24 घंटे के लिए मात्र एक संविदाकर्मी नियुक्त है। उसे भी दो साल से मानदेय नहीं दिया गया। न पर्यटन विभाग खबर ले रहा है और न ही जिला प्रशासन।
देशभर में आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। देश को आजाद कराने वाले सपूतों को याद किया जा रहा है। लेकिन आऊवा में 1857 के स्वतंत्रता सेनानियों की याद में निर्मित पैनोरमा लापरवाही की भेंट चढ़ रहा है। इसका संचालन स्थानीय प्रशासन के जिम्मे हैं। प्रशासनिक अधिकारी अन्य कार्यों में व्यस्त रहते हैं। यह स्थल उनकी प्राथमिकता में नहीं है। इस कारण ऐतिहासिक स्थल की ख्याति धुमिल हो रही है। वर्तमान में गिने-चुने पर्यटक ही आ रहे हैं। इसका उद्घाटन 30 अगस्त 2018 में हुआ था।
क्या हो सकता है समाधान
आऊवा का पैनारमा ऐतिहासिक स्थल है। इसकी सार-संभाल और रख-रखाव का जिम्मा पर्यटन विभाग को दिया जाना चाहिए। देशी और विदेशी पर्यटकों को यहां तक लाने के लिए भी सरकार को प्रयास करना चाहिए। आऊवा का इतिहास रोचक और शौर्यपूर्ण है। पर्यटकों के लिए भी यह आकर्षण का केन्द्र बन सकता है। आऊवा का प्रचार-प्रसार पर्याप्त किया जाए तो देशी पर्यटक भी खींचे चले आएंगे। पैनोरमा के रखरखाव के लिए कार्मिकों की संख्या बढ़ानी चाहिए। पर्यटन विभाग और प्रशासनिक अधिकारियों को संयुक्त रूप से ऐसे प्रयास करने चाहिए जिससे स्वतंत्रता सेनानियों की ख्याति से ज्यादा से ज्यादा पर्यटक और वर्तमान पीढ़ी रूबरू हो सके।
संघर्ष की जीवंत झलक बता रहा पैनारमा
-1857 की क्रांति के नायक ठाकुर खुशहालसिंह चांपावत की प्रतिमा स्थापित है।
-क्रांतिकारियों की आराध्य देवी मां सुगाली का मंदिर बना हुआ है।
-मंगल पांडे, लक्ष्मीबाई, झलकारीबाई, बाबु कुंवर, तांत्या टोपे, नानाशाह पेशवा समेत कई क्रांतिकारियों की प्रतिमाएं लगी है।
-1857 की क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले स्थानिय क्रांतिकारियों की प्रतिमाएं और इतिहास अंकित है।
-आजादी के योद्धाओं की कहानियां दशाई है।
-1857 की क्रांति में आऊवा और आसपास के ठिकानों की भूमिका का वर्णन है।
लापरवाही की ये बानगी
-24 घंटे के लिए महज एक संविदाकर्मी नियुक्त
-24 क्रांतिकारियों की प्रतिमाएं लगी है वहां का कांच टूटा।
-गैलरी में मंगल पांडे और नानाशाह पेशवा की मूर्तियों के कांच टूटे।
-पीने का पानी उपलब्ध नहीं।
-परिसर में घास की कटाई नहीं हो रही।
-गार्डन का रखरखाव नहीं, घास उगी हुई।
बेटी की फीस भरने के पैसे नहीं
मुझे यहां संविदा पर लगाया गया था। दस हजार रुपए प्रतिमाह मानदेय है। 12 माह का मानदेय पुराना बकाया है। इस साल नौ माह का पैसा बकाया है। घर कैसे चलाऊं, यह समझ नहीं आ रहा। बेटी की कॉलेज फीस भरने के लिए पैसे उधार लिए। मानदेय के लिए कई बार चक्कर लगा चुका हूं, लेकिन पैसा नहीं मिल रहा। इस कारण परेशान हो गया हूं। मेरे अलावा यहां कोई अन्य स्टाफ भी नहीं है। -विक्रमसिंह राजपुरोहित, संविदाकर्मी
Published on:
11 Dec 2021 04:24 pm
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