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पाली के स्वर्णिम इतिहास में राव सीहाजी राठौड़ का अमूल्य योगदान, जानिए पूरा इतिहास…

गेस्ट राइटर : डॉ. सुदर्शनसिंह राठौड़, सहायक प्रोफेसर, इतिहास विभाग

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पाली

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Suresh Hemnani

Oct 09, 2020

पाली के स्वर्णिम इतिहास में राव सीहाजी राठौड़ का अमूल्य योगदान, जानिए पूरा इतिहास...

पाली के स्वर्णिम इतिहास में राव सीहाजी राठौड़ का अमूल्य योगदान, जानिए पूरा इतिहास...

पाली। इतिहास पुरुष राव सीहाजी राठौड़ पराक्रमी शासक होने के साथ-साथ मारवाड़ में राठौड़ वंश के आदि पुरुष थे। उन्होंने तीर्थ यात्राओं के बहाने अपने राज्य को बढ़ाने का प्रयास तथा पाली के उत्तर पश्चिम में अपना राज्य स्थापित किया था। सिहाजी के इस प्रारंभिक बलिदान के कारण ही मारवाड़ का राज्य एक विशाल राठौड़ वंश के रूप में स्थापित हुआ। इसकी नींव सीहाजी द्वारा ही रखी गई थी। सही अर्थ में वे मारवाड़ में राठौड़ वंश के प्रथम संस्थापक थे।

सीहाजी पाली आए उस समय पाली व्यापार का प्रमुख केंद्र था। क्योंकि फारस, अरब आदि पश्चिमी देशों के लिए जाने वाला माल पाली से होकर गुजरता था। अत: पाली के पालीवाल व्यापार के कारण समृद्ध थे। यहां के तत्कालीन शासकों के निर्बल होने के कारण कई आततायी व्यापारियों से आए दिन लूटपाट करते थे। पालीवालों के आग्रह पर सीहाजी इनकी रक्षा के लिए पाली आ गए। उन्होंने लुटेरों का खात्मा कर शहर में सुख-समृद्धि लौटाई। कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार राव सीहाजी राठौड़ 1268 ईस्वी में यहां आए थे।

उन्होंने खेड़ को भी अपने कब्जे में लिया। इसी दौरान पाली पर आक्रांताओं ने आक्रमण कर दिया। उन्होंने आक्रांताओं का डटकर मुकाबला किया। दोनों सेनाओं में भीषण युद्ध हुआ। बिठू गांव के पास युद्ध करते हुए सीहाजी वीरगति को प्राप्त हो गए। निकटवर्ती बिठू गांव में 9 अक्टूबर 1273 ईस्वी का एक शिलालेख उपलब्ध है जिसे देवल का लेख कहते हैं। इस पर 9 अक्टूबर को सिहाजी के वीरगति होने का वर्णन मिलता है।

लुटेरों का किया था खात्मा
जोधपुर राज्य की ख्यात के अनुसार राव सीहाजी कन्नौज के गढ़वाल वंश से संबंधित थे। वरदाइसेन के पौत्र और चेतराम के पुत्र थे। सीहाजी के संबंध में अनेक इतिहासकारों एवं ख्यात के लेखकों ने अलग-अलग प्रसंग दिए हैं। नैणसी के अनुसार सीहा गौ हत्या के अपराध से निवृत्ति प्राप्त करने के लिए कन्नौज से द्वारका की यात्रा पर आए थे। उन्होंने उस समय कन्नौज का राजपाट अपने पुत्र को सौंप दिया था। जोधपुर राज्य की ख्यात में भी सीहाजी के द्वारा भीनमाल के ब्राह्मणों की सहायता करने का उल्लेख है।

उनके अनुसार सीहाजी जब पुष्कर की यात्रा पर गए थे तो लौटते समय उन्होंने आततायियों से आमजन की सहायता की थी। इसी समय पाली के पालीवालों ने भी सीहाजी से सहायता मांगी। कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार 1268 ईस्वी में सीहाजी अपने साथियों के साथ पाली आए थे। सीहाजी ने पाली में अपना शासन स्थापित किया और लुटेरों और आततायियों का खात्मा कर आमजन और व्यापारियों को राहत दिलाई।