
पपीते, तुलसी, गिलोय व नीम के पत्तों का रस बढ़ाता है प्लेटलेट्स
पाली। डेंगू के रोगी लगातार बढ़ रहे है। मौसमी बीमारियों ने पैर पसार रखे है। सर्दी-जुकाम व बुखार से हर दूसरा-तीसरा व्यक्ति पीडि़त है। अस्पतालों में मरीजों की कतार बढ़ रही है। डेंगू के कारण कई मरीजों में प्लेटलेट्स की कमी हो रही है। जिसके लिए उनको एसडीपी चढ़ानी पड़ती है। जबकि आयुर्वेद में इसका उपचार घर में और फलों आदि से ही किया जा सकता है। पपीते के पत्तों, तुलसी, गिलोय व नीम के पत्तों का रस 20 एमएल दिन में कम से कम दो बार लेने पर प्लेटलेट्स में सुधार होता है। इसका स्वाद कड़वा होने पर इसमें शहद मिलाया जा सकता है।
आयुर्वेद में इस तरह करते है उपचार
1. निदान परिवर्जन-मच्छर पैदा होने से रोकना। पूरी बांहों व पूरा शरीर ढकने वाले वस्त्रों का उपयोग करना।
2. आहार-विहार में परिवर्तन - शुद्ध शाकाहारी, स्वच्छ, लघु सुपाच्य पोषक तत्वों वाला मध्यम गर्म भोजन करना। खिचड़ी, दाल-चावल, दलिया आदि का सेवन करना।
3. चिकित्सा -सामान्य दूध, मिश्री व हल्दी का सेवन करना। दो ग्राम सौंठ, 5 ग्राम गिलोय चूर्ण 100 मिमी पानी में डालकर उबाले। उसका सुबह-शाम सेवन करें। छह से 12 वर्ष तक के बच्चों में यह मात्रा आधी रखे।
4. रसायन- रसायन के तहत चिकित्सकों के कहे अनुसार दवाओं का सेवन करना चाहिए।
इनका करना चाहिए सेवन
-आंवला व व्हीटग्रास जूस के साथ गिलोय का रस रोगी की प्रतिरक्षा और प्लेटलेट्स में सुधार करने में मदद करता है।
-नारियल पानी दिन में कम से कम 2 बार पीना चाहिए।
-मैथी का पानी को दर्द निवारक के रूप में उपयोगी है। मैथी को रात भर पानी में भिगोकर रखें, सुबह छानकर हल्का गर्म कर पीना चाहिए।
-हरी सब्जियों में खीरा, तूरई, टिंडा, एकद्दू का सेवन करें।
-सौंफ का पानी पीना चाहिए।
-आहार में घर का हल्का खाना जैसे खिचड़ी और मूंग दाल खाए।
-दूध में एक चौथाई भाग हल्दी डालकर ले।
-तेज नमक, मिर्ची, फास्ट फूड व चीनी का उपयोग नहीं करें।
नींबू का रस उपयोगी
नींबू का रस और सामान्य गुनगुना जल का सेवन करना चाहिए। बुखार होने पर ठंडी पट्टी सिर पर रखे एवं मौसम अनुसार संतरा, मौसमी, टमाटर, अनार का जूस लेना अच्छा होता है। योग में जल नेती, अनुलोम-विलोम, कपालभाति, सूर्य स्नान करना चाहिए। -डॉ. कैलाश प्रजापति, पाली
आयुर्वेद में कहते है दंडक ज्वर
डेंगू शब्द की उत्पत्ति स्वाहिल कहावत काजिंगा पेपो अर्थाथ मुष्टिदंडहतवत पीड़ा से हुई है। इसे आयुर्वेद में दंडक ज्वर कहते है। आयुर्वेद में इसका उपचार बेहतर तरीके से किया जाता है। इसके चार प्रकार है। जिनमें घरेलू उपायों के साथ चिकित्सक की दवाएं भी शामिल है। -डॉ. अखिल व्यास, पाली
Published on:
25 Oct 2021 08:48 am
बड़ी खबरें
View Allपाली
राजस्थान न्यूज़
ट्रेंडिंग
