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जानिये पाली के राता महावीरजी के बारे में : जो आपने पहले कभी नहीं सुना होगा

जैन समाज के साथ ग्रामीणों की आस्था का भी केन्द्र

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pali rata mahaveer

अविनाश केवलिया/चंद्रशेखर अग्रवाल . पाली

पाली.

हमारा जिला प्राकृतिक और धार्मिक पर्यटन का एक प्रमुख केन्द्र। यहां वर्षपर्यन्त श्रद्धालुओं का पर्यटकों की आवाजाही लगी रहती है। जिले में ऐसा ही एक प्राकृतिक-धार्मिक पर्यटन स्थल है हथुंडी राता महावीर मंदिर। जिसे करीब 17 सौ साल पुराना बताया जाता है। प्रकृति की गोद में बाली तहसील के बीजापुर गांव के समीप स्थित इस मंदिर को लेकर पत्रिका टीम की विशेष रिपोर्ट।

यह है विशेषता

यह मंदिर पहाडिय़ों के बीच स्थित है। चारों ओर हरियाली से आच्छादित इस मंदिर की नक्काशी देखते ही बनती है। मंदिर में विराजमान मूलनायक भगवान महावीर की मूर्ति ईंट-चूना-रेत से बनी हुई है। बताया जाता है कि इस मूर्ति का मुंह गजसिंह और पीठ शेर की है। मूर्ति का रंग भी लाल रंग का प्रतीत होता है इसलिए इसे राता महावीरजी भी कहते हैं।
मंदिर का इतिहास

इस मंदिर के प्रवेश द्वार पर ही लिखा है कि करीब 17 सौ साल पुराना है। मंदिर परिसर में ही दो शिलालेख भी स्थित हैं। जो कि प्राचीन भाषा में लिखे हैं। यह भाषा आज तक कोई समझ नहीं पाया। स्थानीय ट्रस्टी के प्रबंधक ने भी बताते हैं कि सालों से इस भाषा को समझने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन कोई जानकार नहीं मिला है।

यह है हथुंडी नगरी का इतिहास
इस मंदिर को हथुंडी राता महावीर भी कहते हैं। वहां के स्थानीय लोग बताते हैं कि यहां हथुंडी नगरी हुआ करती थी। जिसे सालों पहले किसी लुटेरे ने उजाड़ दिया। इसके बाद यहां के राठौड़ वंश ने गुरु भगवंतों के साथ मिलकर मंदिर की देखरेख की और इसे फिर से बसाया।

देश के कोने-कोने से आते हैं लोग
इस मंदिर को देखने और यहां के शिल्प को निहारने के साथ धार्मिक आस्था प्रकट करने के लिए प्रदेश ही नहीं देश के कोने-कोन से लोग आते हैं। यह मंदिर जैन समाज के साथ ही यहां स्थानीय आदिवासी लोगों के लिए भी आस्था का केन्द्र है। आदिवासी समाज के लोग भी यहां पूजा-अर्चना करते हैं।

इनका कहना...
यह मंदिर 17 सौ साल पुराना है। 11 साल पहले इस मंदिर का जीर्णोद्धार शुरू हुआ था। इस हथुंडी नगरी का इतिहास काफी पुराना है। यह जैन समाज के साथ ही राठौड़ वंश की कुलदेवी भी है।

- सोहनलाल लौहार, राता महावीर मंदिर ट्रस्ट।