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राजस्थानी भाषा की संवैधानिक मान्यता को लेकर क्या बोले पद्मश्री अर्जुनसिंह शेखावत …

- साहित्यकार पद्मश्री डॉ. अर्जुनसिंह शेखावत से विशेष बातचीत

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राजस्थानी भाषा की संवैधानिक मान्यता को लेकर क्या बोले पद्मश्री अर्जुनसिंह शेखावत बोले...

राजस्थानी भाषा की संवैधानिक मान्यता को लेकर क्या बोले पद्मश्री अर्जुनसिंह शेखावत बोले...

राजेन्द्रसिंह देणोक

पाली. राजस्थानी भाषा और साहित्य के लिए हाल ही पद्मश्री (Padam shree award) से नवाजे गए अर्जुनसिंह शेखावत को राजस्थानी (Rajasthani) भाषा को संवैधानिक मान्यता (Rajasthani language constitutional recognition) न मिलने की गहरी तड़प है। उन्होंने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को एक पत्र लिखकर अपना दर्द साझा किया है। उनसे सवाल किया कि कॉलेजों में राजस्थानी पढ़ाई जा रही है, साहित्यकारों को हर साल सम्मानित किया जा रहा है... फिर भी संवैधानिक मान्यता न देने की वजह क्या है? उन्होंने खुद को मिले पद्मश्री को अधूरा बताते हुए कहा कि राजस्थानी को मान्यता मिलेगी, तभी सम्मान का औचित्य सिद्ध होगा। उन्होंने कहा कि देश में करीब 10 करोड़ लोग राजस्थानी भाषा बोलते हैं। फिर भी इसे संविधान की आठवीं सूची में नहीं जोडऩा हठधर्मिता है। राजस्थानी की मान्यता के मसले पर पत्रिका ने 90 वर्षीय पद्मश्री शेखावत (Padam shree Arjun singh shekhawat) से बातचीत की, पेश है अंश...।

मायड़ को मान दिलाने के लिए मरते दम तक लडूंगा

सवाल: राजस्थानी को मान्यता दिलाने के लिए क्या प्रयास कर रहे हैं?

जवाब: भाषा मां होती है। मां को मान दिलाने के लिए मैं अंतिम सांस तक लड़ूंगा। मुझे पद्मश्री मिला, तब भी मैंने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से यह बात कही थी। अब मैं एक मुहिम चलाने जा रहा हूं। प्रदेश के सभी जनप्रतिनिधियों को चि_ी लिख रहा हूं कि वे भी जुड़ें। मैं चाहता हूं कि अब यह जनआंदोलन बने। अब इंतजार करने की नहीं, बल्कि अधिकार मांगने की जरूरत है।

सवाल: राजस्थानी को मान्यता दिलाने में हम कहां कमजोर पड़ रहे हैं?

जवाब: कमजोर तो नहीं कहूंगा, उदासीनता जरूर है। हमारे जनप्रतिनिधियों को इसका महत्व कभी समझ नहीं आया। इस कारण राजनीतिक प्रयासों में कमी है। तत्कालीन मंत्री और भाजपा नेता जसवंतसिंह जसोल ने कुछ प्रयास किए थे। अब वक्त आ गया है हमारे सभी जनप्रतिनिधियों को पुरजोर मांग उठानी चाहिए। मजबूती से पैरवी करने की जरूरत है। आखिर, राजस्थानी भी हिंदी की एक आंख है।

सवाल: स्थानीय भाषा को मान्यता मिलने से क्या बदलाव आएंगे?
जवाब: भाषा हमारा अधिकार है। करोड़ों लोग राजस्थानी के समर्थक है। हमारी संस्कृति को बचाने और भावी पीढ़ी को इससे रूबरू कराने के लिए राजस्थानी को मान्यता मिलना नितांत आवश्यक है। सरकारी नौकरियों में भी हमारे युवाओं को फायदा मिलेगा।

सवाल: इंटरनेट और सोशल मीडिया से राजस्थानी भाषा को कितना बल मिला?

जवाब : राजस्थानी अपने आप में ही समृद्ध है। इसमें तीन हजार से ज्यादा ग्रंथ है। बड़ा शब्द कोष है। दो लाख प्राचीन पांडुलिपियां प्रकाशन की प्रतीक्षा में है। सैकड़ों विदेशी विद्यार्थी हमारे साहित्य पर शोध कर रहे हैं। लेकिन, यह भी स्वीकारना होगा कि तकनीक ने मायड़ का मान बढ़ाया है। सोशल मीडिया पर बड़ी मात्रा में हमारी मातृभाषा में कंटेंट उपलब्ध है। बड़ी संख्या में लोग पसंद कर रहे हैं। यह गौरव का विषय है।


शेखावत ने ये भी दिए तर्क

-एनसीईआरटी ने प्राथमिक शिक्षा राजस्थानी में देना स्वीकार किया है।
-उच्च न्यायालय ने भी बयानों और बहस के लिए राजस्थानी को मान्यता दी है।

-माध्यमिक शिक्षा बोर्ड एवं उच्च शिक्षा विभाग द्वारा एमए तक की डिग्री राजस्थानी में दी जा रही।
-केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा राजस्थानी साहित्यकारों को हर साल पुरस्कृत किया जा रहा है।

-जापान सरकार द्वारा टैगोर पुरस्कार दिया जा रहा है।
-व्हाइट हाउस ने भी इसे अंतरराष्ट्रीय भाषाओं में शामिल किया है।

-राजस्थान विधानसभा ने एक दशक पूर्व प्रस्ताव पारित कर केन्द्र को भिजवा दिया था।