
पाली के एेसे वीर जिन्होंने लाहोर में फहराया तिरंगा
सुमेरपुर (निसं) . गलथनी भले ही गांव तो छोटा सा ही है। लेकिन, यहां के वीरों की वीरता की कहानियां सात समंदर पार भी गूंजती है। 1965 के भारत-पाक युद्ध में लाहौर जिले की बरकी पुलिस चौकी फतेह कर तिरंगा फहराने का यादगार पल हो या फिर आजादी से पूर्व चीन व प्रथम विश्व युद्ध में अपने शौर्य का लोहा मनवाना, गलथनी के वीरों के शौर्य को भुलाया नहीं जा सकता। आज भी इस गांव से काफी संख्या में वीर सेना में अपना पराक्रम दिखा रहे हैं।
सुमेरपुर से पांच किलोमीटर दूर सुमेरपुर-जवाईबांध मार्ग पर आबाद गलथनी गांव की आबादी तो सात सौ घरों की ही है। लेकिन, यहां राजपूत समाज के साथ देवासी व सुथार जाति सहित अन्य जाति के लोग भी बहुतायत में है। यहां से वीर युवा सेना समेत अन्य विभागों में उच्च पदों में रह चुके हैं। कहते हैं कि पूर्व में गलथनी गांव जवाईनदी के तट पर बसा था। तब संत मौजी बाबा के शिष्य अजीतसिंह देवड़ा ने समृद्धि को लेकर गांव को अन्यत्र बसाने की गुहार लगाई तो संत के निर्देश पर ठाकुर केसरीसिंह देवड़ा ने करीब 150 साल पहले वर्तमान जगह पर इस गांव को बसाया था। बाबा ने सन् 1898 में एसव नामक कुएं के समीप जीवित समाधि ली थी, जहां आज भी लोग दर्शन के लिए उमड़ते हैं।
चीन से फ्रांस तक मनवाया लोहा
गलथनी के ठाकुर केशरीसिंह ने 1886 में दुर्गा फोर्स ज्वाइन करने के बाद 1889 में जोधपुर लांसर फोर्स का गठन किया। 1891 में प्रथम चीन युद्ध व 1914 में प्रथम विश्व युद्ध में शौर्य का लोहा मनवाया। उन्होंने फ्रांस के फेस्टोबिया में लड़ाई लड़ते समय मेजर स्ट्रॉंग को जर्मनी की खाई में भारी बमबारी से बचाकर अपनी वीरता का परिचय दिया था। इनके भाई समरथसिंह देवड़ा ने भूपाल इंफेन्ट्री में बतौर उदयपुर-मेवाड कमांडिंग ऑफिसर में सैन्य सेवा की शुरुआत की। 1917 में भारतीय सेना में कमीशन मिला। गौरवपूर्ण सेवाओं के चलते वायसराय ऑफ इंडिया फिल्ड मार्शल लार्ड वेवल ने राव साहिब की उपाधि से नवाजा था। उनको प्रिंस वाल्स मेडल, सिल्वर जुबली मेडल, कोरानेशन मेडल व विक्टोरिया मेडल से भी नवाजा गया। वहीं, बिग्रेडियर हरिसिंह गलथनी के पराक्रम के चर्चे तो आज भी दुनियाभर में मशहूर हैं। अपने पिता कैप्टन समरथसिंह से विरासत में मिले देश सेवा के जज्बे के साथ 1941 में सैकंड लेफ्टिनेंट के रूप में जोधपुर स्टेट फोर्स ज्वाइन की। 1944 में कमीशन पाकर भारतीय सेना के हिस्सा बने। बिग्रेडियर हरिसिंह ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान मध्य-पूर्व के इराक, इरान, सीरिया, लेबनान, फिलिस्तीन व मिश्र आदि देशों में परचम लहराते हुए देश का नाम रोशन किया। उन्हें 1945-48 मिडिल-इस्ट मेडल व डिफेंस मेडल से नवाजा गया।
जम्मू कश्मीर की जमीन कराई थी मुक्त
हरिसिंह ने 1947 के जम्मू-कश्मीर युद्ध में पाकिस्तानी कबाइलियों के कब्जे से हिन्दुस्तान की काफी भूमि को मुक्त करवाया था। 1965 में भारत-पाक युद्ध के समय 18 केवलरी के कमांडर के रूप में ये सियालकोट तक पहुंचे थे। दुश्मन के 29 टैंकों को ध्वस्त करने वाले ब्रिगेडियर हरिसिंह पहले भारतीय सैन्य अधिकारी थे, जिन्होंने इछोगिल नहर पर पहुंचकर पाकिस्तान के लाहौर जिले के बरकी पुलिस स्टेशन पर कब्जा किया था। इतना ही नहीं, 1971 में बांग्लादेश युद्ध में भी भारतीय सेना को विजयी दिलाई थी। 30 मार्च 1974 को तत्कालीन राष्ट्रपति वीवी गिरी ने इन्हें अति विशिष्ट सेवा मेडल से नवाजा था।
गलथनी के कई युवा बने बड़े अधिकारी
गलथनी के बन्नेसिंह कलक्टर रह चुके हैं तो डॉ. एसएस देवड़ा एसएमएस हॉस्पिटल जयपुर के अधीक्षक पद से सेवानिवृत हुए हैं। भवानीसिंह देवड़ा आरएएस, भीकसिंह तहसीलदार सेवा व नारायणदास तहसीलदार पद से सेवानिवृत हुए हैं। वर्तमान में गोविंदसिंह देवस्थान बोर्ड उदयपुर में उपायुक्त है तो नारायणसिंह देवड़ा सहायक निदेशक कृषि, डॉ. भीकसिंह देवड़ा, डॉ. रेणू, चेलाराम मेघवाल एसबीबीजे सहायक प्रबंधक, हीरसिंह रावणा सहायक निदेशक कृषि के पद पर रह चुके हैं। डॉ. नीलम मेघवाल पीएचडी कर चुकी है तो डॉ. हर्षिता मेघवाल आयुर्वेद चिकित्सक हैं। वहीं गांव के कई लोग सेना में अधिकारी हैं।
Published on:
17 Mar 2019 07:00 am
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