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जल का अक्षय स्रोत है सूरजकुंड, जिसकी गहराई बनी है रहस्य

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देसूरी अरावली में स्थित सूरजकुड़ में अनन्त गहराईयों तक अथाह पानी।

देसूरी अरावली में स्थित सूरजकुड़ में अनन्त गहराईयों तक अथाह पानी।

देसूरी. ग्रीष्मकाल आते ही जलाशयों में पानी सूख जाना प्रदेश की नियति है। ऐसे में देसूरी के समीप मौजूद सूरजकुंड जल का अक्षय स्रोत बना हुआ है। किवंदती है कि कई खाटों की रस्सी लटकाने के बावजूद भी इसके पानी की गहराई नहीं नापी जा सकी। बताया जाता है कि इस कुंड का पानी बहुत ही उपयोगी है। चर्म रोग से पीडि़त इस कुंड के पानी में नहाने से रोग से मुक्ति मिल जाती है। इसको लेकर लोग इस कुंड को देखने के लिए बड़ी संख्या में जाते हैं। जबकि इसकी गहराई आज भी रहस्य बनी हुई है।

प्राकृतिक नजारों से लबरेज सूरजकुंड पहुंचने के लिए सेलीनाल बांध से नदी के किनारे लगभग दस किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। राजसमंद जिले के ग्वार मझेरा से इस कुंड तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। सूरजकुुंड कुंभलगढ़़ वन्यजीव अभयारण्य की केलवाड़ा रेंज में पड़ता है। यहां हिंगलाज माता का छोटा मंदिर है। दर्शन के लिए मेवाड़ और गोडवाड़ के श्रद्धालुओं का दिन में पैदल आना-जाना रहता है। गर्मियों से सताए लोग इस कुंड के पानी में डुबकी लगाने पहुंचते रहते हैं। जल की शीतलता सुकून पहुंचाती है। रात्रि विश्राम के लिए यहां बरामदा भी बना हुआ है। सूरजकुण्ड के ठीक ऊपर इससे लगता एक और कुंड है। ये कुंड देसूरी कस्बे के सेलीबांध तक पहुंचने वाली नदी के उद्गम स्थल पर है। जामुन के पेड़ो से नयनाभिराम दृश्य बनाता यह कुंड तीनों तरफ पहाड़ी से घिरा हुआ है। यहां श्रद्धा रखने वाले लोग इसके एक कोने में पानी की गहराई को अनन्त बताते हैं। बताते हैं कि रियासतकाल में भी इसकी गहराई आंकने के प्रयास किए गए, लेकिन सफलता नहीं मिली। इस वैज्ञानिक युग में आज भी कुंड की गहराई रहस्य बनी हुई है।

नहीं गिरता जलस्तर

गुजरी सदियों में अकाल में भी इस कुण्ड के पानी का जलस्तर ज्यों का त्यों बना रहा। प्रकृति ने इस स्थल को जल संग्रहण की कुदरती नियामत दी है। बताया जाता है प्राकृतिक स्रोतों के कारण इसके जल स्तर में कभी गिरावट नहीं आती है।

वन्यजीवों के लिए वरदान

कुम्भलगढ़ अभयारण्य के वन्यजीवों के लिए तो यह कुंड वरदान बना हुआ है। रात में रीछ सहित सभी वन्यजीव यहां अपनी प्यास बुझाने आते रहते हैं। मानवीय हलचल नगण्य होने से प्राकृतिक संतुलन कायम है। अभयारण्य की जैव विविधता के लिए इस कुंड का अपना योगदान है। इसके बाद कोसों तक पानी देखने को नहीं है।