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बाघ और इंसानों के बीच अनोखा तालमेल, यहां पानी पीने का बना है टाइम टेबल

सेहा की झिरिया... रात में बाघ-तेंदुए और दिन में इंसान बुझाते हैं प्यास, जंगली जानवरों और इंसानों के बीच तालमेल का नायाब उदाहरण

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पन्ना

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Manish Geete

Apr 27, 2022

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पन्ना। जंगली जानवरों और इंसानों के बीच तालमेल देखना हो तो पन्ना टाइगर रिजर्व के हिनौता वन परिक्षेत्र में बसे बिलहटा और कटहरी गांव घूम आइए। यहां एक ऐसा घाट है जहां रात में बाघ-तेंदुए अपनी प्यास बुझाते हैं और दिन में इंसान।

जिला मुख्यालय से करीब 60 किमी. दूर बसे इन गांव के लोगों और जानवरों के लिए घने जंगल के बीच सेहा में करीब 100 फीट नीचे बनी झिरिया ही पानी का सहारा है। यहां रात से सुबह तक हिंसक वन्यप्राणी पानी पीने पहुंचते हैं। जबकि, दिन में गांव के लोग पानी भरते हैं। इसके बावजूद कभी टकराव की स्थिति नहीं बनी। इसका कारण ग्रामीण बताते हैं कि जंगली जानवर ज्यादातर सुबह व शाम के समय पानी पीने जाते हैं। इसलिए हम लोग दिन निकलने के बाद ही झिरिया में जाकर पानी लेते हैं। जानवरों व हमारे बीच समय का यह तालमेल बना रहता है। हालांकि कई बार ग्रामीणों का वन्यप्राणियों से सामना भी हुआ पर वे पानी पीने के बाद वापस अपने रास्ते चले गए और गांव वाले अपने रास्ते लौट आए।

गांव में नहीं पानी का स्त्रोत, ढाई किमी का सफर

बिलहटा निवासी ठाकुरदीन गोंड बताते हैं कि हमारे गांव में कुल 60 घर हैं। सभी आदिवासी हैं। लगभग 400 की आबादी वाले इस गांव में कोई जीवित जलस्रोत नहीं है। एक हैंडपंप लगा है, जिसमें पानी नहीं है। ऐसी स्थिति में सिर्फ झिरिया ही एकमात्र सहारा है। इसके पानी से दो गांव के लोगों के साथ वन्यजीवों की प्यास बुझती है। गांव की आदिवासी महिला नन्हीं बहू बताती है कि घने जंगल के बीच सेहा में 100 फीट नीचे उतरकर आदिवासी महिलाएं व बच्चे पानी के लिए पहुंचते हैं। वहां से पानी सिर पर रखकर ढाई किमी. दूर गांव तक ले जाते हैं।

हम जानवरों के साथ ही पले बढ़े

गांव के बैजू आदिवासी बताते हैं कि बिलहटा गांव की तरह कटहरी में भी कोई जलस्रोत नहीं है। सिर्फ एक हैंडपंप लगा है, जिसका पानी ठीक नहीं है। कटहरी में लगभग 60 घर हैं तथा यहां की आबादी 300 के आसपास है। हम लोग इसी जंगल में जानवरों के साथ पले बढ़े हैं। इसलिए हमें डर नहीं लगता। वन कर्मचारियों का कहना है कि झिरिया में बारह महीने पानी बना रहता है। इसके पानी से वन्य प्राणियों के साथ-साथ आदिवासी भी अपनी प्यास बुझाते हैं।

वन्यजीवों का रहता है खतरा, समूह में जाते हैं पानी लेने

कटहरी की ही केसरबाई की मानें तो सेहा के ऊपर दो गांव कटहरी और बिलहटा बसे हैं। इन दोनों गांव से झिरिया (जलस्रोत) की दूरी ढाई किमी है। वहां पहुंचने के लिए जंगल के बीच से पगडंडी है। ऊबड़-खाबड़ पत्थरों वाली इसी पगडंडी से गुजरते समय जंगल में हिंसक वन्यजीवों की आहट भी सुनाई देती है। कभी कभी बाघ, तेंदुआ व भालू जंगल में घूमते मिल जाते हैं। इनका हमेशा खतरा बना रहता है। ऐसे में हम लोग कभी अकेले पानी लेने नहीं जाते। हमेशा 8-10 के समूह में जाते हैं।