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सामाजिक संगठनों ने क्यों खोला मोर्चा – पढ़िए इस खबर में

पवित्र नगरी से शराब की दुकानें हटाने की मांग, रिश्तों में आ रही दरार से टूट रहे घर, सामाजिक व्यवस्था हो रही छिन्न-भिन्न

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Suresh Kumar Mishra

Apr 28, 2016

panna news

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पन्ना।
शराब सामाजिक बुराई बन चुकी है। एक अनुमान के अनुसार औसतन समाज का हर 10वां घर इस बुराई की जद में है। समाज के बीच फैले देसी और विदेशी शराब के कारोबार सामाजिक व्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर रहे हैं। आदिवासी अंचलों में तो यह हाल है कि लोग सुबह उठने के साथ ही शराब पीने लगते हैं।


इन दिनों महुआ आसानी से मिल जाने के कारण ग्रामीण अंचलों में तो महुए के शराब की बहार आई है। शहर गांव में कहीं न कहीं महुए की अवैध शराब बिकती हुई मिल जाती है। यहां तक कि 12-14 साल के बच्चे और महिलाएं तक इसकी जद में हैं। इसके बाद भी राजस्व की लालच में शराब की धड़ल्ले से बिक्री जारी है। जिला प्रशासन और आबकारी विभाग शराब की अवैध बिक्री नहीं रोक पा रहा है। ग्रामीण अंचलों में तो शराब ने परिवारिक व्यवस्थाओं को तहस नहर कर दिया है।


पत्रिका द्वारा चलाए जा रहे अभियान प्रदेश भी क्यों न हो शराब मुक्त को लेकर जिले के स्वयं सेवी संगठनों ने भी मोर्चा खोल दिया है। लोगों का कहना है कि सरकार को शराब दुकानों की नीलामी से होने वाली आय तो दिखती है, लेकिन शराबियों के इलाज में अस्पतालों में किया जा रहा खर्च नहीं दिखता है। इसके अलावा न जाने कितने लोग शराब के कारण असमय कालकवलित हो रहे हैं और कितने बच्चों के सिर से असमय ही परिवार का साया छूट जाता है।


अपराधों पर लगेगा अंकुश

समाज के लोगों का कहना है कि अधिकांश अपराध तो परिस्थितिजन्य और आवेश में होते हैं। अधिकांश आपराधिक मामलों में पाया जाता है कि आरोपी या पीडि़त दोनों में से कोई न कोई नशे की हालत में होता है। शराब बंदी के बाद ऐसे अपराधों पर प्रभावी तरीके से अंकुश लगाया जा सकेगा। इससे जहां एक ओर अपराधों में कमी आएगी वहीं दूसरी ओर समाज व्यवस्था में भी काफी हद तक सुधार आ सकेगा।


हादसों में काफी हद तक आएगी कमी

पत्थर खदान मजदूर संघ के जिलाध्यक्ष यूसुफ सिद्दिकी ने कहा कि बड़ी संख्या में हो रहे सड़क हादसों की एक वजह शराब भी है। शराब की यदि बिक्री रोक दी जाए तो सड़क हादसे में भी कुछ हद तक कमी लाई जा सकती है। सस्ती शराब के कारण ग्रामीण अंचलों में आदिवासियों के परिवार तहस-नहस हो रहे हैं। पुरुष दिनभर शराब पीकर पत्ते खेलते रहते हैं और महिलाएं जंगल से लकड़ी लाकर परिवार चलाती हैं। पुरुष शराब के नशे में बच्चों और महिलाओं के साथ भी मारपीट करते हैं। शराब पर यदि पाबंदी लगाई जाती है तो अप्रत्यक्ष रूप से गरीब परिवार की महिलाओं के साथ बड़ा उपकार होगा।


लोगों को जागरूक किया जाना जरूरी

मानसी संस्था के सुदीप श्रीवास्तव ने कहा, शराब ने पारिवारिक व्यवस्था में बहुत नुकसान पहुंचाया है। निश्चित ही शराब की बिक्री बंद किया जाना चाहिए। शराब पर पूरी तरह से पाबंदी लगाने से पहले लोगों को जागरूक किया जाना जरूरी है। यदि लोगों को जागरूक किए बगैर अचानक शराब की बंदी की जाती है तो इसकी कालाबाजारी बढऩे के आसार रहेंगे। इससे जरूरी है कि शराब की बिक्री पर एकदम से रोक लगाने से पहले लोगों के बीच जागरुकता अभियान चलाया जाए और जो लोग शराब के नशे के आदी हैं उन्हें सुरक्षित तरीके से नशा मुक्ति केंद्र में शराब की लत छुड़ाने के प्रयास किए जाएं।


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