
तभी तो मरते रहे बच्चे, सरकार और प्रशासन मौतों पर डालता रहा पर्दा
पटना .प्रियरंजन भारती। ऐक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम(एईएस) यानी चमकी बुखार से लडऩे की सरकारी इच्छाशक्ति कितनी प्रबल है इसका खुलासा महालेखाकार की रिपोर्ट से हो गया है। रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि चमकी बुखार से प्रभावित आठ जिलों में आज तक पीआईसीयू (पीडियाट्रिक इंटेंसिव केयर यूनिट) तक नहीं है। यह तो तब है जब बिहार मेडिकल सर्विसेज इंफ्रास्ट्रक्चर कॉरपोरेशन लिमिटेड को सभी प्रभावित जिलों में पीआईसीयू खोलने के लिए बजट से अधिक 11.10 करोड़ रुपये दिये गये।
स्वास्थ्य महकमा कितनी ईमानदारी से इस बीमारी को खत्म करने में जुटा है इसकी एक बानगी यह भी है कि प्रति पीआईसीयू में उपकरणों के लिए डेढ़-डेढ़ करोड़ रुपये दिये गये। पीआईसीयू खोलने के लिए बजट 9.79करोड़ निर्धारित थी। बावजूद इसके पीआईसीयू नहीं खोले जा सके। पैसों का सरकारी गोलमाल किस क़दर होता है इसका नमूना यही यह है कि चमकी बुखार के लिए इन पैसों की ज्यादातर खपत अन्य मदों में दिखाा दी गई। हालात यह है कि चमकी बुखार से पीडि़त उत्तर बिहार के पंद्रह जिलों के बच्चों को इलाज के लिए मुजफ्फरपुर के एसकेएमसीएच ही ले जाना पड़ता है।
आशाकर्मियों को नहीं मिला सहयोग
महालेखाकार ने अपनी रिपोर्ट में और भी सच्चाइयां खोलकर रखी हैं। रिपोर्ट के अनुसार राज्य सरकार की योजना पर अमल नहीं हो सका। सरकार ने तय किया था कि स्वास्थ्य विभाग के तहत काम करने वाली आशाकर्मियों का मानदेय बढ़ाकर तीनगुना कर दिया जाएगा। आशा कर्मी महिलाएं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में ग्रामीण क्षेत्रों खासकर बच्चों और महिलाओं की सहायता के लिए मानदेय पर रखी जाती है। सरकार ने तय किया था कि एईएस पीडि़त बच्चों को नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचाने में आशा कर्मी सहायक होंगी। इनका मानदेय तिगुना करने की पहल तो छोड़ दें सरकार ने2014 से2019 तक इनके मानदेय के लिए फंड ही जारी नहीं किया। प्रोत्साहन राशि के अभाव के चलते आशाकर्मियों को पैसा नहीं मिलने से इनका सहयोग नहीं मिल सका और हालात भयावह हो गए।
Updated on:
24 Sept 2019 05:59 pm
Published on:
24 Sept 2019 05:52 pm
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