
नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव इस बार नई चुनौतियों से दो चार हो रहे हैं। (फोटो सोर्स : ANI)
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की सियासी बिसात अब सज रही है। चुनावी रणभेरी भले अक्टूबर-नवंबर में बजेगी, लेकिन महागठबंधन और एनडीए दोनों ही खेमों के लिए अभी से नए संकट और चुनौतियों की लिस्ट लंबी हो गई है। इस बार मुकाबला सिर्फ सत्ता हासिल करने का नहीं, बल्कि बिहार की जनता को यह भरोसा दिलाने का है कि कौन विकास, रोजगार और सुशासन का विजन लेकर आया और उस पर अमल भी करेगा। आइए समझते हैं कि दोनों खेमों के सामने कौन-कौन सी 3 नई चुनौतियां हैं।
राहुल गांधी ने बिहार से ‘वोटर अधिकार यात्रा’ शुरू कर चुनावी माहौल गरमाया है। यह यात्रा विशेष मतदाता पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया के खिलाफ है। लेकिन बीजेपी और जदयू इसके उलट SIR को वैध प्रक्रिया मान रहे हैं। अब चुनौती यह है कि महागठबंधन इसे असली जन आंदोलन बना पाता है या नहीं।
चुनाव की स्ट्रैटेजी बनाने वाले प्रशांत किशोर अब बिहार में जन सुराज पार्टी के जरिए तीसरे विकल्प के रूप में उभर रहे हैं। जानकार कहते हैं कि उनकी पैठ गांव-गांव तक बढ़ रही है। यह पार्टी अगर कुछ सीटों पर भी असर डालती है तो महागठबंधन के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लग सकती है।
सीट बंटवारे का संकट महागठबंधन के लिए बड़ी चुनौती बन सकती है। आरजेडी, कांग्रेस और अन्य सहयोगी दलों के बीच सीट बंटवारे को लेकर खींचतान है। कांग्रेस 70 सीटों की मांग पर अड़ी है, जबकि आरजेडी खुद 140 से अधिक सीटों पर दावेदारी जता रही है। छोटे दल मुकेश सहनी की VIP भी बड़ी हिस्सेदारी चाहती है। यह टकराव अगर लंबा खिंच गया तो कार्यकर्ताओं तक गलत संदेश जाएगा और गठबंधन की ताकत कमजोर पड़ सकती है।
इस बार एनडीए को सबसे बड़ी चुनौती चुनाव आयोग के SIR पर उठे विवाद से मिल रही है। विपक्ष लगातार ‘वोट चोरी’, ‘लोकतंत्र खतरे में’ और ‘संस्थाओं के दुरुपयोग’ जैसे मुद्दों को हवा दे रहा है। इससे एनडीए का विकास और सुशासन वाला नैरेटिव दब सकता है। एनडीए को अपने संदेश को और जोरदार तरीके से जनता तक पहुंचाना होगा। विपक्ष का आरोप है कि लाखों वैध नाम हटाए गए हैं। एनडीए पर लोकतंत्र को कमजोर करने का आरोप लग रहा है। यह विवाद अगर गहराया तो उसकी छवि पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।
एनडीए के बिहार में दो घटक लोजपा-आर के चिराग पासवान और जीतनराम मांझी बीजेपी-जदयू की सिरदर्दी बढ़ाए हैं। चिराग पासवान तो खुल्लमखुल्ला बोल चुके हैं कि वे अकेले चुनाव लड़ सकते हैं। जीतनराम मांझी भी सीटों के बंटवारे पर दबाव बनाए हुए हैं। वहीं यूपी में बीजेपी के साथ सरकार में शामिल ओम प्रकाश राजभर भी बिहार में सभी सीटों पर चुनाव लड़ना चाहते हैं। उनका कहना है कि एनडीए ने सीट नहीं दी तो वे अकेले चुनाव लड़ेंगे। एनडीए के ये सहयोगी अगर चुनाव में अकेले उतरते हैं तो चुनावी गणित एनडीए के पक्ष में बिगड़ सकता है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बार-बार पाला बदलने से गठबंधन की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हुए हैं। बीजेपी और जेडीयू के रिश्तों में खटास की चर्चा अकसर होती है। छोटे सहयोगी दल भी अपने हित साधने में लगे हैं। ऐसे में कार्यकर्ताओं तक एकजुटता का संदेश पहुंचाना एनडीए के लिए बड़ी चुनौती है।
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Updated on:
22 Aug 2025 09:57 am
Published on:
22 Aug 2025 04:27 am
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