
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले सोशल मीडिया पोस्ट से हंगामा खड़ा हो गया है। (फोटो : Ani)
बिहार में विधानसभा चुनाव की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है। अक्टूबर-नवंबर में होने वाले मतदान के लिए सियासी खेमों में तेज हलचल है। सत्ता पक्ष यानी नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस (NDA) में सीट बंटवारे की बातचीत अब अंतिम चरण में पहुंच चुकी है। वहीं, विपक्षी महागठबंधन भी अपने अभियान को धार दे रहा है। राहुल गांधी और तेजस्वी यादव ने संयुक्त रूप से ‘वोटर अधिकार यात्रा’ की शुरुआत कर यह संकेत दिया है कि विपक्ष भी मुकाबले में पीछे नहीं रहने वाला।
सूत्रों के मुताबिक, बिहार की 243 विधानसभा सीटों में से बीजेपी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) को लगभग बराबर हिस्सेदारी मिलने की संभावना है। दोनों ही दल 100-105 सीटों पर चुनाव लड़ सकते हैं। एनडीए के एक सीनियर नेता ने कहा कि जदयू किसी भी हाल में बीजेपी से कम सीटों पर चुनाव नहीं लड़ेगी।
दरअसल, पिछली बार जदयू का प्रदर्शन उम्मीद से काफी कमजोर रहा था। पार्टी को केवल 43 सीटों पर जीत मिली थी। इसके पीछे बड़ा कारण चिराग पासवान की पार्टी का उन सीटों पर चुनाव लड़ना बताया गया था, जो जदयू को एनडीए ने दी थीं। तब एलजेपी ने 115 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और सिर्फ एक पर जीत दर्ज की, लेकिन 30 से ज्यादा सीटों पर JDU को नुकसान पहुंचाया।
इस बार तस्वीर बदली हुई है। चिराग पासवान अब मोदी सरकार में मंत्री हैं और उनकी पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) एनडीए का हिस्सा हैं। वे 40 सीटों की मांग कर रहे हैं, लेकिन राजनीतिक जानकार मानते हैं कि यह संख्या मिलना मुश्किल है। सूत्रों के अनुसार, उन्हें 15 से 20 सीटों तक ही मिल सकती हैं।
चिराग की चुनौती यह है कि वे खुद को मोदी के सबसे करीबी सहयोगी के रूप में पेश करना चाहते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि उनके संगठन की ताकत सीमित है। फिर भी उनकी मौजूदगी सीट शेयरिंग के समीकरण में अहम भूमिका निभाएगी।
NDA में अन्य छोटे सहयोगी भी हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्युलर) और केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा भी सीटों की उम्मीद लगाए बैठे हैं। मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (VIP) फिलहाल महागठबंधन के साथ है। अगर वह NDA में शामिल हो जाती है, तो यह समीकरण और पेचीदा हो जाएगा।
इधर, विपक्षी खेमे ने भी मोर्चा खोल दिया है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी और आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव ने ‘वोटर अधिकार यात्रा’ शुरू कर दी है। यह यात्रा ग्रामीण इलाकों से लेकर शहरों तक फैल रही है ताकि बेरोजगारी, महंगाई और किसानों के मुद्दों को जनता तक पहुंचाया जा सके। महागठबंधन का फोकस सामाजिक न्याय और युवाओं को रोजगार देने जैसे मुद्दों पर है। राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि महागठबंधन की सबसे बड़ी ताकत उसका वोट बैंक है, जबकि कमजोरी यह है कि कांग्रेस और आरजेडी के बीच तालमेल को लेकर अब भी कई सवाल बने हुए हैं।
NDA ने साफ कर दिया है कि नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री पद का चेहरा होंगे। हालांकि पिछली बार की तुलना में उनकी लोकप्रियता कुछ कम हुई है, लेकिन संगठन और रणनीति के स्तर पर NDA उन पर ही दांव लगाएगा। विशेषज्ञ मानते हैं कि चुनावी नैरेटिव बीजेपी और जदयू के बीच तालमेल बनाम महागठबंधन की सामाजिक समीकरणों पर टिका रहेगा। बीजेपी जहां मोदी के नाम और केंद्र सरकार की योजनाओं पर वोट मांगेगी, वहीं जदयू अपने काम और अनुभव का हवाला देगी।
कुल मिलाकर, बिहार की सियासत इस वक्त सीट बंटवारे की जोड़-घटाव पर अटकी है। NDA का फार्मूला तय होते ही तस्वीर साफ होगी कि किस पार्टी को कितनी ताकत मिली है। दूसरी तरफ, महागठबंधन भी रफ्तार पकड़ रहा है। आने वाले कुछ हफ्ते यह तय करेंगे कि बिहार की 2025 की जंग किस दिशा में बढ़ेगी।
संबंधित विषय:
Updated on:
26 Aug 2025 10:43 am
Published on:
25 Aug 2025 02:42 pm
बड़ी खबरें
View AllPatrika Special News
ट्रेंडिंग
PM नरेन्द्र मोदी
