
खेतड़ी में लगी स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा। Photo- Patrika
झुंझुनूं। देश के इतिहास में 11 सितम्बर का दिन महत्वपूर्ण है। आज से ठीक 132 साल पहले 1893 में स्वामी विवेकानंद ने शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन के सम्बोधन की शुरुआत 'अमरीकावासी भाईयों व बहनों…' से की थी। इसके आगे उन्होंने कहा था ' भारत माता जाग रही है…।
भारतवर्ष केवल अपने ही लिए नहीं जीता, अपितु सारी मानवजाति को आध्यात्मिक ज्ञान से पल्लवित का श्रेय भी उसे ही जाता है…। सम्बोधन की इस अनूठी शुरुआत ने वहां मौजूद सभी लोगों का दिल जीत लिया था। यही अवसर था जब पश्चिम का पूरब से सामना हो रहा था। पश्चिम देश भारत की संस्कृति, सभ्यता और दर्शन से रूबरू हो रहे थे।
शिकागो में दिए बहुचर्चित उद्बोधन ने बहुत कुछ बदल दिया था। स्वामी विवेकानंद पर पीएचडी करने वाले भीमसर निवासी डॉ. जुल्फिकार के अनुसार अमरीका में विवेकानंद की सफलता तथा उनकी उपलब्धियों का समाचार जब भारत में पहुंचा, तो सारा देश खुशी से झूम उठा था।
जुल्फीकार ने बताया, स्वामी विवेकानंद 9 सितंबर, 1893 को शिकागो पहुंचे। लेकिन वहां पहुंचकर विश्व धर्म सम्मेलन के लिए आए हुए प्रतिनिधियों के रुकने का पता किसी कारणवश उनसे गुम हो गया। शहर में कोई परिचय नहीं होने के कारण स्वामीजी के पास रात गुजारने के लिए कोई जगह नहीं थी। उन्होंने मदद के लिए उस शाम कई घरों के दरवाजे खटखटाए।
बाद में शिकागो शहर के रेलवे स्टेशन पर मालगाड़ी के एक खाली डिब्बे में रात बितानी पड़ी। वे दूसरे दिन सड़क के एक किनारे बैठ गए। तभी सामने के मकान का द्वार खुला और जार्ज डब्ल्यू हेल नाम की एक महिला आई। बाद में यह महिला उन्हें महासभा के दफ्तर में ले कर गई।
शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानंद ने जो पोशाक (चोगा व पगड़ी) पहनी थी, वह खेतड़ी की देन रही है। अब स्वामी विवेकानंद की लगभग हर तस्वीर में वही पोशाक नजर आती है। राजस्थान की गर्म जलवायु से स्वामी विवेकानंद को असुविधा होते देख खेतड़ी के तत्कालीन राजा अजीत सिंह ने उन्हें साफा पहनने की सलाह दी थी।
बाद में यही साफा व चोगा उन्होंने शिकागो के सम्मेलन में पहना था। इसके अलावा खेतड़ी आने से पहले उनका नाम विविदिषानंद था। बाद में खेतड़ी के राजा ने विवेकानंद नाम दिया था। उनके पांच नाम थे, जिनमें बचपन का नाम नरेंद्रनाथ दत्त, कमलेश, सच्चिदानंद, विविदिशानंद और विवेकानंद। सबसे ज्यादा चर्चित वे खेतड़ी से मिले विवेकानंद नाम से हुए।
वे खेतड़ी में तीन बार आए। पहली बार 7 अगस्त 1891 से 27 अक्टूबर तक रुके। दूसरी बार 21 अप्रेल 1893 से 10 मई तक रुके। तीसरी बार 12 दिसंबर 1897 से 21 दिसंबर तक रुके। खेतड़ी राजा के कहने पर उनके सचिव जगमोहनलाल ने उनके लिए शिकागो यात्रा की माकूल व्यवस्था की थी।
31 मई 1893 को ओरियंट कम्पनी के पैनिनशुना नामक जहाज के प्रथम श्रेणी का टिकट खरीदकर दिया था। इसके बाद वे शिकागो रवाना हुए थे। स्वामी विवेकानंद और राजा अजीत सिंह की पहली मुलाकात सिरोही जिले के माउंट आबू में हुई थी। उनकी स्मृति में खेतड़ी में अजीत विवेकानंद संग्रहालय बना हुआ है।
शिकागो धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानंद के विचारों ने दुनिया को धार्मिक कटृरता से ऊपर उठकर आपसी समझ और प्रेम का पाठ पढ़ाया। उनका भाषण सुनकर विद्वान चकित हो गए। उसके बाद पूरी दुनिया में भारत की छवि बदल गई और दुनिया भारत की मुरीद हो गई।
डॉ. जुल्फिकार भीमसर, विवेकानंद पर शोधकर्ता और लेखक
Updated on:
11 Sept 2025 01:53 pm
Published on:
11 Sept 2025 01:52 pm
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