
जापानी सेना का हावड़ा ब्रिज को तबाह करने का था प्लान। (Photo: IANS)
Howrah Bridge Bombed by Japani Army : आज ही के दिन यानी 20 दिसंबर 1942 को इम्पीरियल जापानी सेना वायु सेवा (Imperial Japanese Army Air Force) ने कलकत्ता (अब कोलकाता) शहर को बर्बाद करने की मानो कसम उठा रखी हो। जापानी सैनिकों ने हावड़ा ब्रिज को भी जमींदोज करने के लिए दो वर्षों तक अपने नापाक इरादे जारी रखे। लेकिन इन सबके बावजूद हावड़ा ब्रिज आज भी अपनी जगह मुस्तैदी से खड़ा है। यहां पढ़िए कैसे बचा रहा हमारा ब्रिज?
सन् 1942 में पूरी दुनिया द्वितीय विश्व युद्ध की चपेट में आ चुकी थी। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा होने के नाते भारत भी ब्रिटेन के सहयोगी के रूप में लड़ाई में शामिल था। इस युद्ध में अमेरिका भी ब्रिटेन के साथ ही खड़ा था।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत को एक प्रमुख हवाई आपूर्ति मार्ग के तौर पर इस्तेमाल में लाया जा रहा था और जिसका उपयोग अमेरिकी सैन्य अभियान के लिए किया जाता था। भारत में हिमालय पर्वत के ऊपर से अमेरिकी सेना उड़ान भर रही थी और इसी वजह से इसे 'फ्लाइंग ओवर द हंप' के नाम से जाना जाता था।
हालांकि के ऊपर से उड़ान भरना बेहद खतरनाक था। इस मिशन में कई अमेरिकी विमान दुर्घटनाग्रस्त हुुए। इन सबके बावजूद मित्र देशों के लिए जापान के खिलाफ युद्ध में चीन की सहायता के लिए आपूर्ति भेजने का यही एकमात्र तरीका था और इसके साथ ही जापानी कब्जे वाले बर्मा से बचना भी संभव था। सन् 1942 की शुरुआत में दक्षिण-पूर्व एशिया में जापान की स्पीड भारत की सीमाओं पर आकर शिथिल पड़ गई थी। पूर्वी भारतीय राज्य कलकत्ता, चीन और बर्मा से निकटता के कारण सैन्य अभियानों के संचालन में एक महत्वपूर्ण केंद्र बना हुआ था।
मई 1942 तक जापानियों ने ब्रिटिश और चीन की स्थल सैनिकों को हराकर बर्मा पर कब्जा कर लिया था और अब उन्हें लग रहा था कि कलकत्ता उनकी पहुंच में है। यह बात ब्रिटिश अधिकारियों को भी समझ आ चुकी थी। यही वजह है कि बम बरसाने वाले सैनिकों के लिए अपने लक्ष्यों को सटीक रूप से निशाना बनाना मुश्किल बनाने के लिए शहर को पहले सूर्यास्त से सूर्योदय तक 'अंधेरा' कर दिया जाता था। पूरे शहर में कर्फ्यू लागू कर दिया गया था। शाम होते ही शहर की बिजली काट दी जाती थी। इसकले अलावा कोलकाता की इमारतों को काले रंग में रंग दिया गया था।
जापानी सेना को यह बात पता थी कि भारत में ब्रिटेन और भारत की सेना दिन के समय उनके हमले को आसानी से ना सिर्फ विफल बना देगी, बल्कि मुंहतोड़ जवाब भी देगी। यही वजह है कि जापान की सेना भारत में रात के समय अंधेरे में हमला करती रही। हालांकि कुछ ही महीनों में ब्रिटेन और भारतीय सेना जापान के रात्रिकालीन हमलों को विफल बनाने और माकूल जवाब देने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी।
कलकत्ता शहर में कुछ महीने से शांति चल रही थी और आक्रमण का खतरा टलता हुआ प्रतीत हो रहा था, लेकिन 20 दिसंबर 1942 की रात जापानी सेना ने एक बार फिर से अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। 20 दिसंबर 1942 को जापानी इंपीरियल आर्मी एयरफोर्स के बमवर्षकों ने शहर पर जमकर बमबारी की, जिससे शहर की कई इमारतों को काफी नुकसान पहुंचा। जापान का लक्ष्य हावड़ा ब्रिज को तबाह करना भी था लेकिन शहर में रात में अंधेरा होने की वजह से बम ब्रिज से दूर स्थित होटलों पर या इधर-उधर गिरते रहे। हालांकि, जापानी सेना ने दो वर्षों तक अपनी कोशिश जारी रखी।
कलकत्ता में ब्रिटिश सरकार ने एक बेहतरीन हवाई रक्षा प्रणाली तैनात कर रखी थी। वह दिन के समय किसी भी हमले का बखूबी जवाब देने में सक्षम थी। इस ताकत का जापानी लड़ाकू पायलट सम्मान करते थे। यही वजह है कि जापानी सेना केवल रात में ही हवाई हमले करते और यह भी सुनिश्चित करते थे कि कलकत्ता शहर के आकाश में काफी ऊंचाई पर उड़ान भरें। जापानी सेना के रात में कुशलतापूर्वक हमलों से ब्रिटिश सेना अधिकारी अचंभित हुआ लेकिन इसके बाद अंग्रेजों ने शानदार जवाबी कार्रवाई की।
ब्रिटिश वायु सेना के बमवर्षक पायलटों ने जापानी लड़ाकू विमानों के एक बड़े समूह को नष्ट कर दिया। इन हमलों में जापानी फ्लाइंग बोट बेस भी नष्ट हुआ, जिससे लंबी दूरी के हवाई हमलों को अंजाम देने की जापान की क्षमता खत्म हो गई।
ब्रिटेन ने 1943 तक रडार निर्देशित रात्रि लड़ाकू विमानों को भारत भेजकर हवाई रक्षा को और मजबूत किया। इसके बाद ब्रिटेन की वायु सेना ने स्पिटफायर विमानों के इस्तेमाल से जापान की कई मित्सुबिशी की-21 और मित्सुबिशी की-46 विमानों को नष्ट करने में सफलता पाई। वहीं दूसरी ओर ब्रिटेन की इस पहल से कलकत्ता की कई वास्तुशिल्पीय कृतियों को बचाने में मदद की। हावड़ा ब्रिज भी उनमें से से एक है। हालांकि, 1943 के जापानी हमले के चलते कलकत्ता के किडरपोर बंदरगाह (अब श्यामा प्रसाद मुखर्जी पोर्ट) पर भारी संपत्ति और जानमाल का नुकसान हुआ था। इस हमले में सैकड़ों लोग मारे गए और कई जहाज और गोदाम नष्ट हो गए।
1944 तक कलकत्ता पर जापानी हवाई बमबारी रुक-रुक कर जारी रही, लेकिन ब्रिटेन और भारतीय सैन्य अधिकारियों की सूझबूझ के चलते कलकत्ता और हावड़ा ब्रिज को बचाया जा सका। अपनी बार-बार विफलता के बाद जापान ने अपने लड़ाकू विमानों को अन्य स्थानों पर तैनात कर दिया।
Updated on:
20 Dec 2025 08:00 am
Published on:
20 Dec 2025 06:27 am
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