
राजेश खन्ना का दिल्ली स्थित बंगला
दिल्ली के भूगोल से वाकिफ लोग जानते हैं कि लोधी एस्टेट इंडिया गेट से महज पांच-सात मिनट की दूरी पर है। 1992 के उपचुनाव में नई दिल्ली लोकसभा सीट जीतने के बाद बॉलीवुड के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना को 81 नंबर बंगला आवंटित हुआ था। उस रोचक मुकाबले में उन्होंने अपने बॉलीवुड सहयोगी शत्रुघ्न सिन्हा को हराया था।
राजेश खन्ना ने 1992 से 1996 तक इस सीट का प्रतिनिधित्व किया। जाहिर है, दिल्ली 1996 के बाद बहुत बदल गई। राजेश खन्ना इस दुनिया से चले गए, शत्रुघ्न सिन्हा की राजनीतिक यात्रा भाजपा से कांग्रेस और अब तृणमूल तक पहुंची। लेकिन जब वे नई दिल्ली की सड़कों से गुजरते होंगे, तो अपने दोस्त और प्रतिद्वंद्वी राजेश खन्ना की याद जरूर आती होगी – जिनकी विरासत राजधानी के दिल में आज भी जिंदा है।
1992 का नई दिल्ली उपचुनाव बेहद दिलचस्प था। कांग्रेस ने राजेश खन्ना को उम्मीदवार बनाया, जबकि भाजपा ने शत्रुघ्न सिन्हा को। लालकृष्ण आडवाणी के सीट छोड़ने के बाद भाजपा हाईकमान ने शत्रुघ्न को मैदान में उतारा। हालांकि केंद्र सरकार पर इसका कोई असर नहीं पड़ने वाला था, लेकिन प्रचार शुरू होते ही माहौल गरमा गया। मीडिया की नजरें दोनों सितारों के कैंपेन पर टिकीं। जल्द ही राजेश खन्ना की बढ़त दिखने लगी। मतदाताओं में उनके प्रति सहानुभूति भी थी, क्योंकि 1991 में वे आडवाणी से मामूली अंतर से हारे थे।
वरिष्ठ पत्रकार प्रीतम धारीवालयाद करते हैं, “आडवाणी जीत गए थे, लेकिन लोगों का दिल राजेश खन्ना ने जीता। पहली कोशिश में ही उन्होंने जबरदस्त मेहनत की। मिंटो रोड और गोल मार्केट जैसी विधानसभाओं में वे आडवाणी से आगे निकले।” डिंपल कपाड़िया भी उनके लिए प्रचार कर रही थीं। राजेश खन्ना ने आराम से जीत हासिल की, लेकिन इसके बाद बॉलीवुड की दोस्ती टूट गई। शत्रुघ्न सिन्हा ने खुद स्वीकार किया कि हार से बड़ा नुकसान यह हुआ कि राजेश खन्ना उनसे नाराज हो गए। रिश्ते कभी पहले जैसे नहीं रहे। उनके मीडिया सलाहकार सुनील नेगी बताते हैं कि 81 लोधी एस्टेट की महफिलों में राजेश खन्ना कभी उस चुनाव या शत्रुघ्न का जिक्र नहीं करते थे।
राजेश खन्ना सिर्फ चार साल ही 81 लोधी एस्टेट में रहे, लेकिन बंगले की पहचान आज भी उनसे जुड़ी है। उन्होंने पीछे के हिस्से में गणेश जी की खूबसूरत मूर्ति लगवाई थी और घर से निकलते-अंदर आते वक्त उसे प्रणाम करते थे। ज्यादातर वे पीछे के दरवाजे से ही इस्तेमाल करते थे। सुनील नेगी कहते हैं, “काका जिंदादिल थे। हर मेहमान का स्वागत होता था, चाय-नाश्ता मिलता था।” उन्होंने बंगले को मार्बल और टाइल्स से शानदार रेनोवेट करवाया। उनका लाइफस्टाइल राजसी था – गैरेज में लक्जरी कारें, फाइव स्टार जैसा बंगला। अनिच्छा से ही उन्होंने 1996 में इसे खाली किया। कई मंत्री-सांसद इसे हासिल करने की जुगत में थे।
लोधी एस्टेट में बंगला मिलते ही राजेश खन्ना बेहद खुश थे। वे अक्सर कहा करते थे कि लुटियंस जोन में रहना गर्व की बात है। लोधी एस्टेट को लुटियंस जोन का विस्तार माना जाता है, जो आजादी के बाद विकसित हुआ। यहां के बंगलों में लुटियंस की तर्ज पर चारों तरफ बगीचा और बीच में मुख्य इमारत होती है। पीछे सेवकों के लिए अलग quarters भी हैं।
कौन-कौन आता था वहां
बॉलीवुड से सुनील दत्त, रूपेश कुमार और सावन कुमार टाक जैसे लोग आते-जाते थे। सरकारी बंगला मिलने से पहले राजेश खन्ना सोम विहार और वसंत कुंज में रह चुके थे।
81 लोधी एस्टेट पहले हेमवती नंदन बहुगुणा को मिला था। 1984 में इलाहाबाद चुनाव के दौरान बहुगुणा जी ने राजेश खन्ना से फोन पर प्रचार के लिए अनुरोध किया था, लेकिन काका नहीं गए। बाद में जब राजेश खन्ना चुनाव लड़ रहे थे, वे बहुगुणा जी से मिलने उनके लोधी रोड फ्लैट पहुंचे – उत्तराखंडी वोटरों को संदेश देने के लिए। लेखक खुद उस मुलाकात में मौजूद थे। 1996 में राजेश खन्ना के बाद यह बंगला भाजपा नेता प्रमोद महाजन को आवंटित हुआ। राजेश खन्ना के करीबी ज्योतिषि डॉ जय प्रकाश लालधागेवाले कहते हैं कि वे ( राजेश खन्ना) एक बार दिल्ली दिल्ली छोड़ने के बाद यहां पर फिर शायद ही कभी आए हों। उन्हें उम्मीद थी कि कांग्रेस उन्हें राज्य सभा का सदस्य बना देगी। पर यह नहीं हुआ। इससे वे बहुत हताश हो गए थे।
1971 में रिलीज ‘हाथी मेरे साथी’ राजेश खन्ना की सुपरहिट फिल्म थी। तमिल-हिंदी कवि भास्कर राममूर्ति याद करते हैं कि सफदरजंग एन्क्लेव के कमल थिएटर में फैंस की भीड़ उमड़ पड़ी थी। संयोग से 1991-92 के चुनाव में राजेश खन्ना उनके इलाके में आए, भास्कर ने उनसे हाथ मिलाया, वोट दिया और एक बार 81 लोधी एस्टेट भी गए।
Updated on:
29 Dec 2025 11:55 am
Published on:
29 Dec 2025 11:54 am
बड़ी खबरें
View AllPatrika Special News
ट्रेंडिंग
