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‘Marwari go back’ विरोध के बीच तेलंगाना में इनकी समृद्ध व्यापारिक हिस्सेदारी आपको हैरान कर देगी

Marwari community in Telangana: फेडरल की रिपोर्ट के अनुसार, तेलंगाना के अमंगल जैसे क्षेत्रों में मारवाड़ी समुदाय का आर्थिक योगदान उल्लेखनीय है, जिससे स्थानीय प्रति व्यक्ति आय हैदराबाद से भी दुगुनी है।

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भारत

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MI Zahir

Aug 22, 2025

Marwari go back protest in Telangana

तेलंगाना में मारवाड़ी गो बैक आंदोलन चल रहा है। ( फोटो : X Handle Kishorereddynanda.)

Marwari community in Telangana: तेलंगाना में मारवाड़ी गो बैक (Marwari go back ) जैसे नारों के बीच एक सच्चाई यह भी है कि मारवाड़ी समुदाय (Marwari community) राज्य की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। विभिन्न व्यवसायों में इनकी भागीदारी और निवेश ने हैदराबाद जैसे शहरों की आर्थिक ताकत को बढ़ाया है। विरोध के माहौल के बावजूद, मारवाड़ी व्यापारी ( Marwari businessmen) न केवल व्यापार चला रहे हैं, बल्कि हजारों लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं। तेलंगाना के अमंगल में "मारवाड़ी गो बैक" नारे स्थानीय व्यापारिक तनाव का परिणाम हैं, लेकिन The Federal की रिपोर्ट बताती है कि यह विरोध केवल क्षेत्रीय भावना नहीं, बल्कि आर्थिक प्रतिस्पर्धा और सामाजिक असंतुलन की गहरी जड़ें भी रखता है। मारवाड़ी समुदाय ने राज्य की आर्थिक तरक्की (Marwari traders) में खासकर छोटे शहरों को आर्थिक केंद्रों में बदलने में अहम भूमिका निभाई है,। बावजूद इसके, कुछ स्थानीय समूह उन्हें बाहरी मान कर निशाना बना रहे हैं।

मारवाड़ी समुदाय का दशकों पुराना व्यापारिक वर्चस्व

आपको जान कर हैरानी होगी कि तेलंगाना खासकर हैदराबाद, अमंगल, करीमनगर, वारंगल और निर्मल जैसे इलाकों में मारवाड़ी समुदाय का दशकों पुराना व्यापारिक वर्चस्व है। ये लोग टेक्सटाइल, ज्वैलरी, इलेक्ट्रॉनिक्स, किराना और होलसेल कारोबार में मजबूत पोजीशन रखते हैं। स्थानीय व्यापारियों का दावा है कि बड़ी पूंजी और नेटवर्क के कारण मारवाड़ी व्यापारी प्रतिस्पर्धा को खत्म कर रहे हैं।

मारवाड़ी गो बैक" नारे लगा कर विरोध प्रदर्शन (Telangana protests)

ध्यान रहे कि तेलंगाना के अमंगल क्षेत्र में हाल ही में कुछ स्थानीय व्यापारियों ने "मारवाड़ी गो बैक" जैसे नारे लगा कर विरोध प्रदर्शन किया। यह मामला सिर्फ एक पार्किंग विवाद से शुरू हुआ था, लेकिन जल्द ही इसमें क्षेत्रीय असंतोष और आर्थिक प्रतिस्पर्धा के स्वर मिल गए।

आर्थिक तस्वीर: किसे हो रहा है फायदा ?

अमंगल जैसा छोटा शहर तेलंगाना में प्रति व्यक्ति आय के मामले में सबसे ऊपर है — लगभग ₹9.47 लाख प्रति व्यक्ति आय। इसकी तुलना में हैदराबाद की आय करीब प्रति नागरिक ₹5 लाख रुपये के आसपास है। यह बढ़त उस व्यापारिक मॉडल का परिणाम है, जिसे मारवाड़ी, गुजराती, और अन्य गैर-स्थानीय व्यापारी समुदायों ने खड़ा किया है।

क्या यह विरोध एकतरफा है ?

समाजशास्त्रियों का कहना है कि यह विरोध केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक असंतुलन की भी अभिव्यक्ति है। कुछ स्थानीय लोगों को लगता है कि बाहर से आए व्यापारी उनके अवसर छीन रहे हैं। वहीं दूसरी ओर, मारवाड़ी समुदाय के लोगों का कहना है कि उन्होंने स्थानीय समाज में रच-बसकर, कानूनी ढंग से व्यापार किया है और हजारों स्थानीय लोगों को रोजगार भी दिया है।

गुजराती और अन्य समुदाय भी निशाने पर

केवल मारवाड़ी ही नहीं, बल्कि तेलंगाना में रहने वाले गुजराती, पंजाबी, हरियाणवी और उत्तर प्रदेश से आए व्यापारी भी इसी तरह की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। अकेले हैदराबाद में लगभग 3.5 लाख गुजराती वोटर हैं, जो बताता है कि इन समुदायों की जनसंख्या भी अब खासा असर डालती है।

क्या इस टकराव का कोई समाधान है ?

इस विवाद के समाधान के लिए स्थानीय व्यापार मंडलों, सामाजिक संगठनों और सरकार को एक साथ बैठकर व्यापारिक माहौल में संतुलन लाने की ज़रूरत है। सांस्कृतिक विविधता को अपनाकर एक समावेशी मॉडल अपनाया जाए, जिससे दोनों पक्षों को समान अवसर मिलें।

क्या 'बाहरियों' को दोष देना चाहिए ?

बहरहाल तेलंगाना की आर्थिक वृद्धि में बाहरी व्यापारियों का बड़ा हाथ है। चाहे वे मारवाड़ी हों, गुजराती हों या अन्य, इन्होंने व्यापार, रोजगार और निवेश में अहम भूमिका निभाई है। "वापस जाओ" जैसे नारे केवल विभाजन को बढ़ाते हैं — यह कोई समस्या का समाधान नहीं है। अब यह मामला सामाजिक, सांस्कृतिक और व्यापारिक तनावों का मिश्रण बन गया है।