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‘Marwari go back’ विवाद से देश में समाजों के साथ ही बिजनेस पर भी मंडरा रहा खतरा,जानिए नफरत की वजह

Marwari Community Telangana: तेलंगाना में मारवाड़ी समुदाय के खिलाफ बढ़ते विरोध के पीछे सामाजिक और आर्थिक कारण हैं, जो सिर्फ एक समुदाय या प्रदेश तक सीमित नहीं है।

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भारत

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MI Zahir

Aug 22, 2025

Marwari Community Telangana

तेलंगाना में मारवाड़ी समुदाय के खिलाफ बढ़ता विरोध। ( फोटो: एक्स .)

Marwari Community Telangana: तेलंगाना में हाल ही में 'मारवाड़ी वापस जाओ'(Marwari Go Back) जैसे नारे लगने से न सिर्फ समाज में खाई पैदा हुई है, बल्कि व्यापारिक माहौल भी प्रभावित होने लगा है। यह विवाद एक स्थानीय पार्किंग को लेकर शुरू हुआ, लेकिन कुछ ही समय में प्रदर्शन में बदल गया। इस विवाद को लेकर 22 अगस्त 2025 को तेलंगाना बंद (Telangana bandh )भी रहा था। ध्यान रहे कि मारवाड़ी (Marwari Community Telangana) शब्द केवल मारवाड़ या राजस्थान तक सीमित नहीं है। तेलंगाना के लोगों की नजर में मारवाड़ी का मतलब राजस्थान,गुजरात और उत्तर भारत (North India) के अन्य हिस्से जैसे हरियाणा, पंजाब व उत्तर प्रदेश के व्यवसायी भी हैं। ये सभी लोग तेलंगाना (Telangana) में मुख्य रूप से व्यापारिक क्षेत्रों में सक्रिय हैं और इसी वजह से इन्हें सामूहिक रूप से "मारवाड़ी" कहा जाता है।

पुराने जख्मों को ताजा कर दिया

पिछले कुछ वर्षों में तेलंगाना में मारवाड़ी समुदाय के खिलाफ हमलों की घटनाएं कई बार सामने आई हैं। हाल ही में हुए विवाद ने एक बार फिर उन पुराने जख्मों को ताजा कर दिया है। सामाजिक संस्थाओं की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले दस वर्षों में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनमें मारवाड़ी परिवारों को धमकाया गया या उनके व्यवसाय को नुकसान पहुंचाया गया, मगर केस दर्ज नहीं किए गए।

इतिहास से जुड़ा समुदाय

मारवाड़ी समाज का तेलंगाना से जुड़ाव कोई नया नहीं है। बताया जाता है कि निजाम उस्मान अली खान के शासनकाल के दौरान कई मारवाड़ी व्यापारी हैदराबाद और अन्य इलाकों में आए और वहां कारोबार शुरू किया। उन्होंने न केवल आर्थिक रूप से क्षेत्र को मजबूत किया बल्कि सामाजिक और धार्मिक कार्यक्रमों में भी योगदान दिया।

आखिर विरोध की असल वजह क्या है ?

तेलंगाना में 'मारवाड़ी वापस जाओ' जैसे नारे सिर्फ समुदाय के खिलाफ नहीं हैं, बल्कि इनका मकसद व्यावसायिक शोषण और राजनीतिक फ़ायदे हैं। यह मामला सिर्फ भावनात्मक नहीं, बल्कि आर्थिक और सामाजिक हितों से जुड़ा हुआ है।

‘बाहरी बनाम स्थानीय’ मानसिकता

विशेषज्ञ मानते हैं कि ‘बाहरी बनाम स्थानीय’ मानसिकता, क्षेत्रीय राजनीति और कुछ कट्टरपंथी समूहों की सोच इस तरह के विरोधों को हवा देती है। कुछ लोग मारवाड़ी समुदाय की आर्थिक सफलता को ईर्ष्या की नजर से देखते हैं, जिससे यह तनाव बढ़ता है। सोशल मीडिया पर फैल रही अफवाहें भी हालात को और गंभीर बना देती हैं।

तेलंगाना में कितने हैं मारवाड़ी ?

वर्तमान में तेलंगाना में मारवाड़ी समुदाय की संख्या लगभग 4-5 लाख के बीच मानी जाती है। हैदराबाद, वारंगल, करीमनगर और खम्मम जैसे शहरों में इनकी मजबूत उपस्थिति है। ये लोग मुख्य रूप से व्यापार, वित्त, टेक्सटाइल और रियल एस्टेट जैसे क्षेत्रों में सक्रिय हैं।

बाहरियों को जिम्मेदार ठहराना आसान ?

जब स्थानीय व्यापारियों को लगे कि मारवाड़ी व्यापारियों ने उनके बाजार पर कब्ज़ा कर रखा है, तो विरोध में "बाहरियों" को दोष देना आसान हो गया। मगर यह असल समस्या का हल नहीं, बल्कि एक राजनीतिक और आर्थिक हिसाब‑किताब है।

क्या यह सांप्रदायिक विवाद बन गया है ?

इस विरोध की राजनीति ने इसे धार्मिक रूप भी दे दिया है। कुछ लोग इसे हिंदू समुदाय के भीतर विभाजन के लिए चलाए गए षड्यंत्र के रूप में देख रहे हैं—जहां मारवाड़ियों को निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि वे अक्सर बीजेपी से जुड़े माने जाते हैं।

क्या यह आंदोलन नया है ?

ऐसा नहीं है कि तेलंगाना में यह पहली बार हुआ। इससे पहले भी 'इडली‑सम्भार वापस जाओ' जैसे विरोध हुए—जहां 'स्थानीय बनाम बाहरी' की राजनीति दिखाई दी। यह पुरानी मानसिकता फिर से सामने आ रही है।

सामाजिक विभाजन का खतरा

ऐसे आंदोलनों से सामाजिक ताने‑बाने पर सीधा असर पड़ता है। यह व्यापार के साथ-साथ भाईचारे और मिल-जुलकर रहने की भावना को भी कमजोर कर सकता है।

हमले तो हुए, पर केस दर्ज नहीं हुए — क्यों?

सामाजिक दबाव: मारवाड़ी समुदाय आमतौर पर शांतिप्रिय और व्यापार-प्रधान माना जाता है, जो टकराव से बचता है। ऐसे में कई घटनाएं दबा दी जाती हैं। स्थानीय प्रशासन की निष्क्रियता: कई बार स्थानीय प्रभावशाली लोगों के कारण शिकायतें दर्ज नहीं होतीं। भय और व्यापारिक नुकसान का डर: व्यापारी वर्ग को डर होता है कि शिकायत से व्यापार पर असर पड़ेगा या तनाव और बढ़ेगा।

राजनीति और समाज का रुख

BJP सहित कई राजनीतिक दलों ने इस घटना की निंदा की है और इसे सामाजिक ताने-बाने के लिए खतरनाक बताया है। बीजेपी नेताओं ने कहा कि मारवाड़ी समुदाय दशकों से राज्य की तरक्की में भागीदार रहा है और किसी भी तरह की नफरत बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

अब क्या होगा आगे ?

अगर इस तरह की घटनाओं को समय पर रोका नहीं गया, तो इससे न केवल सामाजिक तनाव बढ़ेगा, बल्कि निवेश और कारोबार पर भी बुरा असर पड़ेगा। व्यापारी वर्ग पहले ही इस मुद्दे को लेकर असुरक्षित महसूस कर रहा है और सरकार से कड़े कदम उठाने की मांग कर रहा है।

हमें अब क्या करना चाहिए ?

बहरहाल हमें इस समस्या को जाति-धर्म या नफरत की लड़ाई न बनाकर, व्यावसायिक और राजनीतिक हितों की पहचान करने वाली लड़ाई बनानी चाहिए। उद्देश्यों को समझना और असली समस्या को सुलझाना ज़रूरी है, तभी हम इससे आगे बढ़ सकें।