
फोटो- एआई जनरेटेड
MP News: मध्यप्रदेश में किसानों पर लाठीचार्ज और गोलीकांड होना महज कोई संयोग नहीं था। इतिहास गवाह है कि ऐसे घटनाक्रमों के बाद सत्ता में वापसी करना, किसी भी पार्टी के लिए आसान नहीं रहा है। इसमें किसी सरकार बन गई तो किसी की गिर गई। patrika.com लेकर आया है राजनीतिक कहानी का एक दिलचस्प किस्सा। साल था 1998 बैतूल जिले की मुलताई तहसील...यहां पर किसानों के ऊपर गोलियां बरसाईं गई थी। दूसरी बार दिग्गी राजा सीएम तो बने, मगर उसके बाद न सरकार आई न सीएम बन पाए...15 महीने के लिए आई भी तो, सिंधिया की वफा कांग्रेस को रास न आई।
राजनीतिक काल का चक्र सिर्फ विपक्ष पर ही हावी नहीं रहा। वक्त था 6 जून 2017। शिवराज सिंह के नेतृत्व वाली सरकार में मंदसौर जिले में हाईवे पर किसानों पर गोलियां बरसा दीं गईं। इसमें पांच किसानों की मौत हो गई। फिर क्या था...भारतीय जनता पार्टी की सरकार को जनता ने साल 2018 के विधानसभा चुनावों में सिरे से नकार दिया। आइए समझते हैं पूरा किस्सा... सिर्फ patrika.com पर।
क्रिसमस के दिन 1997 से मुलताई तहसील के सामने अनिश्चितकालीन धरना देना शुरु हुआ था। आंदोलन के चलते 400 गांवों का दौरा किया और किसानों और किसान नेताओं को ओने साथ लाए थे। उस दौरान एक किसान संघर्ष समिति बनाई गई। इसमें सारे नेता जुटे और तय हुआ कि एक महापंचायत बुलाई जाए। यहां पर सारे किसान नेता जुटे थे। संघर्ष समिति ने मांग रखी कि एक मांगपत्र बनाया जाए और सरकार पर दबाव डाला जाए कि किसानों की बात सुनी जाए।
बात मनवाने के लिए किसानों प्रयास किए कि राष्ट्रीय दलों के नेताओं से मुलाकात करें। इसके लिए छोटे नेता से मुलाकात करके अपनी बात ऊपर तक पहुंचा सकें। जब ये तय नहीं हुआ था तो जनता दल के प्रशिक्षण शिविर में भाग लेने के लिए डॉ सुनीलम पहुंचे। किसानों ने उन्हें समस्याएं बताईं। उस वक्त सुनीलम ने देखा कि सोयाबीन की फसल खत्म होती जा रही है और किसानों की बात कोई सुनने को तैयार नहीं है।
बात है 9 जनवरी 1998 की। बैतूल पुलिस ग्राउंड में जिलेभर से 2 लाख से ज्यादा किसान जुटे। कई जानकार तो यहां तक बताते हैं कि यह संख्या करीब 2.50 लाख के आसपास रही होगी। उस समय के लिहाज से ये संख्या बड़ी थी। मांग पत्र पेश किया गया। जिसमें मांग की गई कि हर किसान को एक एकड़ के बदले 5 हजार रुपए हर्जाना दिया जाए। मौके पर कलेक्टर ने 400 सौ रुपए एकड़ के हिसाब से हर्जाना देने का प्रस्ताव रखा था। जिसे किसानों ने सिरे से खारिज कर दिया था। किसानों ने उस वक्त मांग रखी थी कि राशन को आधी कीमत पर दिया जाए और खाद-बीज और कीटनाशक का कर्ज माफ किया जाए। किसानों से सोसायटी का खर्च वसूला जाए। आंदोलन के दौरान रणनीति तैयार हुई कि 2 दिन के अंदर यानी 11 जनवरी 1998 तक ऐसा नहीं हुआ तो किसान आंदोलन और तेज हो जाएगा। साथ की चेतावनी दी गई थी कि 12 जनवरी को मुलताई तहसील के कार्यालय पर डाला लगाया दिया जाएगा।
मुलताई में 9 से 12 जनवरी के बीच एक घटनाओं का दौर शुरु हुआ। मुलताई से 10 किलोमीटर दूर 11 जनवरी को राज्य परिवहन निगम की बसें जला दी गईं। जिसके बाद देखते ही देखते आंदोलन हिंसक होता चला गया। किसान संघर्ष समिति के लोगों ने तो यहां तक इल्जाम लगाए थे कि ये कांग्रेस के षड्यंत्र था और आंदोलन में नाकाम करना था। इससे पहले 8 जनवरी को भी तहसील मुख्यालय में प्रदर्शन के दौरान किसानों में बस में आग लगा दी थी। साथ ही मौके पर मौजूद अफसरों से झूमाझटकी की गई थी।
12 जनवरी के दिन किसानों ने तहसील कार्यालय को घेर लिया गया। जिसके बदले पुलिस ने आंसू गैस और लाठीचार्ज शुरू कर दिया। आरोप लगे कि जब मुलताई में गोलीकांड हुआ था। उसी दिन कांशीराम की सभा भी हुई। जिससे स्थिति और बिगड़ गई। लोगों ने कांशीराम की रैली से लोग लौट रहे थे। तभी कुछ लोगों पुलिस पर पत्थर बरसा दिए गए। पुलिस तहसील के पास जुट गई और आंसू गैस की स्थिति उत्पन्न हो गई। हालांकि, रिपोर्ट में बताया गया कि मृतकों की संख्या सात बताई गई थी। जिसमें कहा गया था कि 50 पुलिस वालों के साथ लगभग 56 ग्रामीण घायल हुए थे। घटना के बाद पूर्व सीएम सुंदरलाल पटवा ने सीएम हाउस का घेराव कर लिया और उपवास पर बैठे थे।
दिग्विजय सरकार मुलताई लाठीचार्ज की जिम्मेदारी लेने से बच रही थी। जिसके चलते सरकार में जमकर किरकिरी झेलनी पड़ी। गोलीकांड की घटना हुई तो दिग्विजय सिंह झाबुआ में चुनाव प्रचार कर रहे थे। आस थी कि बदलाव होगा। दिग्विजय सिंह ने फिर चुनाव जीता और सीएम बन गए। मगर, फिर वक्त ने ऐसी पलटी मारी कि दोबारा दिग्विजय सीएम न बन सके।
एमएसपी को लेकर 1 जून 2017 से देश कई राज्यों में प्रदर्शन चल रहे थे। मंदसौर में आंदोलन इतना बड़ा नहीं था। यहां पर किसानों ने आंदोलन के समर्थन में जुलूस निकाला और मंडी के व्यापारियों से दुकान बंद करने की अपील की, लेकिन बीजेपी से ही जुड़े अनिल जैन ने दुकान बंद करने से मना कर दिया। तभी विवाद छिड़ गया और व्यापारियों ने किसानों के खिलाफ मुकदमे दर्ज करा दिए। जब किसान मुकदमा कराने पहुंचे तो उनकी रिपोर्ट नहीं लिखी गई। एक तरफा कार्रवाई से प्रदर्शनकारी नाराज हो गए। 6 जून को ऐलान किया गया कि व्यापारी अनिल जैन के खिलाफ मामला दर्ज कराने के लिए पार्श्वनाथ चौपाटी में किसान जुटें। किसानों को रोकने के लिए पुलिस और सीआरपीएफ की टुकड़ियों को तैनात कर दिया गया।
कुछ प्रत्यक्षदर्शी किसान कहते हैं कि किसान और सीआरपीएफ के जवानों के बीच एक मामूली झड़प हो गई थी। जिसके बाद जवानों ने किसानों पर गोलियां चला दीं। हालांकि, जब एसपी की ओर से कोई आदेश जारी नहीं किया था। न्यायिक जांच आयोग (जैन आयोग) के अध्यक्ष जेके जैन के सामने सीएसपी ने अपना बयान दर्ज कराया था कि उन्होंने ना तो कोई फायरिंग का आदेश दिया था और ना ही उनके सामने कोई फायरिंग हुई थी। सीएसपी ने जो बयान दर्ज कराए थे। उसमें बताया गया था कि पार्श्वनाथ चौपाटी पर वहां पर 2 हजार की संख्या में प्रदर्शनकारी देशी कट्टे, हाथियार और पेट्रोल बम के साथ मौजूद थे।
कांग्रेस ने उस वक्त जोरों-शोरों से पूरे प्रदेश में प्रचार किया। कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जीतू पटवारी, अजय सिंह राहुल समेत कई नेताओं में घूम-घूम कर प्रचार किया। कांग्रेस ने कर्जमाफी की बदौलत सरकार बनाई। कमलनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाए गए और शिवराज सिंह चौहान को इस्तीफा देना पड़ा।
हालांकि, 15 महीने की कांग्रेस की सरकार चल पाई। रूठे ज्योतिरादित्य सिंधिया को मानने की कोशिश में जुटी कांग्रेस असफल रही और सिंधिया ने भाजपा का दामन थाम दिया। जिसके बाद फिर शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली थी।
Published on:
31 Dec 2025 03:00 pm
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