
शिबू सोरेन का निधन (फोटो- IANS)
Shibu Soren Passed Away: झारखंड की सियासत (Jharkhand politics) में ध्रुव तारा रहे शिबू सोरेन का आज निधन हो गया। दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में भर्ती 81 वर्षीय शिबू सोरेन की मृत्यु हो गई। शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को हजारीबाग के नेमरा गांव में हुआ था। पिता सोबरन सोरेन और परिवार के लोग बचपन में उन्हें शिवलाल कहकर पुकारते थे। आगे चलकर शिवलाल का स्कूल में नामांकन शिवचरण मांझी के रूप में हुआ।
शिवचरण मांझी यानी शिबू सोरेन की प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही स्कूल में हुई। बेटे का भविष्य बेहतर हो, इसलिए सोबरन सोरेन ने शिबू का दाखिला गोला प्रखंड के हाई स्कूल में करा दिया। यहां शिबू सोरेन आदिवासी छात्रावास में रहकर पढ़ाई कर रहे थे। जब शिबू महज 13 साल के थे, तब सब कुछ बदल गया। 27 नवंबर 1957 को शिबू को पता चला कि उनके पिता सोबरन की महाजनों ने निर्ममता से हत्या कर दी है।
शिबू सोरेन पर अनुज कुमार सिन्हा द्वारा लिखी पुस्तक दिशोम गुरु के मुताबिक, गांव के ही महाजनों के बच्चों ने एक आदिवासी महिला के साथ अभद्र व्यवहार किया था। जब यह बात सोबरन को पता चली तो उन्होंने महाजनों का विरोध किया। इसके बाद महाजनों ने साजिश के तहत सोबरन सोरेन की हत्या कर दी।
पिता की हत्या ने शिबू सोरेन को अंदर से झकझोर कर रख दिया था। उन्होंने कलम छोड़कर हथियार थाम लिया। महाजनों के खिलाफ संग्राम का बिगुल फूंक दिया। मगर महाजनों के खिलाफ यह लड़ाई आसान नहीं थी। गांव के गरीब ग्रामीण और आदिवासी महाजनों के कर्ज तले दबे हुए थे। महाजनों ने गरीब किसानों की जमीनें हड़प ली थी। वह किसानों को शराब पिलाकर उनसे कागजों पर अंगूठे का निशान लगवाकर जमीनें हड़प लिया करते थे।
शिबू ने एक-एक करके ग्रामीणों और आदिवासियों को महाजनों के खिलाफ एकजुट करना शुरू किया। महाजनों के खिलाफ मोर्चा खोलने के बाद लोग अब शिबू सोरेन का नाम जानने लगे थे। पेटरवार, जैनामोड़, बोकारो और धनबाद में भी शिबू सोरेन के नाम की चर्चा होने लगी।
महाजनों के खिलाफ मोर्चाबंदी उलगुलान और समाज सुधार ने तत्कालीन बिहार में शिबू को नई पहचान दी। खासकर धनबाद के टुंडी आंदोलन के बाद वह अविभाजित बिहार में सुर्खियों में आने लगे थे। 1972 से 1976 के बीच उन्होंने महाजनों के कब्जे से जमीनें छुड़वाई।
अब शिबू सोरेन की एक आवाज पर तीर, भाला, तलवार लिए आदिवासी समाज के लोग जुट जाते थे। आदिवासी समाज के लोग हड़पी गई खेतों पर लगी फसल काट देते थे। उन्होंने धनबाद के टुंडी के पोखरिया में एक आश्रम बनाया था। इसे लोग शिबू आश्रम कहने लगे। इस दौरान लोग उन्हें गुरुजी और दिशोम गुरु के नाम से पुकारने लगे।
संघर्ष के दौरान शिबू सोरेन कई बार अंडरग्राउंड रहे। बाद में धनबाद के जिलाधिकारी के.बी. सक्सेना और कांग्रेस नेता ज्ञानरंजन के सहयोग से उन्होंने आत्मसमर्पण किया। दो महीने बाद जेल से बाहर आए। इसके बाद उन्होंने सोनोत संताल संगठन बनाकर आदिवासियों को एकजुट किया। विनोद बिहारी महतो के शिवाजी समाज और सोनोत संताल का विलय हुआ और झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापाना हुई। इसमें ट्रेड यूनियन लीडर ए.के. राय की महत्वपूर्ण भूमिका रही। विनोद बिहारी महतो पार्टी के पहले अध्यक्ष और शिबू सोरेन पहले महासचिव बने।
साल 1980 में शिबू सोरेन दुमका से सांसद चुने गए। इस साल बिहार में विधानसभा चुनाव हुए। इसमें संथाल परगना की 18 में 9 सीटों पर JMM ने दर्ज की। साल 1991 में विनोद बिहारी महतो के निधन के बाद शिबू पार्टी के अध्यक्ष बने। इसके बाद से बिहार की सियासत में JMM की पैठ गहरी होती चली गई।
साल 2000 में बिहार से अलग होकर झारखंड राज्य बना। अब तक शिबू बिहार, झारखंड और देश के बड़े आदिवासी नेता के तौर पर अपनी पहचान बना चुके थे। शिबू तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने। 2005 में दस दिन के सीएम बने, फिर 2008 में 145 दिन के सीएम बने। 2009 से साल 2010 तक 153 दिनों के लिए सीएम बने। उन्होंने कभी भी सीएम कार्यकाल पूरा नहीं किया। इसके बाद उन्होंने पार्टी और झारखंड की सियासत की बागडोर अपने बेटे हेमंत सोरेन को सौंप दी। हेमंत झारखंड के सीएम हैं।
Published on:
04 Aug 2025 11:57 am
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