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उम्र, राजनीति और प्रतिबद्धता… उमा भारती का बयान राजनेताओं को बड़ा संदेश

Uma Bharti in Politics: उमा भारती का हाल ही में दिया बयान कि वे चुनाव लड़ेंगी मध्यप्रदेश की सियासी गलियों में हलचल मचा गया, लोग उनकी वापसी के कयास लगाने लगे, क्या उनका ये बयान महज एक टेस्टिंग साउंड था, जो जनता का रूख देखना भर चाहता था, या फिर राजनीति को सत्ता की चाबी मात्र समझने वाले नेताओं को दिया गया बड़ा और स्पष्ट संदेश...

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Uma Bharti in MP politics

Uma Bharti in MP politics(photo: X)

Uma Bharti: भारतीय राजनीति में जब-जब उमा भारती का नाम आता है, तब-तब उसके साथ जोश, आक्रामकता के साथ सादगी जैसे कई गुण भी याद आ जाते हैं। मध्य प्रदेश की राजनीति से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक उनकी एक विशेष पहचान रही है। अयोध्या आंदोलन से लेकर मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री तक का सफर तय करने वाली उमा भारती ने हाल ही में एक बड़ा बयान दिया और चर्चा में आ गईं। उन्होंने साफ कर दिया कि वे चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं, लेकिन यह फैसला उनकी प्रतिबद्धताओं और लक्ष्य पर निर्भर करेगा।

उमा भारती का ये बयान न केवल उनकी राजनीतिक वापसी की संभावनाओं की तरफ इशारा था, बल्कि भारतीय राजनीति में 'सेवा बनाम सत्ता' की बहस को भी उन्होंने नए सिरे से ला खड़ा किया है।

यहां पढ़ें उमा भारती का पूरा बयान

'मैं अभी 65 की भी नहीं हुई हूं। राजनीति में योगदान की कोई उम्र तय नहीं होती। जब मुझे लगेगा कि मैं पूरी तरह तैयार हूं और चुनाव लड़ने से मेरे लक्ष्य पूरे होंगे, तभी मैं चुनाव लड़ूगी।'

उमा भारती के इस बयान से लगता है कि वे केवल राजनीतिक सक्रियता ही नहीं बनाए रखना चाहतीं, बल्कि इस बार वे पूरी तैयारी और सही मौके पर चुनावी रण में उतरने की बाट जोह रही हैं।

क्या कहती है उम्र और राजनीति पर उमा की सोच

राजनीति में कई बार नेताओं के लिए 'रिटायरमेंट' की बात होती है, लेकिन उमा भारती ने इसे स्पष्ट शब्दों में नकार दिया। उन्होंने कहा कि, 'राजनीति का कोई रिटायरमेंट एज नहीं है, योगदान जीवनभर चलता रहता है।'

उनकी ये सोच बताती है कि वे खुद को अभी हाशिए पर नहीं मानतीं। बल्कि राजनीति में अपने अनुभव और अपनी ऊर्जा के दम पर योगदान देना चाहती हैं।

प्रतिबद्धता बड़ा सवाल

उमा भारती ने एक और सबसे अहम बात कही कि 'वे अपनी जिम्मेदारियों के प्रति बेहद ईमानदार हैं। अगर वे चुनाव लड़ेंगी और सांसद बनेंगी, तो उन्हें जनता को पूरी तरह समय देना होगा। अगर मंत्री बनीं, तो मंत्रालय की जिम्मेदारी पूरी करनी होगी। ऐसे में उनकी दूसरी सामाजिक प्रतिबद्धताओं पर असर पड़ सकता है। यानी उमा भारती सत्ता के लालच में आकर और जल्दबाजी में कोई भी फैसला नहीं लेना चाहतीं।

राजनीति में वापसी की संभावनाएं

हालांकि उन्होंने अभी सीट या क्षेत्र का नाम नहीं लिया है, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर उमा भारती चुनाव मैदान में उतरीं, तो…

  1. मध्य प्रदेश बीजेपी का मजबूत आधार बनेंगी।
  2. उनका राजनीतिक अनुभव और जनता से जुड़ाव भाजपा का जनाधार बढ़ाने में मदद करेगा।
  3. वे भाजपा में ओबीसी और महिला का चेहरा बन कर उभर सकती हैं।
  4. उनके मैदान में उतरने पर विपक्ष को उनके सामने रणनीति बदलनी पड़ेगी।

भाजपा और उमा भारती का रिश्ता

-उमा भारती का भाजपा से रिश्ता कई उतार-चढ़ाव से गुजरा है।

--वे अयोध्या आंदोलन का प्रमुख चेहरा रहीं। उनकी उपस्थिति ने यूपी, बिहार जैसे राज्यों में भाजपा का जनाधार बनाने में मदद की। राम मंदिर आंदोलन के दौरान उनका दौरा और भाषण भाजपा को गांव-गांव पहुंचाने में अहम रहे।

--2003 में मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं। उन्होंने कांग्रेस को उसके गढ़ में हराया और भाजपा को ऐतिहासिक जीत दिलाई।

--बाद में पार्टी से दूरी और मतभेद भी हुए।

--हिंदुत्व का सशक्त चेहरा बनकर उभरीं उमा भारती उत्तर भारत की राजनीति के सांचे में फिट बैठती हैं। दरअसल यहां की राजनीति लंबे समय से धर्म और आस्था से जुड़ी रही है, इसलिए उनका प्रभाव ज्यादा गहरा रहा है।

--लेकिन उनकी वापसी हुई और वे केंद्र में मंत्री बनीं। इस दौरान गंगा की सफाई, पर्यटन और पेयजल जैसे मंत्रालय संभालते हुए उनकी छवि पूरे उत्तर भारत में मजबूत बनीं।

--आज जब भाजपा मध्य प्रदेश और केंद्र दोनों जगह मजबूत है, तो ऐसे में उमा भारती का फिर से सक्रिय होना पार्टी को और ऊर्जा देने वाला साबित होगा।

जनता के बीच कैसी है उमा की छवि

उमा भारती की सबसे बड़ी ताकत उनकी सादगी और साफगोई है। वे खुद को 'जनता की बेटी' कहती हैं। इसके साथ ही जनता के बीच उनकी छवि सीधी और लेकिन बेबाक नेता की है।

--हिंदुत्व के मुद्दों पर उनकी पकड़ काफी मजबूत है।

--महिलाओं और गरीबों से जुड़ाव उन्हें एक अलग पहचान देता है। ग्रामीण उत्तर भारत में उनकी सादगी और बेबाकी ने उन्हें एक साधारण और अपनी से लगने वाली राजनेता का चेहरा साबित किया। वो एक ऐसी नेता है जो बिना किसी तामझाम के आम जन तक पहुंची हैं।

--उमा भारती लोधी समाज से आती हैं। जो यूपी और एमपी में बड़ा वोट बैंक माना जाता रहा है।

राजनीतिक समीकरण

अगर उमा भारती (Uma Bharti) चुनाव लड़ती हैं, तो सवाल उठता है कि किस सीट से और किस भूमिका में वे चुनावी रण में उतरती हैं। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव या लोकसभा चुनाव दोनों में ही उनकी भूमिका अहम हो सकती है।

वे मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार तो शायद न बनें, लेकिन पार्टी के लिए 'स्टार प्रचारक' और 'मार्गदर्शक चेहरा' जरूर बन सकती हैं।

उमा के बयान का राजनीतिक असर

उनके इस बयान ने राजनीति में हलचल मचा दी है। भाजपा के अंदर उनके समर्थकों में उत्साह बढ़ा है। तो विपक्ष मान रहा है कि अगर वे सक्रिय हुईं तो मुकाबला कठिन हो सकता है।

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वहीं कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह बयान 'संकेत' है कि आने वाले चुनावों में वे एक बार फिर सक्रिय भूमिका निभाएंगी। वहीं कुछ इसे टेस्टिंग बैलून की संज्ञा भी दे रहे हैं। उनका कहना है कि ये भी हो सकता है कि वे जनता की प्रतिक्रिया जानना चाहती हों। वहीं कुछ एक्सपर्ट कहते हैं कि भाजपा उनके अनुभवों को किसी भी तरह नजरअंदाज नहीं कर सकती, खासतौर पर तब जब मध्यप्रदेश और उत्तर भारत की राजनीति में उनकी गहरी पड़ हो।

कहना होगा कि उमा भारती का यह बयान हमें एक बड़ा सबक देता है कि, राजनीति केवल कुर्सी पाने का खेल नहीं है, बल्कि यह जनता की सेवा करने और लक्ष्य की पूर्ति का माध्यम होना चाहिए। उनकी साफगोई बताती है कि वे सत्ता से ज्यादा सेवा और जिम्मेदारी को अहमियत देती हैं। आज जब राजनीति में 'तुरंत फायदा' और 'पद की लालसा' ज्यादा दिखती है, ऐसे में उमा भारती का यह दृष्टिकोण एक नई प्रेरणा का हिस्सा हो चला है।